असम – जहां मुसलमान भूख से नहीं बल्कि दंगों में मरते हैं

waseem akram tyagi{वसीम अकरम त्यागी**}
देश में सोलहवीं लोकसभा के गठन के लिये वोट डाले जा रहे हैं और इसी बीच असम के जलने की खबर ने भारतीय लोकतंत्र और तथकथित सैक्यूलर पार्टियों के चरित्र पर एक बार फिर सवाल सवालिया निशान लगाया है। असम के कोकराझार और बकसा में लोकसभा चुनावों में कथित तौर पर बोडो उम्मीदवार को वोट न देने पर प्रतिबंधित एनडीबीएफ (एस) उग्रवादियों का बांग्लाभाषी मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा का तांडव जारी है। पिछले 36 घंटों में 32 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है, जिनमें से नौ लाशें शनिवार सुबह मिलीं। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। हिंसा के कारण पश्चिमी असम के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है। सेना भी फ्लैग मार्च कर रही है। बोडो आतंकियों द्वारा बांग्लाभाषी मुस्लिमों की हत्या के पीछे बोडो उम्मीदवार को वोट न देना बताया जा रहा है। बोडो आतंकियों को शक है कि 24 अप्रैल को हुए लोकसभा चुनाव में बांग्लाभाषी मुस्लिमों ने उनके कैंडिडेट को वोट नहीं दिया।

वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि असम के कोकराझार सीट पर पहली बार एक गैर बोडो के जीतने की संभावना और उसकी जीत में वहां के मुसलमानों के योगदान की ही परणिति है बीटीएडी इलाके में हुआ नरसंहार, वहां 32 लोग मारे गए हैं, सभी मुसलमान हैं और मारने वालों ने तीन साल के बच्‍चों को भी नहीं छोडा, असल में वहां त्रणमुल, बीटीए और कांग्रस तीनों ने बोडो उम्‍मीदवार खडा किया, जबकि एक पूर्व उल्‍फा उग्रवादी हीरा निर्दलीय खडा हुआ, इस गैर बोडो को मुसलमानों सहित सभी गैर बोडो ने वोट दिया, खुन्‍नस यही पर है, मीडिया द्वारा प्रसारित बंग्लादेशी मुसलमान के सवाल पर पंकज कहते हैं कि कोकराझार इलाके में मुस्लिम आबादी कई सदियों से हैं सो उन्‍हें अवैध बांग्‍लादेशी ना समझें, इतने बडे नरसंहार पर भाजपा चुप है क्‍यों कहा जाता है कि कथित हमलावर एनडीएफबी संगठन से स्‍थानीय भाजपा नेताओं के अच्‍छे ताल्‍लुकात थे और वे वहां लंबे समय से जातीय आधार पर वोटो के ध्रुवीकरण में लगे थे, राज्य सरकार की नाकामी तो है है क्‍योंकि वहां चुनाव के एक दिन पहले भी टकराव हो चुका था, पंकज चतुर्वेदी देश के नागिरकों को आगाह करते हुऐ कहते हैं कि याद रखें आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्‍हे पाकिस्तान, कश्‍मीर का आतंकवाद तो नजर आता है, लेकिन तमिल आतंकवाद समर्थक वायको या बोडो को वे आतंकवाद मानते ही नहीं , यही देागलापन है इनके देश प्रेम का। पटना के रहने वाले समाजिक कार्यकर्ता फराह शकेब इस हिंसा के लिये संघपरिवार पर निशाना साधते हुऐ कहते हैं कि असम में संघ समर्थित आतंकवादियों ने “मोदी के प्रत्याशी ” को वोट न देने के कारण ये नरसंहार किया है जिस पर कॉंग्रेसी मुख्यमंत्री एवं उन्का प्रशासन खामोश हैं क्यूंकी अप्रत्यक्ष रूप से कॉंग्रेस भी यही चाहती है की मुस्लिम और अलपसंख्यक समुदाय “”बोडो और संघी गुंडों “” के आतंक के साथ उनसे अपनी सूरक्षा सुनिश्चित करणे के लिये चिपकी रहे ये नरसंहार किरन बेदी और राजनाथ सिंह के ब्यान के आलोक मैं भि देखा जाना चाहिये जहाँ ये लोग अपने बयानों में बार बार मनगढ़त बांगलादेशी मुद्दे को हवा दे रहे हैं लेकिन इन्हें अरुणाचल प्रदेश और तामीलनाडु इत्यादि मैं लिट्टे और अलगाववादियों का आतंक नहीं दिखता असम कि हिंसा सुनियोजित है जिसके लिये वातवरण पुरि तरह तैयार हो चुका है क्यूंकि विगत कुछ वर्षों में वहाँ संघ कि सरगर्मी बढ़ी है और आदिवासियों का हिन्दुकरण हुआ और द्वेश कि लकिर खींचीं जा चुकि है नफरत के बीज बोये जा रहे हैं और बस समय समय पर फसल काटी जा रही है असम हिंसा के आलोक में कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं कि खामोशी भि अलपसंख्यक समुदाय को सोचने पर मजबूर कर रही है और आज भारत का अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज असुरक्षित महसूस कर रहा है अपने आप को चारों तरफ से क्यूंकि सरकार या विपक्ष मैं कोइ भि हो अब हिन्दुस्तान कि गँदी राजनिती मैं भ्रश्टाचार बाहुबल धनबल इत्यादि के साथ साथ “निर्दोष मुसलामानों के लहू का तड़का” भी लगता रहेगा ये तो सुनश्चित हो चुका है। हालांकि

वहां एक मंत्री है चंदन ब्रह्मा कोकराझार समेत दो ज़िलों में उसे अल्पसंख्यकों के वोट नहीं मिले यह देखना पड़ेगा कि इस मंत्री का संबंध किस पार्टी से है बता रहे हैं कि इसी गुस्से में NDFB (S) ने अल्पसंख्यकों पर हमला किया यह दरअसल जिस क्षेत्र में है वहां बोडो प्रशासनिक क्षेत्र है। इस मामले में फिर सोचा जाना चाहिए कि क्षेत्रीय मांग पर स्वायत्तता देने के क्या नुकसान हो सकते हैं.ये देश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, यहां अल्पसंख्यकों के जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का काम है, जो इस देश में नहीं हो पा रहा चाहे किसी पार्टी की भी सरकार हो। आमलेंदू उपाध्याय कहते हैं कि असम में जो हो रहा है वह लोकतंत्र और मानवता को शर्मसार करने वाला है। अहम बात यह है कि यह सांप्रदायिक हमले चुनाव के बाद हो रहे हैं। इन हमलों के लिए राज्य सरकार को भी बरी नहीं किया जा सकता। तरुण गोगोई को जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी। इन हमलावरों को भारतीय जनता पार्टी का खुला समर्थन प्राप्त है जो दर्शाता है कि “अच्छे दिन आने वाले हैं” की असल तस्वीर क्या होगी।

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वसीम-अकरम-त्यागी1**वसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार
9927972718, 9716428646
journalistwasimakram@gmail.com
*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

3 COMMENTS

  1. इंसान मर रहे हैं और लोग सिर्फ वोट देख रहे हैं ,कांग्रेस सिर्फ रही करती हैं लोगों को कटवाती हैं और कोई जांच भी नहीं करवाती हैं ,एक बार सी बी आई जांच हो जाए तो ये सी एम् साहब ही दोषी निकलेंगे

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