अरुण जैमिनी हरियाणवी भाषा एवं संस्कृति का गौरव है : ऋतु गोयल

Picture 007सजय राय,
आई एन वी सी,
हरियाणा,
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अकादमी सभागार में आयोजित 13वीं मासिक गोष्ठी के दौरान सुप्रसिद्घ हास्य कवि श्री अरुण जैमिनी ने समसामयिक सामाजिक विसंगतियों एवं कुरीतियों पर तीखा व्यंग्य कर श्रोताआें का भरपूर मनोरंजन किया। अकादमी निदेशक डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’ ने कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि रू-ब-रू कार्यक्रम में सुपरिचित कवयित्री सुश्री ऋतु गोयल, नई दिल्ली विशेष आमंत्रित कवयित्री के रूप में पधारी। उन्होंने कहा कि अरुण जैमिनी हरियाणवी भाषा एवं संस्कृति का गौरव है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति का विदेशों में भी परचम लहराया है। विशेष आमंत्रित कवयित्री सुश्री ऋतु गोयल ने अपनी कविता का पाठ किया। उन्होंने माँ और पिता की अहमियत पर भावभीनी कविता सुनाई। उनकी कविताओं के कुछ अंश – माँ संवेदना है / पिता कथा / माँ आँसू है / पिता व्यथा / माँ प्यार है / पिता संस्कार / माँ दुलार है / पिता व्यवहार / दरअसल पिता वो-वो है जो-जो माँ नहीं है / ये बात कितनी सही है।

पिता हो तो घर स्वर्ग होता है /
पिता ना हो तो उनकी स्मृतियां भी अपना फर्ज निभाती है /
पिता की तो तस्वीर से भी दुआएं आती हैं।

मुख्य अतिथि के रूप में श्री अरुण जैमिनी ने अपने हरियाणवी चुटकुलों के माध्यम से समसामयिक सामाजिक विसंगतियों एवं कुरीतियों पर तीखा व्यंग्य करते हुए श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। उनके काव्य पाठ के दौरान हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। उनकी हास्य कविताओं के कुछ अंश –

इंटरव्यू में पूछा गया एक सवाल / राधे ने बना दिया बवाल /
आप सेब खरीदने जाओगे तो पचास रुपये किलो के हिसाब से सौ ग्राम के कितने पैसे देकर आओगे,
साहब सौ ग्राम के सेब के भी पैसे दूंगा तो पुलिस में क्या ऐसी-तैसी करवाउंगा…..
राधे श्याम तूने छोटी-सी बात का बना बवाल /
सर मुझे तो शुरू से ही नहीं पसंद था आपका सवाल।

अकादमी निदेशक डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’ ने कहानी का मूल लोककथा को बताते हुए कहा कि लोक कथा आज भी कहानी से अधिक मारक तथा प्रभावी है जिसकी शक्ति उसकी लोक भाषा व उसका मुहावरा है। उन्होंने इस अवसर पर दो लोककथाएं भी सुनाई। उनकी ़गज़ल की बानगी –

खुद को कितना छोटा करना पड़ता है / बच्चों से समझौता करना पड़ता है।
पहले डरते थे बच्चे मात-पिता से / अब बच्चों से डरना पड़ता है।

इस अवसर पर स्थानीय कवियों में श्रीमती इन्द्र वर्षा, श्रीमती संगीता बेनिवाल, डॉ० कमलेश खोसला, डॉ० जगमोहन चोपड़ा तथा श्री विजेन्द्र गाफिल ने भी कविता पाठ किया।

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