उच्च शिक्षा की गुणवत्ता हेतु आवश्यक शर्त्ते

{ प्रभात कुमार राय } दुनिया के शीर्ष 400 विश्वविद्यालयों का हाल में ब्यू0 एस0 रेंकिंग जारी किया गया है। जहाँ तक शीर्ष भारतीय विश्वविद्यालयों का सवाल हैं, परिणाम निराशाजनक है। ब्यू0 एस0 रेंकिग विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध की गुणवता, उत्कृष्टता, विश्वसनीयता, अन्य महत्वपूर्ण परफारमेन्स इंडीकेटरर्स यथा अंर्तराष्ट्रीय संकाय, इनवाउंड तथा आउटवाउंड विनिमय आदि के आधार पर किया जाता है। पहले पाँच स्थानों को मेसाचुसेट्स इंस्टीच्यूट  ऑफ टेकनोलॉजी (एम0 आई0 टी0), हार्वर्ड विश्वविद्यालय, केम्व्रिज विश्वविद्यालय, युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और इम्पीरियल कॉलेज लंदन ने प्राप्त किया है। दुनिया के शीर्ष दस स्थानों पर अमेरिका या ब्रिटेªन के विश्वविद्यालयों को ही स्थान मिला है। भारत के मात्र पाँच आई0 आई0 टी0 का दुनिया के शीर्ष 400 विश्वविद्यालयों में प्रतिनिधित्व रहा हैः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (222), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बंबई (233), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (295), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (313) एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (346)। कोष्टक में ब्यू0 एस0 रेंकिंग दर्शाया गया है। अगर सिर्फ एशिया के विश्वविद्यालयों की चर्चा की जाय तो भारत के विश्वविद्यालयों का रैंकिग थोड़ा सम्मानजनक प्रतीत होता है लेकिन संतोषप्रद कदापि नहीं। एशिया में सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, चीन और जापान के चुनिंदे विश्वविद्यालयों ने अपना वर्चस्व बनाया है। ध्यातव्य है कि साठ साल पहले चीन, कोरिया तथा भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लगभग समकक्ष माने जाते थे। यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में हम काफी पिछड गये हैं, तथा विश्व स्तर पर उभरती प्रवृतियों को अपनाने में विफल रहे है।

उच्च शिक्षा एक महत्वपूर्ण उद्यम है तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास में अहम भूमिका निभाती है। यह देश के लिए प्रशिक्षित एवं शिक्षित कर्मियों के लिए बड़ा संसाधन है। देश की आबादी का अधिकांश भाग जीवन कें किसी न किसी अवधि में कैसे उच्च शिक्षा को ग्रहण करें तथा राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में सहायक बनें? यह बड़ा प्रश्न है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं। सबसे विकट चुनौती विश्वविद्यालयों में कार्यकुशलता एवं दक्षता तथा सुशासन हेतु पद्यतियों को विकसित करना है ताकि वे राष्ट्र के विकास में वास्तविक रूप से सक्रियात्मक योगदान दे सके। तकनीकी स्तर पर साधनों का सही समायोजन कर विश्वस्तर पर प्रभावी प्रयोगों को अपनाकर अन्य ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालयों के अच्छे तत्वों का अनुकरण किया जाना है। तकनीकी विकास के अलावा अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन से उबाड़ने की भी चुनौती है। नयी तकनीकी प्रगति से तत्परता से महत्तम लाभ लिया जाना है। वस्तुतः ज्ञान की तमाम शाखाएँ एक श्रोत मे जा मिलती है। शोध संस्थानों को संकीर्णता त्यागना होगा। ज्ञान के विकास के जितने भी अवयव हैं सब परस्पर अबलंवित है तथा एक-दूसरे के पूरक भी हो सकते है। उदाहरण के तौर पर माइक्रोप्रोसेसर क्षेत्र में निरंतर प्रगति रसायन शास्त्र एवं क्वांटम भौतिकी की शाखाओं के विकास पर निर्भर करता है। शोध को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक संसाधनों को साझा करने और नेटवर्किंग की परम आवश्यकता है। विश्वविद्यलयों एवं कालेजों को अपने सीमित संसाधनों पर आधारित रहने की मानसिकता को बदलना होगा।

‘ज्ञान ही शक्ति है‘ यह पुरानी कहावत है। सूचना क्रांति के बाद यह माना जाने लगा है कि ‘सूचना शक्ति है।‘ 21 वीं सदी का सूत्रवाक्य है कि ‘नवाचार (इन्नोवेशन) ही शक्ति है।‘ दुर्भाग्य से नवाचार की रैंकिंग में भारत दुनिया के महत्वपूर्ण देशों में नीचे के पावदान पर है। 2013 के ई. एन. एस. आई. डी., कोमेल विश्वविद्यालय एवं विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा सर्वेक्षण के आधार पर विश्व के 140 देशों में पाँच नवाचार-प्रमुख राष्ट्रों में स्विटजरलेंड, स्वीडेन, बिट्रेन, नीदरलैन्ड और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका है। भारत ग्लोबल इन्नोवेशन इंडेक्स में 66 वें स्थान पर है। नवाचार आर्थिक व्यवस्था के मील के पत्थर के रूप में माना जाता है। इसमें ज्ञान को संपति में परिणत करने की अद्भुत क्षमता है। इसका कारगर इस्तेमाल सकल घरेलु उत्पाद के धन की हानि से रोकने के लिए किया जा सकता है। नवाचार से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नई संभावनाओं का उदय होगा। शिक्षा में उत्कृष्टता हासिल करना एक फलदायी यात्रा है लेकिन गंतव्य कदापि नहीं। उच्च शिक्षा की गुणवŸाा इसके पहले की शिक्षा के तमाम चरणों की गुणवŸाा के मजबूत आधार पर निर्भर करता है।

उच्च शिक्षा की गुणवŸाा के लिए स्वायत्ता, बौद्धिक स्वतंत्रता और जबावदेही आवश्यक शर्ते हैं। अगर संबंधित राज्य एवं संघीय कानून का अनुपालन सुनिश्चित किया जाता है तो उच्च शिक्षा के सस्ंथानों के आंतरिक प्रबंधन में सरकार द्वारा कोई दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए। इन संस्थानों की स्वायत्ता का संरक्षण अकादमिक स्वतंत्रता, ज्ञान की उन्नति एवं सत्य की खोज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।  उच्च शिक्षा का प्रबंधन उन तमाम साधनों को इंगित करता है जिससे उच्च शिक्षण संस्थानों का औपचारिक रूप से व्यवस्थित किया जा सकता है। ‘वन साइज फिट ऑल‘ (एक साइज सभी के लिए उपयुक्त), जो कारपोटेट प्रवृतियों को दर्शाता है, उच्च शिक्षा की संस्थागत आवश्यकताओं के अनुरूप ठीक नहीं बैठता है। संगठनात्मक गतिशीलता एवं विश्वविद्यालय प्रणाली की जटिलताओं के मद्देनजर इस क्षेत्र में साझे शासन की आवश्यकता प्रतीत होती है।

वर्तमान में विविधताओ, आर्थिक उथल-पुथल एवं वैश्वीकरण की चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में मौलिक मूल्यों को अपनाना आवश्यक हो गया है। उच्च शिक्षा में तथा उच्च शिक्षा स्नातकों को सभी विषयों में मूल्य अधारित शिक्षण एवं अनुसंधान द्वारा नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देना आवश्यक है।

ज्ञान की खोज तथा ज्ञान के प्रसार में ठोस एवं नैतिक तरीकों के उपयोग से ही बौद्धिक ईमानदारी हासिल की जा सकती है। शैक्षिक समुदाय के सदस्यों का समाज के साथ परस्पर संबंध एवं इंटरफेस में भी समान नैतिक मानक लागू होते हैं। शोध का लक्ष्य दुनिया को असली रूप में वर्णित करना है। शोधकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों का इस दिशा में पूर्वाग्रहरहित ईमानदार प्रयास  परिलक्षित होना चाहिए। शैक्षिक उपलब्धियाँ निःसंदेह मूल्यवान है लेकिन नैतिक मूल्य भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। शिक्षकों द्वारा उपयुक्त मानकों को तय किया जाना है तथा विभिन्न प्रभावी तरीकों से छात्रों के लिए नैतिक मॉडल के तौर पर अपने को पेश किया जाना है। रोल मोडेलिंग के लिए नैतिक शिक्षात्मक अवधारणा एवं प्रतिष्ठा संबंधी पहलूओं पर क्रियात्मकता प्रमुखता से दृष्टिगोचर होना चाहिए। यह मानसिक तथा वैयक्तिक अनुशासन से ही संभव है जो वर्तमान परिस्थितयों में आसान नहीं है। शिक्षात्मकता ठोस रूप से मूल्यों एवं मान्यताओं पर आधारित होना चाहिए जिसमें नैतिकता भरी हो। आस्कर वाइल्ड ने सुंदर ढं़ग से वर्णित किया हैः “आजकल मौत छोड़कर हर कोई जीवित है और अच्छी प्रतिष्ठा छोडकर हर कोई आसानी से रह सकता है।” सरकार द्वारा भविष्य में कई विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के स्थापना की महत्वाकांक्षी योजना है जिसका पूरा लाभ तभी मिल सकता है जब एक राष्ट्रीय नीति जो उच्च शिक्षा में स्वायतत्ता, पारदर्शिता, विकेन्द्रीकरण, जबावदेही एवं वैश्विक सोच आदि पहलूओं को निर्धारित करे।
स्वंय से ऊपर उठकर दूसरों के प्रति समझ एवं सम्मान का सेतु उच्च शिक्षा द्वारा बनाया जाना है। उच्च शिक्षा सामाजिक एवं व्यक्तिगत विकास का एक महत्वपूर्ण साधन होना चाहिए न कि व्यवसायिक लाभ का जरिया। विख्यात अमेरिकी इतिहासकार रिचर्ड हॉफस्टेटटडर ने ठीक ही कहा हैः ”उच्च शिक्षा द्वारा व्यवसाय सदृश संस्कृति पनपी है। इसे दूसरे लक्ष्यों यथा व्यवसाय एवं पेशेवर को बढ़ावा देने का एक साधन माना जा रहा है। इसे मानव की भलाई के लिए ठोस जरिया के रूप में देखा जाना उचित होगा।“

सर्वश्रेष्ठ प्रवासी भारतीय वैज्ञानिको, शिक्षाविदों एवं शोधकर्त्ताओं को विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों में आकर्षित करने तथा पद पर स्थायी रूप से कायम रखने के लिए उनके वेतन एवं अन्य सुविधाओं में अपेक्षित बढ़ोतरी आवश्यक है। इसके अलावा उन्हें उचित सम्मान एवं उनके कार्यो की सरकार एवं समाज द्वारा मुक्त प्रशंसा भी महत्वपूर्ण है। विश्व के लब्धप्रतिष्ठ विश्वविद्यालयों कें उत्कृष्ट तरीको को राष्ट्रीय परिदृश्य में नवाचार के साथ संश्लेष कर उच्च शिक्षा के ढँा़चे को मजबूत बनाया जाना है ताकि विश्व के विश्वविद्यालयों में काम कर रहे भारतीयों को आकर्षित किया जा सके। इससे सकारात्मक परिणाम मिलेगें तथा भारत ज्ञान में विश्वशक्ति की गौरवशाली दर्जा को पुनः हासिल करने की ओर प्रवृत हो जायगा।

निजी क्षेत्र की भागीदारी से उच्च शिक्षा मंे व्याप्त विकृतियों एवं व्याधियों को दूर करने में अपेक्षित मदद मिलेगी। अगर विदेशी शिक्षा प्रदाता (एफ. ई. पी.) की  गुणवŸाा सुनिश्चित करने के लिए सही नियामक व्यवस्थाएॅं तथा पर्याप्त निगरानी कायम की जाती है तो उच्च शिक्षा में विदेशी प्र्रत्यक्ष निवेश (एफ. डी. आई.) वरदान साबित हो सकती है। विदेशी शिक्षा प्रदाता की आवश्यकताओं को राष्ट्रीय हित के साथ विवेकपूर्ण ढ़ंग से संतुलित किया जाना जरूरी है। ऐसी स्थिति में यह सभी हित-धारको के लिए भरपूर फायदेमंद साबित हो सकता है।

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prabhat rai..परिचय -: 

प्रभात कुमार राय

( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार ) 

पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट,
वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज,
पटना 800014
 

email: pkrai1@rediffmail.com

energy.adv2cm@gmail.com
Mob. 09934083444

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33 COMMENTS

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