आओ अब जशोदाबेन के नाम पर राजनीति खेलेँ

Modi-Jasodaben{सोनाली बोस** } लोकसभा चुनाव 2014 जैसे जैसे अपने अंजाम तक पहुंच रहा है वैसे वैसे इसके शबाब का रंग कई चेहरोँ बेरंग भी कर रहा है और कई बदरंग परतोँ को उधेड़ भी रहा है। हालांकि,सारा देश आज तथाकथित ‘मोदी लहर’ की सुनामी से लबरेज़ है और तीन चरणोँ के मतदान के प्रतिशत से भी इस बात की ताकिद होती है कि इस मर्तबा कुछ अलग ज़रुर हो रहा है। लेकिन फिर भी इन सबके बीच बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेन्द्र मोदी ने 46 साल बाद आखिरकार उस सत्य की स्‍वीकारोक्ति कर ली है, जिसको लेकर बीते कुछ माह से विरोधी उनके खिलाफ मोर्चा खोले बैठे थे।

वैसे तो यह मामला मोदी की वैवाहिक ज़िन्दगी से जुड़ा है। ऐसे में जब मोदी ने खुद ही अब आगे बढ़कर इस बात की सहमती दी है तो ये मानना तो लाज़मी है कि चुनाव के इस गर्म मौसम में ‘नमो’ के इस क्रांतिकारी क़दम के कुछ मायने तो ज़रूर होंगे। संभवत: इसके पीछे भी मोदी कुछ संदेश देना चाहते हों।

जहाँ तक हम सभी की याददाश्त जाती है उस हिसाब से तो मोदी ने पहली बार खुद का शादीशुदा होना स्वीकारा है और अपनी पत्नी के तौर पर जशोदाबेन के नाम का खुलासा किया है। वडोदरा संसदीय सीट पर नामांकन के दौरान निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत हलफनामे में गुजरात के मुख्‍यमंत्री ने इस बात का ज़िक्र किया है और वडोदरा लोकसभा सीट से अपने नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में 63 वर्षीय इस कद्दावर और विवादोँ से हमेशा घिरे रहने वाले नेता ने लिखा है कि वह विवाहित हैं।

लेकिन फिर भी एक बात तो हम सभी को माननी होगी कि मोदी जी से उनके विरोधियोँ के चाहे जितने भी वैचारिक मतभेद हो, उनकी निजता का सम्मान करते हुए उनकी निजी ज़िंदगी को हमेँ नहीँ छुना चाहिये। उन्होने अपनी पत्नी यशोदाबेन को कब, कहाँ और किस वजह से छोड़ा इन सभी बातोँ से हमेँ क्या फर्क पड़ता है, मुझे नहीँ मालूम?  राष्ट्रीय स्वयँ संघ को पूर्ण समर्पित इस जोशिले युवा ने उस वक़्त अगर अपनी वैवाहिक ‘ज़िम्मेदारी’ ना निभाते हुए स्वयँ सेवक की भूमिका का यदि  निर्वाह किया भी है तो उससे आज के राजनैतिक माहौल मेँ कौनसा तुफान पैदा हो जाता है? और जशोदाबेन आज के दिन क्या कर रही हैँ और कैसे रह रही है उससे हमारे देश के भविष्य पे क्या असर पड़ेगा, ज़रा बताइये तो? मीडिया का इस तरह इस खबर को इतना तवज्जो देना हम सभी पत्रकारोँ की मानसिक अवस्था पर भी एक सवालिया निशान ही लगा रहा है। आखिर किस सत्य की खोज मेँ सारा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दौड़ रहा है? अरे, जनाब देश आज कुछ और चाहता है, किसी की वैवाहिक स्थिती से इसे कोई सरोकार नहीँ है। कई प्रैक्टिकल और ज्वलंतशील मुद्दे अभी भी मौजूद हैँ जो हमारे लिये मोदी के जीवन से ज़्यादा ज़रुरी हैँ।

लेकिन महिला कांग्रेस की प्रेसिडेंट शोभा ओझा का ये कहना कि अगर मोदी अपनी वैवाहिक क़समेँ और ज़िम्मेदारी नहीँ निभा सकते हैँ तो वो इस देश की ज़िम्मेदारी किस तरह निभायेंगे? तो, ये सब सुनकर एक अजीब सी कोफ्त ही होती है। ऐसा लगने लगा है कि अब कांग्रेस राजनीति छोड़कर वैवाहिक हालातोँ का जायज़ा लेने लगी है, तो क्या अब उनका सबसे ज़रुरी काम स्त्री और पुरुष के रिश्तोँ की लक्ष्मण रेखा तय करना ही रह गया है? जब ये सुनने मेँ आता है कि अगर मोदी अपनी शादी शुदा होने की खबर छुपा सकते हैँ तो क्या गारंटी है कि उन्होने कुछ और नहीँ छिपाया होगा तो ये सब सुनकर और इस तरह मोदी पर आक्रमण करते देख कर इन नेताओँ के दिमागी दीवालियेपन पर हंसी ही ज़्यादा आती है।

ग़ौर करने लायक बात यह भी है कि जब से नरेन्द्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने हैँ तभी से उनके व्यक्तित्व और क्रिया कलापोँ मेँ भारी अंतर महसूस किया जा सकता है। यदि बीते कुछ समय में नरेंद्र मोदी की रैलियोँ पर गहराई से गौर करें तो स्‍पष्‍ट पता चलता है कि उनका ज़ोर अब सामाजिक एकता और सौहार्द्र के इर्द गिर्द ही है। बीती बातों से परे हटकर मोदी ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि अगर वो सत्‍ता में आते हैँ तो वो ये सुनिश्चित करेंगे कि सभी वर्गों के विकास की नींव रखी जाऐ। और अब इस बात की स्वीकारोक्ति कि वो विवाहित हैँ हो सकता है कि वो भी इसीलिये किया है क्योंकि मोदी अब सबको जोड़ने की नीति को अपनाना चाहते हैँ और इसी के तहत ही अपने जीवनसाथी को स्‍वीकारने के लिए इस समय को चुना है। वास्‍तव में यदि ऐसा है तो यह निश्चित ही मोदी के व्‍यक्तित्‍व को एक नया आयाम देगा। चुनावी समर में व्‍यस्‍त देशवासी इस कदम को किस रूप में देखते हैं यह तो नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन मोदी ने न सिर्फ देशवासी बल्कि पार्टी और सहयोगी दलों को भी एक संदेश देने की कोशिश की है। सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दो धुरी पर चल रहे विभिन्‍न राजनीतिक दल भी इस कदम को लेकर निश्चित ही कोई राय आने वाले दिनों में बनाएंगे। वैसे भी वक्‍त के साथ राजनीति का ऊँट कौनसी करवट ले ले वह कोई नहीं जानता।

अच्छा ये बताईये क्या आपको अटल बिहारी वाजपेयी जी याद हैँ? वो अपने पूरे राजनीतिक जीवन मेँ देश के एक ‘most interesting bachelor’ के रूप मेँ जाने गये। और खुदा का शुक्र है कि ना तो उस समय और ना ही तब जब वो प्रधानमंत्री बन गये, हम उनकी निजी ज़िन्दगी के बारे मेँ जानने को लालायित नहीँ रहे। अपने पूरे कार्यकाल मेँ अटल जी अपनी दत्तक पुत्री और दामाद के साथ देश और विदेश मेँ घुमते रहे लेकिन कभी भी किसी ने भी उनकी ज़िन्दगी मेँ किसी स्त्री की कमी को तवज्जो नहीँ दी। तो वही बात आज मोदी के लिये लागू क्यो नहीँ हो रही है? क्योँ आज हम सभी चुनावी समर मेँ ज़बरदस्ती इस अनचाहे मोर्चे को खोलकर बैठ गये हैँ?

अगर हम वाजपेयी जी की निजी ज़िन्दगी का इतना सम्मान करते हैँ तो क्या वही भावनाएँ मोदी जी के लिये महसूस नहीँ कर सकते हैँ? क्या जशोदाबेन और मोदी जी के निजी जीवन मेँ ताकाझांकी ही हमारा प्रमुख काम रह गया है?

अगर आक्रामकता दिखानी ही है तो मोदी के राजनैतिक आचरण, कार्योँ और कमियोँ पर दिखाईये, ना कि उनके व्यक्तिगत जीवन की कतर व्योत कर अपना समय व्यर्थ करने मेँ। एक ही गुज़ारिश है, जिस जशोदाबेन को इतने समय तक अनछुआ छोड़ रक्खा है उसे अब भी वैसा ही रहने दिजिये।

लेकिन लगता है कि कांग्रेस मोदी पर हमला करने का एक भी मौका चूकना नहीँ चाहती है। और इतना असरदार और आकर्षक मुद्दा मोदी के खिलाफ उन्हेँ कभी मिल ही नहीँ सकता था। कांग्रेस का कहना है कि जिस सच को लोगोँ को बताने मेँ मोदी जी ने 46 साल का वक़्त लिया है उसी मोदी की पत्नी जशोदाबेन अपने मुख्यमंत्री पति के रहते हुए भी एक मामूली से स्कूल की टीचर के तौर पर अपना समूचा जीवन जीने को बाध्य रही। मोदी अपना राजनैतिक जीवन संवारते रहे और जशोदाबेन एक सुहागन होते हुए भी परित्यक्ता का जीवन जीने को मजबूर रही। कांग्रेस ने मोदी जी के उस दावे पर भी उंगली उठाई है जिसमेँ मोदी ने कहा है कि चूंकि उनका अपना कोई परिवार नहीँ है इसीलिये उनके भ्रष्टाचार मेँ लिप्त होने का सवाल ही नहीँ उठता है। ”पिछले चार चुनावो मेँ मोदी जी ने अपने शादीशुदा होने का ज़िक्र नहीँ किया था, और इस बार हलफनामा दाखिल कर जब उन्होने ये स्वीकार किया है कि उनकी पत्नी का नाम जशोदाबेन है तो, हम ये जानना चाहते हैँ  कि किस मजबूरी की वजह से वो इतने सम तक चुप रहे, उनकी चुप्पी की वजह क्या है?” शोभा ओझा पूछती हैँ। एक तरफ तो वो एक लड़की का पीछा करवाते हैँ और दूसरी तरफ अपने ‘पति धर्म’ के पालन मेँ कोई दिलचस्पी ही नहीँ लेते हैँ?

ग़ौर तलब है कि जशोदाबेन 62 वर्ष की रिटायर्ड टीचर हैं। मोदी के साथ उनकी 1968 में हुई थी, जब वह नाबालिग थे। आरएसएस प्रचारक बनने के कारण घर छोड़ देने के चलते मोदी वैवाहिक संबंध निभा नहीँ पाये थे। सेवानिवृत्ति के बाद जशोद अपने भाइयों के साथ भी रहीं। करीब 46 साल पहले हुए मोदी के विवाह को एक गरीब और पारंपरिक रूप से पुरातनपंथी परिवार की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। मोदी से अलग होने के बाद जशोदाबेन भी अपने पिता के घर पर रहीं और शिक्षा के क्षेत्र में काम करके अपना जीवन बिताया। अगर जशोदाबेन के परिवार के क़रीबीयोँ की मानेँ तो यह भी कहा जाता है कि मोदी से अलग होने के बाद जशोदाबेन ने कभी दोबारा शादी के बारे में नहीं सोचा और उनकी भी इच्‍छा है मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें।लेकिन मसला चाहे जो भी रहा हो एक सवाल हमेशा उठेगा आखिर किन वजहों से मोदी ने अपनी शादी की सच्‍चाई को कभी सामने नहीं आने दिया? उन्‍हें कई दफा अपनी शादीशुदा स्थिति साफ करने की चुनौती भी मिली, पर एक मंझे राजनेता के तरह वह इस सवाल को बखूबी टालते रहे। मगर अब उन्‍होने खुद आगे बढ़कर इस चुनावी समर के मध्य मेंअपनी निजी ज़िन्दगी की वास्‍तविकता से पर्दा उठाने की दरकार हुई है और इसीलिये चाहे न चाहे उन्‍हें ऐसे सवालों से बार बार असहज न होना ही पड़ेगा। भले ही मोदी के इस क़दम के पीछे कोई बहुत बड़ा राज़  भले ही न हो लेकिन जनमानस ‘जशोदाबेन’ को मिले इस सम्‍मान के पीछे की हक़ीक़त को जानना ज़रुर चाहेगा। चूंकि जनमानस में ‘मोदी लहर’ जो व्‍याप्‍त है।
चलते चलते मेरी तरफ से कुछ शब्द सिर्फ जशोदाबेन के लिये; एक मज़बूत स्त्री, धैर्य और सँयम की प्रतिमूर्ती। संतोष और इंतज़ार के मज़बूत पत्थरोँ से बनी ये इमारत क्या एक पहचान की स्वीकारोक्ति भर से  भरभरा के गिर जायेगी? नहीँ, नारी सम्मान और स्वाभिमान इतना सहज और सस्ता नहीँ है।  ऐसी जशोदा बेन हिन्दुस्तान मेँ भरी पड़ी हैँ… आप सभी को नमन।
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 सोनाली बोस,

लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम –

 

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