आपातकाल के काले दौर की जानकारी देना आवश्यक

आई एन वी सी न्यूज़
भोपाल,

स्मृति आयोजन एक कालखण्ड को सामने लाता है। इसलिए इतिहास का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है। नई पीढ़ी को इसकी जानकारी दी जाना आवश्यक है। देश में आपातकाल का दौर इतिहास का वो काला अध्याय है जिसे आज भी याद कर उस समय की गई प्रजातंत्र विरोधी गतिविधियों के सच की जानकारी आज की पीढ़ी को मिलती है। संस्कृति विभाग की निराला सृजनपीठ द्वारा आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता तथा संचार विश्वविद्यालय के सभागार में हुए ‘प्रसंग आपातकाल” में विभिन्न वक्ताओं ने यह विचार व्यक्त किए। जून 1975 में लगाए गए आपातकाल के संबंध में वक्ताओं ने कहा कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन और प्रेस सेंसरशिप के उस दौर की आज भी भर्त्सना की जाती है।

कार्यक्रम में विमर्श सत्र ‘आपातकाल और साहित्य” में श्री तपन भौमिक, मध्यप्रदेश अध्यक्ष पर्यटन विकास निगम के विशेष आतिथ्य में श्री अरूण कुमार भगत, कर्नल नारायण पारवानी और वरिष्ठ पत्रकार श्री आरिफ अज़ीज़ ने हिस्सा लिया। श्री भगत ने बताया कि आपातकाल पर रचे गए कथा और काव्य साहित्य का संकलन किया गया है।

निराला सृजनपीठ के निदेशक डॉ. देवेन्द्र दीपक ने बताया कि मध्यप्रदेश में भी आपातकाल पर केन्द्रित साहित्यिक पत्रिकाएँ, काव्य संग्रह आदि प्रकाशित हुए हैं। इस विषय पर लिखा गया नाटक ‘भूगोल राजा का : खगोल राजा का” भी आपातकाल के हालातों को सामने लाता है।

पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा ने जानकारी दी कि देश में आपातकाल की अवधि में 253 पत्रकार को नजरबंद अथवा गिरफ्तार किया गया। इनमें मध्यप्रदेश के सर्वाधिक 59 पत्रकार शामिल थे। पत्रकार वर्ग ने आपातकाल की अवधि में पूरे साहस का परिचय दिया और उस कठिन दौर में जनता का मनोबल बनाए रखा। श्री आहूजा ने आपातकाल के दौरान प्रेस सेंसरशिप के अंतर्गत लिए गए मामलों की जानकारी भी दी।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन, पत्रकार और पत्रकारिता के विद्यार्थी उपस्थित थे।

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