बृजमोहन स्वामी “बैरागी”
———- ईश्वर पैदा किए जाते हैं ——-
एक लड़की ने बहुत मारा मुझे
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वह बहुत सुंदर थी
और बहुत बोलती भी थी
लास्ट बार मैंने उसे रसोई में घुसते देखा
वह हल्दी की तरह हरी थी,
उसे यकीन न हो भले ही
और यकीन दिलाना मेरा काम भी नही
की
मर्म और विचार…
ये बन्द कमरों में घुटने वाली दुनिया की सबसे सुंदर चीज़े हैं,
जब आधी रात के बाहरवें पहर में
कोई कुत्ते जैसे जीव गली में भोंकते है
तो मैं थूक देना चाहता हूँ,
दुनिया के तमाम वादों
और “नीतियों” पर।
तुम्हारे सर पर नही उगाई गई है घास,
आदमी नही मरता दुखी होकर
और
देखना-सुनना किसी पंखे से नही चिपका होता।
आदमी के पास आदमी,
औरत के पास औरत
और दीवार के पास दीवार
जब मेरे सीनें में चाकू मारा उसने,
मैं भागकर गुलाल लाया रसोई से
और उसके माथे पर रगड़ा,
वह और भी सुंदर होकर नदी की तरह लिपटी मुझसे,
जबकि नदी होना, उसके लिए
रसोई से होकर नही आया।
बेहतर होता अगर
हम तंजश्निगारी से कविताएँ लिखते,
हमारी माएं डायरियां जलाती जाती,
बूढ़े लोग भगवद् गीता से जान बचाते,
और हम बेमन से मोहब्बत पाते
जैसे
क्लास में पहली बार जाने पर
बच्चों को आगे बैठने शौक।
एक गरीब आदमी गटर में गिरा रोकर,
मजदूरों के आन्दोलन सफल नहीं हुए
तब हमारे पड़ोसी ज्योतिषी ने खोज कर बताया,
दोनों का मुहूर्त नही निकलवाया था
और ग़ज़ब् की बात यह कि
जहर से चुपड़ी हुई रोटी
नही खाई जा सकती दो साल से ज्यादा।
दुनिया के सबसे पागल आदमी को
आप नही देखना चाहते मुस्कुराते हुए
यह नियम है।
नही रोके जा सकते वे पैर,
जो राष्ट्रगान सुनकर भी चलते रहते हैं।
हर कोई इतिहास की सबसे गहरी गहरी मौत मरना चाहता है,
कि आँखें हैं, कान हैं, दिमाग है
पर विचारधाराएँ खत्म हो चुकी हैं
यह मज़बूरी है,
विडम्बना है,
शोक सन्देश जैसा है
जैसे रेत के घड़े में
हम लोग अपना सुख ढूंढते है।
इस कविता में न ईश्वर है
और न ही कारण,
बेबसी है, लाचारी है, हत्या है।
!
बेहतर होता मैं कोई अच्छी बात लिखता
खैर,
उसने चाकू मारा था मेरे भूखे पेट में
फिर भी
सुबह अख़बार के आठ नम्बर पेज पर
मैं रसोई की नदी में कूदकर मरा,
मुब्तिला हुए कई
उदास लोगो के कानों में
मैं अपना दर्द चिल्लाना चाहता हूँ,
कि ईश्वर खोजे नही जाते ,
पैदा किये जाते हैंलेकिन
हैरानी की बात तो यहाँ होती,
जब मैं आपको बताता की
महमूद गजनवी सुबह उठते ही‚
दो घंटे रोज नाचता था।
बृजमोहन स्वामी “बैरागी”
प्रगतिवादी लेखक व् कवि
सम्पर्क – birjosyami@gmail.com
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Disclaimer : The views expressed by the author in this poetry are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.