आई एन वी सी,
लखनऊ,
लखनऊ सोसाइटी द्वारा प्रसिद्ध प्रगतिशील उर्दू साहित्यकार अली सरदार जाफरी के १००वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में ”अली सरदार जाफ़री-सरदार-ए-सुख़न” शीर्षक से आज स्थानीय जयशंकर सभागार में एक आयोजन किया गया। कवि-शायर निर्मल दर्शन ने विषय प्रवर्तन करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा पाकिस्तान की सद्भावना यात्रा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भेंट के रूप में अली सरदार जाफ़री की पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि इससे सरदार की साहित्यिक स्तर और महत्व का पता चलता है. सोसाइटी के आतिफ हनीफ ने अली सरदार जाफ़री के परिवारीजनों नाज़िम जाफ़री और नूरजहाँ मेहनाज़ जाफ़री द्वारा उपलब्ध कराये गए चित्रों का मल्टी-मीडिया प्रेज़ेंटेशन किया, जिससे सरदार के जीवन् की झलकियां मिलती हैं। मेहदी जाफ़री ने उनके जन्मस्थान बलरामपुर से लेकर लखनऊ विश्वविद्यालय मे शिक्षा और अन्य स्थानों से उनके सम्बंध मे प्रकाश डाला। वरिष्ठ पत्रकार शाहनवाज़ क़ुरैशी ने बताया की अली सरदार केवल एक शायर ही नहीं थे बल्कि फिल्म, पत्रकारिता और राष्ट्रीनय-सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए बहुआयामी साहित्यकार थे। रज़ा जाफ़री ने कहा कि अली सरदार जाफ़री कि ”लखनऊ कि पांच रातें” न केवल उर्दू साहित्य कि वरन लखनऊ की प्रष्ठभूमि की महत्वपूर्ण पुस्तकों मे से एक है, और उन्होने ‘कहकशां’ नाम से २०वीं सदी के उर्दू के प्रसिद्ध शायरों पर आधारित धारावाहिक भी बनाया जो आज तक लोग याद करते है। मिर्ज़ा शफीक़ हुसैन ने अपने वक्तव्य मे कहा कि अली सरदार कैसे इतना महत्वपूर्ण साहित्यिक और सामाजिक योगदान करने को प्रेरित हुए। उन्होने बताया कि वो उर्दू के चार ज्ञानपीठ से सम्मानित रचनाकारों मे से एक है। मुख्य अतिथि जुस्टिस हैदर अब्बास रज़ा ने कहा कि वो न केवल बीती सदी के सर्वाधित महत्वपूर्ण शायरों मे से थे बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत को सम्हालने वाले अंतिम शायरों मे थे। उनकी शायरी ने राष्ट्री य-सामाजिक चेतना के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम मे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध लेखक-आलोचक प्रो. शारिब रुदौलवी ने कहा कि भाषा और कथन की दृष्टि से वो अनोखे रचनाकार थे और शिल्प मे वो अपने समकालीनों मे सबसे अलग थे। शारिब साहेब ने बताया कि सरदार ने प्रथम प्रगतिशील लेखक आंदोलन की अध्यक्षता की थी और ”नया अदब” नामक पत्रिका का संपादन भी किया था। कार्यक्रम की शुरुआत मे प्रसिद्ध युवा ग़ज़ल-सूफ़ी गायक चिन्मय त्रिपाठी ने अली सरदार के कलाम को अपनी रेशमी आवाज़ मे सजाया. लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक और सचिव ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम करना सोसाइटी के लिये गर्व कि बात है। २०११ मे मजाज़ पर केन्द्रित कार्यक्रम किया गया था और २०१२ मे मंटो को समर्पित ‘दास्तानगोई’ का आयोजन हुआ था। ये सब लखनऊ सोसाइटी द्वारा आयोजित लखनऊ लिटररी फेस्टिवल का एक हिस्सा है जो इस वर्ष २३-२४ मार्च को संपन्न हुआ था और आगामी इसका द्वतीय संस्करण १-२ फ़रवरी को आयोजित होना प्रस्तावित है।