– तनवीर जाफरी –
हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करने वाले इस आयोजन में प्रधानमंत्री ने अपने लगभग आधे घंटे के संबोधन में शुरुआती दो मिनट हज़रत हुसैन की शहादत तथा इसके महत्व पर प्रकाश डाला। इसके बाद के लगभग दो मिनट बोहरा समाज की प्रशंसा तथा भारत में बोहरा समाज की भूमिका पर रौशनी डालने में खर्च किए तथा शेष लगभग 25 मिनट का भाषण पूरी तरह से अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करने पर आधारित रहा। विश£ेषकों द्वारा उनका इंदौर में इस आयोजन में शरीक होना पूरी तरह से राजनैतिक व चुनावी कदम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि शीघ्र ही मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने जा रहे हैं।
बहरहाल, प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में शिरकत व हज़रत हुसैन के साथ-साथ दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रति दर्शाए गए उनके प्रेम को लेकर तरह-तरह की अटकलबाजि़यां लगाई जा रही हैं। कुछ लोगों का मत है कि प्रधानमंत्री का इस कार्यक्रम में संबोधन भारत में शिया व सुन्नी समाज को विभाजित करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। जबकि कुछ का यह मानना है कि दाऊदी बोहरा समाज गुजरात का सुदृढ़ व्यापारी समाज होने के नाते विभिन्न राजनैतिक दलों खासतौर पर सत्तारूढ़ राजनैतिक दल को आर्थिक सहायता देता है। लिहाज़ा प्रधानमंत्री का यह दौरा भी पूरी तरह से इसी लक्ष्य को समर्पित था। तो कुछ लोग इसे मध्य प्रदेश के भोपाल,उज्जैन व इंदौर जैसे महानगरों में बोहरा समुदाय के लोगों की अच्छी-खासी संख्या व आने वाले चुनाव में इस समुदाय से मिलने वाले लाभ से जोडक़र देख रहे हैं। कारण जो भी हो परंतु इतना ज़रूर है कि अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उनकी इन बातों का देश की राजनीति,भाजपा व इसके शीर्ष नेताओं की भाषण शैली तथा विचारों में परस्पर कितना विरोधाभास नज़र आता है इसे भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि गुजरात की 9 प्रतिशत मुस्लिम आबादी में बोहरा समुदाय के लोगों की संख्या केवल एक प्रतिशत है। परंतु यह समुदाय शिक्षित,सुदृढ़,संपन्न तथा व्यापारी समुदाय माना जाता है। इस समाज के लोगों ने जल संरक्षण,पर्यावरण,शिक्षा तथा स्वासथ्य के क्षेत्र में राज्य सरकारों के समानांतर कई विकास कार्यों में अपनी भागीदारी निभाई है। लिहाज़ा देश के निर्माण में इस छोटे से समुदाय की रचनात्मक भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
बोहरा समाज बावजूद इसके कि हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को पुरज़ोर तरीके से मनाता है। परंतु यह भी सच है कि भारत में मौजूद शिया समुदाय के लोगों का इस समुदाय के साथ कोई विशेष रिश्ता-नाता नहीं है। बोहरा समाज के लोग शादी-विवाह तथा दूसरे सामुदायिक मामलों में किसी दूसरे समुदाय के साथ अधिक वास्ता नहीं रखते। अत: यह अंदाज़ा लगाना कि बोहरा समाज के किसी कार्यक्रम में जाकर शिया व सुन्नी समाज में दरार डालने की कोशिश की गई है,मुनासिब नहीं है। हालंाकि भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी काफी पहले ही यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी शिया व सुन्नी समुदाय को विभाजित करना चाहती है। दूसरा विरोधाभासी तथ्य यह भी है कि बोहरा समाज के जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने शिरकत की और इस समाज की तारीफ के पुल बांधे इसी समाज के लोग गुजरात में 2002 में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा में सबसे अधिक प्रभावित हुए थे। इनके सैकड़ों कारोबारी प्रतिष्ठान व मकान आदि तबाह कर दिए गए थे। न जाने किन परिस्थितियों में उस समय इस समाज की राष्ट्र के प्रति कुर्बानियां गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान प्रधानमंत्री को याद नहीं आ सकीं?
प्रधानमंत्री ने हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को अन्याय व अहंकार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने से तो जोड़ा ही साथ-साथ इसे अमन व इंसाफ के लिए दी गई शहादत भी बताया। इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं खासतौर पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के अमित शाह द्वारा विभिन्न स्थानों पर दिए जा रहे भाषण,उससे निकलने वाले संदेश तथा भाषण शैली पर भी नज़र डालना ज़रूरी है। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों अमित शाह ने राजस्थान में अपने एक भाषण में कहा कि-‘अखलाक और अवार्ड वापसी के बाद भी भाजपा ने जीत दर्ज की थी’। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भाजपा 2019 में सत्ता में आती है तो अगले पचास वर्षों तक उसे सत्ता से हटाया नहीं जा सकता’। अब ज़रा प्रधानमंत्री की हज़रत इमाम हुसैन के प्रति श्रद्धांजलि के दौरान प्रयोग किए गए शब्दों की अमित शाह के शब्दों से तुलना कीजिए तो इनमें साफतौर से विरोधाभासनज़र आएगा। अखलाक़ उस दुर्भाग्यशाली व्यक्ति का नाम था जिसे कट्टर हिंदुत्ववादियों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। इस हत्याकांड के बाद हत्यारों के पक्ष में भाजपा के अनेक मंत्री व नेतागण खड़े दिखाई दिए थे। इस घटना में भाजपा नेताओं का भी सीधा हाथ था। इस अमानवीय घटना पर अफसोस ज़ाहिर करने के बजाए अमित शाह साहब यह फरमा रहे हैं कि इस घटना के बाद भी वे जीते? दूसरी ओर प्रधानमंत्री हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को ज़ुल्म व अहंकार के विरुद्ध बता रहे हैं। ऐसे में एक ओर ज़ालिम व हत्यारों के पक्ष में खड़े होना,दूसरी ओर हज़रत इमाम हुसैन जैसे शहीद की कुर्बानी पर अफसोस ज़ाहिर करना विरोधाभास नहीं तो और क्या है। इसके अलावा पचास वर्षों तक सत्ता में बने रहने का दंभ भी उसी अहंकार की निशानी है,प्रधानमंत्री के अनुसार जिसके विरुद्ध हज़रत हुसैन ने आवाज़ उठाई थी। अत: प्रधानमंत्री की हज़रत हुसैन को श्रद्धांजलि तो ज़रूर स्वागत योग्य है और इसका निश्चित रूप से सम्मान किया जाना चाहिए। परंतु यदि इसे वयक्तिगत् सामाजिक व राजनैतिक जीवन में भी चरितार्थ करने की कोशिश की जानी चाहिए। यदि हज़रत हुसैन की शिक्षाओं को लेकर कथनी व करनी में फर्क न किया जाए तो हज़रत इमाम हुसैन के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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