– निर्मल रानी –
शरद ऋतु की शुरुआत होने के साथ-साथ देश में वायु प्रदूषण विशेषकर धुंआ व कार्बनडाईक्साईड युक्त प्रदूषण तेज़ी से फैलने की खबरें आनी फिर शुरु हो गई हैं। देश की राजधानी दिल्ली में तो प्रदूषण इस कद्र बढ़ता जा रहा है कि प्रत्येक वर्ष दिल्ली प्रदेश तथा केंद्र सरकार को मिल कर युद्ध स्तर पर इससे निपटने का प्रबंध करना पड़ता है। वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में पेट्रोल,डीज़ल, कोयला,लकड़ी,गोबर के उपले,उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाला धुंआ, खेतों में जलाई जाने वाले फसलों की कटाई के अवशेष,सरकारी सफाई कर्मचारियों द्वारा जगह-जगह कूड़ा इक_ा कर उनमें आग लगा दिया जाना,जगह-जगह नागरिकों द्वारा अपने पास-पड़ोस में कूड़े के ढेर को अग्रि के हवाले किये जाने जैसी वजहें शामिल हैं। सर्वविदित है कि इस प्रकार का वायु प्रदूषण जहां अस्थमा,सांस की अन्य बीमारियां,तपेदिक़ व गले से संबंधित बीमारियों का कारण बनता है वहीं कैंसर के भी अधिकांश मरीज़ इसी प्रदूषित वातावरण की देन होते हैं। पैट्रोल जनित प्रदूषण दिमाग,लीवर,रक्त तथा किडनी में समा जाता है। जिसके कारण मस्तिष्क घात,लकवा,दौरा पडऩा यहां तक कि इन्हीं बीमारियों से मौत हो जाने तक की संभावना बनी रहती है। इसी कारण विश्व के अनेक विकसित देशों में पेट्रोल में लेड की मात्रा समाप्त कर दी गई है जबकि भारत में लेड की मिलावट बदस्तूर जारी है।
खतरनाक वायु प्रदूषण के चलते ही केवल दिल्ली जैस्ेा महानगर में फेफड़ों की बीमारियों से संबंधित मरीज़ों की संख्या सबसे अधिक है। यहां के वातावरण में नाईट्रोजनऑक्साईड, सल्फरऑक्साईड, कार्बनमोनोऑक्साईड, लेडऑक्साईड जैसी ज़हरीली गैसों की मात्रा सामान्य अथवा सुरक्षित मात्रा से बीस गुणा से भी अधिक है। यही वजह है 26 जनवरी 2015 को देश की सबसे प्रतिष्ठित गणतंत्र दिवस परेड में राजपथ पर परेड के मुख्य अतिथि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने परेड स्थल पर अधिक समय तक न बैठ पाने का अनुरोध केवल इसीलिए किया था क्योंकि उस समय राजपथ पर प्रदूषण की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक थी। वायु प्रदूषण को लेकर और भी कई अवसर पर देश को बदनामी का सामना करना पड़ा है। अनेक निवेशक तथा अप्रवासी भारतीय इसी प्रदूषित वातावरण से दु:खी होकर देश छोडक़र चले गए। साफ-सुथरे व शुद्ध वातावरण में रहने का आदी दुनिया का कोई भी व्यक्ति प्रदूषित वातावरण की खबर सुनकर भारत आना पसंद नहीं करता।
उधर सरकारें हैं कि या तो सर्दियों के शुरु होते ही प्रदूषण से निपटने के नाम पर ताल ठोक कर मैदान में आ जाती हैं या फिर पंजाब व हरियाणा जैसे प्रमुख कृषि उत्पादक राज्यों में फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेष को जलाने के विरुद्ध सरकार का प्रचार या हो-हल्ला सुनाई देता है। इस बार भी केंद्र सरकार तथा दिल्ली सरकार द्वारा राजधानी में प्रदूषण से निपटने हेतु 44 टीमें बनाई गई हैं। दिल्ली में कूड़ा-करकट व प्लास्टिक जलाने वालों पर कठोर कार्रवाई किए जाने की चेतावनी दी गई है। राजधानी में होने वाले निर्माण कार्य व इसमें बरती जाने वाली लापरवाही पर नज़र रखी जा रही है। प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं रखने वाले वाहनों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई किए जाने का प्रस्ताव है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजधानी में दस वर्ष पुराने डीज़ल ईंजन से चलने वाले वाहन तथा पेट्रोल चलित 15 वर्ष पुराने वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके पूर्व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) द्वारा भी ऐसा ही आदेश जारी किया गया। सवाल यह है कि क्या इस प्रकार के प्रत्येक वर्ष किए जाने वाले उपाय प्रदूषण को नियंत्रित कर पाने के लिए पर्याप्त हैं? कुछ जानकारों का तो यह भी मानना है कि दस-पंद्रह वर्ष पुराने डीज़ल व पैट्रोल वाहनों को प्रतिबंधित करने की सरकार की मंशा के पीछे की मंशा भी लोकहितकारी होने के बजाए उद्योगपतियों का हित साधने वाली है।
दरअसल वायु प्रदूषण को नियंत्रित न रख पाने में जहां देश की जनता काफी हद तक जि़म्मेदार है वहीं कई सरकारी विभागों के लोग भी प्रदूषण नियंत्रण को लेकर गंभीर नहीं हैं। सर्दियां शुरु होते ही प्रात:काल से लेकर देर रात तक उठने वाले धुएं का कारण वह लोग हैं जो रेलवे स्टेशन,बस स्टैंड,पार्क,जगह-जगह बने चौराहों,मुख्य बाज़ारों में अपनी सर्दी दूर करने के नाम पर कूड़ा-करकट या प्लास्टिक की थैलियां आदि जलाकर अपना हाथ-पैर सेकते रहते हैं। इसी के साथ-साथ अनेक जगहों पर सफाई कर्मचारी स्वयं कूड़ा इक_ा कर उसका ढेर बनाते हैं तथा अपने ही हाथों से उसमें आग लगा देते हैं। नागरिका जागरूकता का स्तर तो यह है कि भीड़ भरे बाज़ार से रेत-बालू का ट्रक गुज़रता है परंतु उसके ऊपर तिरपाल न होने की वजह से वह ट्रक अपने पीछे रेत-बालू का गुबार छोड़ता जाता है जो धुंए में मिलकर ज़हरीला वातावरण बनाने का काम करता है। निरंतर बढ़ता जा रहा शहरीकरण,उद्योगों की बढ़ती संख्या तथा इनके कारण चिमनियों से लगातार उगलता ज़हरीला धुंआ और अनावश्यक रूप से होने वाले वनों की कटाई जैसी समस्याएं वायु प्रदूषण को बढ़ाने में बेहद मददगार साबित हो रही हैं।
पिछले दिनों बिहार से एक वीडियो इस आशय की वायरल हुई जिसमें दिखाया गया था कि एक टास्क फोर्स गठित की गई है जो उन गरीब मज़दूरों को प्रात:काल खेतों से दौड़ा-दौड़ा कर पकड़ रही है जो खुले खेतों में शौच के लिए जा रहे हैं। सरकारी कर्मचारी उन्हें पकडक़र थाने ले जा रहे हैं,उन्हें अपमानित कर रहे हैं तथा उन गरीबों के लोटे तोड़ रहे हैं। दरअसल इसी प्रकार की टास्क फोर्स पूरे भारत में अनावश्यक रूप से प्रदूषण फैलाने वालों के विरुद्ध गठित किए जाने की भी ज़रूरत है। सरकार को देश के प्रत्येक राज्य में एक टोल फ्री नंबर दिया जाना चाहिए जिसपर कोई भी व्यक्ति किसी भी वायु प्रदूषण फैलाने वाले गैर जि़म्मेदार व्यक्ति द्वारा फैलाए गए प्रदूषण की सूचना दे सके तथा उसकी फोटो भेज सके। सूचना मिलते ही तुरंत टास्क फोर्स के सदस्यों का वहां पहुंचना अनिवार्य होना चाहिए। आज जगह-जगह कबाड़ी व्यव्साय से जुड़ लोग तांबे या लोहे का तार निकालने के उद्देश्य से रबड़ व प्लास्टिक के केबल में,थर्मोकोल,फोम,लकड़ी आदि में आग लगा देते हैं जिससे उठने वाला ज़हरीला धुंआ आम लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन जाता है।
इसी के साथ-साथ पूरे देश में प्रत्येक महानगर से लेकर पंचायत स्तर तक बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण की मुहिम छेड़े जाने की भी आवश्यकता है। सरकारों को चाहिए कि आम लोगों से वोट ठगने की योजनाएं बनाने के बजाए देश के प्रत्येक नागरिक में पर्यावरण प्रेम तथा वृक्षारोपण के प्रति लगाव पैदा करने की व्यापक मुहिम चलाए। क्योंकि पर्यावरण को संतुलित रखने में केवल वृक्ष अथवा हरियाली ही अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। युद्ध स्तर पर पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण अभियान सैन्य स्तर पर चलाने के लिए पड़ोसी देश चीन से सीख हासिल करने में भी कोई हर्ज नहीं है। आज हमारे देश की सरकारें स्वास्थय सेवाओं के नाम पर काफी पैसे खर्च कर रही हैं यदि प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में इन्हीं पैसों को ईमानदारी के साथ सही जगह पर खर्च किया जाए तो स्वास्थय सेवाओं पर होने वाले खर्चों में भी काफी कमी आ सकती है। क्योंकि कैंसर,उच्च रक्तचान,दमा,खांसी,एलर्जी व फेफड़ों संबंधी कई रोग इसी वायु प्रदूषण की ही देन हैं। इन्हीं उपायों के द्वारा वायु प्रदूषण जैसी विकराल समस्या पर नियंत्रण हासिल किया जा सकता है।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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