लेखक ,कवि ,चित्रकार ,निर्देशक व् कलाकार मानव कौल से आई एन वी सी न्यूज़ की सह -संपादिका सोनाली बोस की ख़ास बातचीत
जिस तरह ठंड की अकड़न भरी सर्द रात के सीलेपन को सुबह का खिलता सूरज पिघला देता है उसी तरह बदलते हुए मौसम की मानिंद हिन्दी सिनेमा में भी अक्सर बहुत सारे सुखद और खुशनुमा बदलाव नज़र आते हैं | अक्सर स्टार और ग्लैमरस छवी के भीड़ भरे माहौल से जुदा कुछ ऐसे कलाकार सिनेमा पटल पर दस्तक देते हैं जो अपनी परफॉरमेंस से दर्शकों के दिलों में एक अलग ही छाप छोड़ जाते हैं| चमक- दमक और पेड़ों के गिर्द भीड़ के साथ नाचने गाने के अलावा सिर्फ अपनी अभिनय क्षमता के बल पर लोगों के दिलों पे छा जाने का माद्दा हर किसी के बस की बात नहीं है|
कुछ इसी तरह की खुशनुमा बयार लिए 2013 की Kai Po Che में अपनी भोली और मासूम मुस्कराहट के पीछे एक धूर्त और चालाक दिमाग और मिज़ाज वाले एक ऐसे किरदार में हमसे रूबरू हुए थे मानव कौल जो कि एक नेता है और 2002 के गुजरात दंगों के लिए ज़िम्मेदार भी| इस फिल्म में मानव ने जानबूझ कर एक ऐसे नेता के रोल को चुना था जो कि एक शातिर नेता तो है मगर एक क्लास और रूतबे वाला | इस किरदार को निभाते वक़्त मानव के चेहरे पर पूरे समय एक मुस्कराहट खेलती है और ग़र मैं ये कहूं कि वही मुस्कान तो मानव का ट्रेडमार्क है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा|
चूंकि मानव इन दिनों अपनी आगामी फिल्म ‘जय गंगाजल ‘ के प्रमोशन के सिलसिले में देशभर के चक्कर लागने में व्यस्त रहे इसीलिये उनसे मेरी ये मुलाक़ात टेलीफोनिक ही रही| उनके इस busy schedule के बीच हमने कुछ वक़्त निकाल कर एक आधे घंटे का वक़्त निकाल ही लिया और मैं मानव की मुस्कुराती हुई आवाज़ के ज़रिये उनके आसपास के माहौल को भी अपनी कलम में उतारने में सफल हुई हूं ऐसा मैं मानती हूँ| मानव को चाय का बेहद शौक है और जब उनसे बात हो रही थी तभी भी वो अपनी पसंदीदा अदरक की चाय ही पी रहे थे|
मानव बस अभी कुछ दिन पहले ही अपनी फिल्म जय गंगाजल के हेक्टिक schedule को फिनिश कर वापिस मुंबई में लौटे हैं| मगर मैं उनसे अभी इस फिल्म के बारे में कोई बात नहीं करूंगी बल्कि अभी तो मैं उस मानव से बात करना चाह रही हूँ जो कि काफी सारे उतार चढ़ाव और स्ट्रगल के दौर को जिते हुए यहाँ तक पहुंचा है| होशंगाबाद का ये कश्मीरी लड़का आज ‘वजीर’ की सफलता को चूमता हुआ एक ऐसे मुकाम पर खडा है जहां सभी को उसने अपनी प्रतिभा का लोहा मानने पर मजबूर कर दिया है|
‘वज़ीर’ की कामयाबी पर बधाई देने के साथ हमारी बात शुरू होती है,” इस फिल्म में मेरे बमुश्किल तीन सीन्स हैं, और मैंने इस फिल्म में एक ऐसे मिनिस्टर का रोल किया है जो कि जैसा दिखता है वैसा है नहीं और जो सिस्टम में बेहद दुखद घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है| ये रोल जब मुझे ऑफर हुआ था तो मैंने पहले दो बार इसे ना कर दिया था लेकिन जब ये फिल्म रिलीज़ हुई और मैंने अपना रोल देखा तब जाकर मुझे महसूस हुआ कि मेरा किरदार कितना अहम है और किस तरह से पूरी फिल्म मेरे इस किरदार के इर्द गिर्द ही घूम रही है |’’ अपनी फिल्म के बारे में बात करते हुए मानव आगे कहते हैं कि ,’’जब मैंने बच्चन साहब को मेरे साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करने के लिए शुक्रिया कहा तो उन्होंने कहा,’ आपने बहुत अद्भुत काम किया है’, और किसी कलाकार के लिए बच्चन साहब के मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना किसी भी बड़े अवार्ड से कम नहीं है| “
बतौर एक कलाकार कौल की पहली मूवी 2003 में आई ‘जजंतरम ममंतरम’ थी| लेकिन उनकी प्रतिभा को असली पहचान उनकी हालिया रिलीज़ मूवीज़ में ही मिली है| मानव अपने रोल्स को पॉपुलैरिटी से नहीं वरन potentiality से चुनते हैं जैसे कि ‘’Kai po chhe ‘’ का मिनिस्टर या फिर 2014 में आई ‘’Citylights’’ का security man | ‘’ मुझे नेगेटिव या पॉजिटिव रोल्स पर यकीन नहीं है, मैं अपने किरदारों को मानवीय आचरण के आईने से देखता हूँ| और मेरे हर किरदार का बर्ताव आस पास के माहौल के मद्देनज़र ही होता है|’’ मानव कहते हैं|
जिस तरह से मानव के आज तक के हर किरदार का रंग दूसरे से जुदा रहा है ठीक उसी तरह उनके जीवन का हर पहलू भी एक अलग ही रंग में ढला है| उनका जन्म जम्मू कश्मीर के बारामूला नामक शहर में हुआ जहां उन्होंने बचपन का एक अरसा बिताया है| एक कश्मीरी पंडित परिवार में जन्म लेने की वजह से उन्होंने उस त्रासदी को भी झेला है जिसकी वजह से हज़ारों दूसरे कश्मीरी पंडित परिवारों की तरह उनके परिवार को भी अपनी सारी जायदाद और घर छोड़कर कश्मीर से पलायन करना पडा था| आज वो मुंबई में ‘यारी रोड’ के अपने फ्लैट में रहते हैं जहां उनके घर की दीवारें उनकी बनाई हुई पेंटिंग्स से शोभित हैं| पेंटिंग्स के अलावा उनके नाटकों के पोस्टर्स भी इस फ्लैट में सभी ओर लगे हैं लेकिन इन सबके बीच भी उस पुश्तैनी घर की दीवारों की महक रह रह के एक टीस बन कभी कभार उभर ही जाती है| मानव बातचीत में आगे बताते हैं,’’ मुझे आज भी ख्वाजा बाग का मेरा वो घर याद है, मेरे ज़हन में उस घर की दीवार और उसका एक एक कोना आज भी याद बन महकता है|’’ मानव बताते हैं, “ मैं क्लास 5 के बाद अपनी माँ के साथ मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में रहने चला आया था लेकिन छुट्टियों में और कभी कभी बीच में भी मैं अपने पापा के पास श्रीनगर जाया करता था| आगे बात बढाते हुए मानव कहते हैं कि ‘’ मुझे आज भी वो लम्हा अच्छी तरह याद है जब बचपन में हम एक फिल्म देखने सिनेमाघर गए थे और किसी सांप्रदायिक तनाव की वजह से वो फिल्म बीच में ही रोकनी पड़ी थी और सिनेमाघर बंद कर दिया गया था| मेरे पिताजी को भी अपना काम और कश्मीर छोड़ना पड़ा था क्योंकि एक आतंकी हमले में उनका ऑफिस उड़ा दिया गया था| उस वक़्त मैं बहुत छोटा था लेकिन जो तनाव और परेशानी मेरे परिवार ने उस वक़्त झेली थी वो आज भी मुझे कहीं भीतर तक तक़लीफ़ देती है|’’ अपना बाकी का समय मानव ने होशंगाबाद में बिताया जहां नर्मदा नदी में बचपन की दोस्तों के साथ की हुई मस्ती ने उन्हें एक स्टेट लेवल के swimmer के तौर पर तय्यार किया| नदी की गहराई नापते नापते हिन्दी साहित्य के रत्न भी मानव ने अपनी माँ के सान्निध्य में बखूबी बटोरे और इसी साहित्यिक अभिरूची की वजह से मानव कलम के एक मज़बूत सिपहसालार के रूप में भी उभरे हैं|
‘’बचपन में मैं अपने दोस्तों के साथ लोगों के द्वारा नर्मदा नदी में फेंके हुए सिक्के बटोरने के लिए गोते लगाया करता था ताकि उन बटोरे हुए पैसों से अपने लिए नाश्ता जुगाड़ सकूं| अपनी ज़रूरत और दोस्तों के साथ मस्ती के चलते कब मैं एक अच्छा तैराक बन गया ये मैं जान ही नहीं पाया| और 18 साल का होते होते मेरी गिनती देश के पहले तीन तैराकों में होने लगी थी….. लेकिन मैंने अपना ये करियर थिएटर के शौक के लिए पीछे छोड़ दिया |’’ नाटकों के शौक के लिए नेशनल लेवल का स्विमिंग करियर छोड़ना मानव के लिए आसान नहीं था, ‘’एक दिन जब अपने गाँव में मैंने एक नुक्कड़ नाटक देखा तो मुझे लगा कि यही वो चीज़ है जो मुझे चाहिए’’, मानव बताते हैं| और फिर एक संभावनाओं से भरा जीवन छोड़कर ये जुनूनी कलाकार होशंगाबाद छोड़कर एक दिन मुंबई रवाना हो ही गया| उन्हें आज भी वो दिन बखूबी याद है जब मानव पहली बार मुंबई पहुंचे थे,’’ सभी यात्रियों के उतर जाने के बाद भी मैं ट्रेन में ही अकेला इंतज़ार करता रहा कि आख़िर बॉम्बे स्टेशन आ क्यों नहीं रहा है तब वहीं पर किसी ने मुझे बताया कि यही तो बॉम्बे है| “
और उस दिन से लेकर आज तक इन 17 सालों में मानव ने कई उतार चढ़ाव देखते देखते इस मायानगरी को अपनी कर्मस्थली बना ही लिया| उन्होंने रेलवे स्टेशन में रात बिताने से लेकर 5 दूसरे एक्टर्स के साथ रूम भी शेयर किया| मानव को गुलशन कुमार के मर्डर में एक संदिग्ध के बतौर पुलिस ने पकड़ा भी मगर बाद में बा इज़्ज़त छोड़ भी दिया| उन दिनों को याद करते हुए मानव बताते हैं,” हम रात को देर से सोते थे और दिन में काफी देर से उठते थे ताकि हमें नाशता वगैरह ना करना पड़े क्योंकि तब हमारे पास दो वक़्त के खाने के लिए भी पूरे पैसे नहीं होते थे| लेकिन ऊपर वाले का शुक्र है कि उसने मुझे सत्यदेव दुबे जी से मिलवाया जिन्होंने मुझे नाटकों के असली रूप से पहचान करवाई|’’ बहुत जल्दी मानव कौल थिएटर की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम बन गया लेकिन अभी भी कहीं कुछ ऐसा था जो उन्हें भीतर कहीं कटोच रहा था, कुछ कमी थी जिसका पूरा होना लाज़मी था, “ साल २००३ में मैंने अपना पहला नाटक ‘शक्कर के पांच दाने’ लिखा और ये निश्चय किया कि अब और एक्टिंग नहीं करूंगा क्योंकि मैं उन किरदारों से काफी नाखुश था जो मुझे निभाने के लिए ऑफर किये जा रहे थे| ‘’ और फिर देखते ही देखते मानव कौल मुंबई थिएटर की दुनिया का एक मशहूर और नामचीन लेखक निर्देशक बन गया| मानव के नाटकों में कविता और हौसला स्वाभाविक तरीके से बहते हैं फिर चाहे वो ‘’इल्हाम ‘’ हो ‘’बाली और शंभू ‘’ हो या उनका लेटेस्ट नाटक ‘’colour blind’’ हो| उनके नाटकों के किरदार जीवन के फलसफे को समझने की कोशिश में लगे दिखाते हैं और हमेशा खुद से और समाज से सवाल करते भी| लेकिन आख़री में वो सभी अपने आप से संतुष्ट नज़र आते हैं फिर भले ही उनका सवाल लाजवाब ही क्यों ना रह गया हो|
‘’मुझे कहानी से कोई फर्क नहीं पड़ता वो चाहे कैसी भी हो, मेरा सारा इंटरेस्ट मेरे करैक्टर के पर्सनल स्पेस में होता है| मुझे ये जानने में इंटरेस्ट होता है कि आपके साथ क्या हुआ है, आप कैसे और क्यों बदले हैं, आप कैसे ज़िंदगी बिता रहे हैं, और आप की मौत कैसी हुई है| और यही मेरे लिए एक किस्सागोई होती है| मैं कभी भी कहानी निर्देशित नहीं करता हूँ बल्कि मैं तो भावनाओं को एक सूत्र में पिरोता हूँ|’’ मानव कहते हैं|
कौल के लिए निजी अनुभव और मानवीय रिश्ते ही ऐसे दो पहलू हैं जिन्होंने उन्हें हमेशा प्रेरित किया है| मानव कहते हैं,’’ दोस्तों के साथ समय बिताते हुए और खाली वक़्त में चाय और कॉफ़ी के प्यालों के बीच मैंने खुद को तलाशा है| मेरे दोस्त, मेरे जीवन में आईं महिला दोस्त और उनका प्यार, मेरा खालीपन और अकेलापन और मेरे जीवन की ग़लतियाँ ये सभी मेरी कहानियों का एक अहम् हिस्सा हैं|’’
मानव के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ 2012- 13 के दौरान आया | थिएटर के ज़रिये रोज़मर्रा के खर्चे भी बमुश्किल निकल पा रहे थे और मानव ने अपनी सारी जमा पूंजी ‘’हंसा’’ नाम की फिल्म में लगा दी थी जिसके ज़रिये वो पहली बार बतौर निर्देशक एक नई शुरुआत करने जा रहे थे| ‘’ मैं पूरी तरह से कंगाल होने की कगार पर था और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अपने ऊपर पड़े हुए कर्जों को कैसे अदा करूं, मैं हालातों से हार चुका था और मुंबई छोड़ कर वापस होशंगाबाद जाने का मन बना चुका था कि तभी मुझे काए पो छे के कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबडा के ऑफिस से फोन आया|’’ वैसे तो इस फिल्म में मानव के अलावा और भी तीन दूसरे लीडिंग करैक्टर थे लेकिन फिर भी दर्शकों और क्रिटिक की नज़रों पर कौल का हुनर चढ़ चुका था| मानव मानते हैं कि काए पो छे में काम करना एक बेहद बढ़िया अनुभव था मगर एक्टिंग का असली मज़ा उन्हें हंसल मेहता निर्देशित ‘’City Lights’’ में ही आया| मानव बताते हैं.’’ उन दिनों मैं स्टेज और राइटिंग में कुछ इस तरह मशगुल था कि एक एक्टर के तौर पर मैं खुद को पहचान ही नहीं पा रहा था| लेकिन ‘’City Lights’’ के दौरान जैसे मेरे भीतर कहीं कुछ नया जन्मा| मुझे वैसा ही महसूस होने लगा जैसा कि मेरे कलाकारों को महसूस होता होगा जब वो मेरे नाटकों में काम करते थे| उस फिल्म के दौरान मेरा एक कलाकार के रूप में दुबारा जन्म हुआ था|
आज, मानव अपनी ज़िंदगी के इस नए पहलू को बेहद एन्जॉय कर रहे हैं जहां वो नए कलाकारों के साथ काम करना भी एन्जॉय कर रहे हैं और थिएटर भी| आज जहां एक तरफ मानव ‘’जय गंगाजल’’ नाम की पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म का एक अहम् हिस्सा हैं वहीं फ़िलहाल उन्होंने तीन ऐसी फ़िल्में भी की हैं जिसके लिए उन्होंने कोई भी मेहनताना नहीं लिया है| मानव बताते हैं, ‘’ हमने अभी ‘’अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’’ जिसका खर्च काफी हद तक जनता ने ही दिया है उसे पूरा किया है| मेरी दूसरी फिल्म है बिजॉय नांबियार के निर्देशन में बनी ‘’दोबारा’’ जो कि एक ख़ूबसूरत प्रेम कहानी है और जो तीसरी फिल्म मेरी आ रही है उसका नाम है पुलकित सिंह की ‘’मैरून’’ जो कि एक सायकोलोजिकल थ्रिलर है| इन सभी फिल्मों में मेरी कमाई इतनी नहीं हुई है लेकिन एक कलाकार के तौर पर इन सभी फिल्मों ने मुझे बेहद अमीर बनाया है| एक्टिंग एक बहुत बड़ा झूठ है और आप किस तरह इस झूठ को अपने दिमाग में बैठा कर जीवन के सच से रूबरू करवाते हो वही सबसे बड़ा आर्ट है|’’
मार्च में मानव कौल की ‘’जय गंगाजल’’ फिल्म आ रही है जिसमें वो प्रकाश झा और प्रियंका चोपड़ा के साथ हैं और इन दिनों इस फिल्म के धुआंधार प्रचार में बेहद मशगुल भी रहे हैं| लेकिन अभी भी उनका दिल खाली समय में पहाड़ों की बुलंदियों में खो जाना चाहता है| मार्च के महीने में ही मानव द्वारा लिखी हुई लघु कहानियों की एक किताब भी आ रही है जिसका शीर्षक है ‘’ठीक तुम्हारे पीछे’’| मानव instagram में भी काफी मसरूफ हैं और फेसबुक में उनके लेटेस्ट updates इन दिनों ‘’जय गंगाजल’’मय हैं| लेकिन उनका whatsapp स्टेटस कहता है….. ‘’ I will fly one day’’ | आमीन.. मानव कौल… सुम्मा आमीन .. आप इसी तरह कलाकारी के नए आयाम छूते रहें और सफलता की बुलंदियों पर आप उड़ते रहें |