लखनऊ,
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, श्री राम नाईक ने आज संत गाडगे प्रेक्षागृह में उर्दू-हिन्दी अवार्ड समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा कि संस्कृत भारतीय भाषाओं की जननी है तो हिन्दी और उर्दू बहनें हैं। उर्दू वर्ग विशेष की भाषा है यह सोच गलत है। भाषा में अंतर हो सकता है लेकिन भाव एक ही होता है। हिन्दी और उर्दू को साथ लेकर चलने की जरूरत है। 1857 में उर्दू और हिन्दी भाषाओं ने आजादी का संदेश आम जनता तक पहुँचाने में पत्रकारिता के माध्यम से महत्वपूर्ण संदेश दिया था। हिन्दी की अपनी विशेषता है मगर उर्दू सीधे हृदय तक पहुँचने वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि आज का हिन्दी-उर्दू का कार्यक्रम गंगा-जमुना के संगम जैसा है।
श्री नाईक ने कहा उर्दू से जुड़ा हुआ यह उनका दूसरा कार्यक्रम है। इससे पूर्व उन्होंने राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद, भारत सरकार द्वारा आयोजित उर्दू भाषा में कम्प्यूटर के माध्यम से तकनीकी प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन किया था। दिल्ली से पधारे परिषद के उपाध्यक्ष, श्री मुज्जफर हुसैन ने बताया कि मरसिया के शायर मीर अनीस व उर्दू के विद्वान शायर, मीर तकी मीर की कब्रों का रख-रखाव ठीक नहीं है। इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री से बात की और दोनों को मिलवाया। मुख्यमंत्री ने दोनों महान शायरों की कब्रों का जीर्णोद्वार करने की बात कहीं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि परिषद कोई प्रस्ताव केन्द्र से भेजेगा तो उर्दू गैलरी का निर्माण लखनऊ में किया जायेगा। गैलरी में उर्दू शायरों और अदीबों की इस्तेमाल की चीजों को संग्रहालय में संजोकर रखने और नयी पीढ़ी को उनसे परिचित कराने के लिये नयी पेशकश होगी।
राज्यपाल ने इस अवसर पर विख्यात रंगकर्मी, पद्मश्री राज बिसारिया को अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह व पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मशहूर हिन्दी कवि, श्री अशोक चक्रधर, पाकिस्तान से पधारे उर्दू साहित्यकार श्रीमती किश्वर नाहीद, डॉ0 असगर नदीम सैय्यद सहित अनेक साहित्यकार व साहित्यप्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम में नाटक ‘नमस्ते‘ का मंचन किया गया जिसमें मुख्य कलाकार ईला अरूण व उनके सहयोगी थे। श्री अतहर नबी ने स्वागत भाषण दिया तथा उर्दू-हिन्दी अवार्ड समिति के कार्यकलाप पर प्रकाश डालते हुए बताया कि समिति प्रतिवर्ष हिन्दी एवं उर्दू के साहित्यकारों को सम्मानित करती है तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है।