– तनवीर जाफ़री –
मिसाल के तौर पर इंदिरा गाँधी को जब 1971 में भारत रत्न से नवाज़ा गया उस समय वे स्वयं देश की प्रधानमंत्री थीं। यह वही दौर था जब उनके कुशल व सबल नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे। यही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सेना के समक्ष विश्व का अब तक का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण भी उसी समय किया गया था। इंदिरा गाँधी के इसी अदम्य साहस और शौर्य का ही परिणाम था कि उनके उस समय के सबसे प्रबल विरोधी अटल बिहारी वाजपई ने संसद भवन में दिए गए अपने भाषण में इंदिरा गाँधी की तुलना शक्ति की प्रतीक देवी ‘दुर्गा ‘से की थी। परन्तु जब भारत सरकार ने इंदिरा गाँधी को उपरोक्त उपलब्धियों के बाद भारत रत्न देने का निर्णय लिया तो सरकार के इस निर्णय की आलोचना यह कहकर की गई कि इंदिरा गाँधी ने अपने प्रभाव के चलते स्वयं ही यह सम्मान ‘झटक’ लिया। इसी प्रकार 1980 में जब नोबेल पुरस्कार विजेता तथा कैथोलिक नन और मिशनरीज़ की संस्थापक रहीं मदर टेरेसा को भारत रत्न देने की घोषणा हुई उस समय भी हिंदूवादी संगठनों की ओर से मदर टेरेसा को भारत रत्न देने की काफ़ी आलोचना हुई। आरोप लगाए गए कि मदर टेरेसा ने भारत में धर्म परिवर्तन को प्रोत्साहित किया। आरोप लगा कि चूँकि उन्होंने कथित रूप से हज़ारों हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन कराए लिहाज़ा उनको भारत रत्न जैसा सर्वोच्च सम्मान दिया जाना मुनासिब नहीं। दूसरी ओर मदर टेरेसा ने मानवता की कितनी सेवा की तथा उनके प्रयासों से कितने लोगों को नया जीवन जीने का अवसर मिला, ख़ास तौर से उनलोगों को जिन्हें उनके अपने ही परिजन घर से बेघर कर दिया करते थे और मरने के लिए छोड़ देते थे उन्हें मदर ने सहारा दिया। इसी प्रकार 1988 में जब एम् जी आर के नाम से प्रसिद्ध मरुदुर गोपाला रामचंद्रन को जो की तमिल फ़िल्म अभिनेता तथा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी थे,को भारत रत्न से सम्मानित किया गया उस समय भी भारत रत्न के ‘स्तर’ को लेकर सवाल खड़े किये गए थे।
भारत रत्न से पुरस्कृत होने वाले नामों को लेकर आलोचना अथवा उनपर ऊँगली उठाने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। 2014 में भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वाजपेयी जाने-माने राजनेता,उच्च कोटि के वक्ता,कुशल राजनीतिज्ञ, देश के 10वें प्रधानमंत्री तथा कवि और पत्रकार थे। भारत रत्न दिए जाने हेतु वाजपई के नाम की घोषणा होते ही उनकी आलोचना का एक लम्बा सिलसिला शुरू हो गया। यहाँ तक की उनकी युवा अवस्था के वे ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी ढूंढ निकले गए जिनसे यह प्रमाणित होता है कि वाजपेई 27 अगस्त 1942 को आगरा में अपने गांव बटेश्वर में एक प्रदर्शन के दौरान न केवल एक दर्शक की भूमिका में थे बल्कि प्रदर्शनकारियों में शामिल स्वतंत्रता सेनानी ककुआ ऊर्फ़ लीलाधर वाजपेई और महुआन को सज़ा भी इनकी गवाही की वजह से ही हुई थी। बताया जाता है कि वाजपेयी जी के पिता गौरी शंकर वाजपेई ने अंग्रेज़ अफ़सरों से कहकर अटल बिहारी वाजपेयी और उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी दोनों भाइयों को छुड़वा लिया और इन दोनों भाइयों ने बाद में स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ अदालत में गवाही दी थी.” ककुआ ऊर्फ़ लीलाधर वाजपेयी ने अपने पूरे जीवन भर यही आरोप लगाया कि दोनों भाइयों ( अटल बिहारी वाजपेयी और उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी )की गवाही की वजह से ही चार स्वतंत्रता सेनानियों को जेल भी जाना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी ने यह गवाही दी थी कि सरकारी इमारत को जलाया गया और गिरा दिया गया परन्तु लीलाधर वाजपेई के अनुसार सच केवल यह है कि वहाँ सिर्फ़ झंडा फहराया गया था. उनका यह भी आरोप है कि स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध गवाही देकर अटल बिहारी वाजपेयी ने बाद में अपने भाई को ताम्रपत्र भी दिलवा दिया था। अटल बिहारी वाजपेई को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद उनके उस रूप को भी आलोचकों द्वारा शिद्दत से याद किया गया जबकि उन्होंने 5 दिसंबर 1992 को लखनऊ के अमीनाबाद में आरएसएस के कारसेवकों की उस भीड़ को संबोधित किया था जो अगले दिन यानी 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के लक्ष्य को लेकर अयोध्या पहुँचने वाली थी। वाजपेई ने 5 दिसंबर 1992 कारसेवकों की उत्साही भीड़ को संबोधित करते हुए बड़े ही उकसावेपूर्ण अंदाज़ में कहा था कि ‘अयोध्या में पूजा-पाठ के लिए ज़मीन को समतल किया जाना ज़रूरी है.’ उनके इस वाक्य से स्पष्ट है कि वे सीधे तौर पर अपने समर्थकों को बाबरी मस्जिद विध्वंस का इशारा कर रहे थे। हालाँकि अपना यह भाषण देने के बाद वे अयोध्या नहीं गए थे परन्तु अगले दिन यानी 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया था जिसके बाद भारत में पैदा हुई हिन्दू मुस्लिम के मध्य की नफ़रत की खाई आज तक भरने का नाम ही नहीं ले रही है। उपरोक्त सवाल खड़े कर आलोचकों द्वारा 2014 में भी और अब तक यह पूछा जा रहा है कि क्या वाजपेई को भारत रत्न दिया जाना मुनासिब था?
इन दिनों एक बार फिर भारत रत्न की महत्ता,इसकी श्रेष्ठता व मापदंड लेकर विवाद उस समय छिड़ गया जबकि महाराष्ट्र में वर्तमान विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न दिलाने का वादा किया। इस वादे के साथ ही सावरकर को भारत रत्न दिए या न दिए जाने को लेकर एक बार फिर अच्छी ख़ासी बहस छिड़ गई। भारत रत्न दिए जाने जैसा संकल्प अब तक के किसी भी चुनाव में पहली बार व्यक्त करते सुना गया है। इसकी मात्र दो ही वजहें हैं। एक तो यह कि वे मराठी थे लिहाज़ा मराठा मतों को प्रभावित करने का यह एक भाजपाई प्रयास है। दूसरे यह कि वे हिंदूवादी नेता थे तथा गाँधी जी के उदारवादी विचारों के विरोधी थे। उनकी इन्हीं बातों को भाजपा सकारात्मक नज़रिये से देखती है। इसमें कोई शक नहीं कि सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें पोर्ट ब्लेयर की सेलूलर जेल की तंग कोठरी में लम्बे समय तक रखा गया। परन्तु सावरकर के आलोचक तथा उन्हें भारत रत्न दिए जाने के भाजपाई संकल्प का विरोध करने वाले कहते हैं की सावरकर के विरुद्ध गाँधी हत्याकांड को लेकर केस चला था. 1948 में हुई महात्मा गांधी की हत्या के आठ आरोपितों में से वे भी एक थे। सावरकर छूट ज़रूर गए थे, लेकिन उनके जीवन काल में ही उसकी जाँच के लिए कपूर आयोग बैठा था और उसकी रिपोर्ट में शक की सूई सावरकर से हटी नहीं थी। सावरकर के आलोचक उनपर दूसरा आरोप यह भी लगाते हैं कि वे अनेक बार अंग्रेज़ों से माफ़ी मांग कर या तो रिहा हुए या फिर अंग्रेज़ों के ज़ुल्म-ो-सितम से बचने में सफल रहे। जबकि सावरकर समर्थक उनके माफ़ी नामे को भी उनकी रणनीति का एक हिस्सा बता कर उसे न्यायोचित बताने की कोशिश करते रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत रत्न को लेकर इस तरह के विवादों का पैदा होना अथवा विवादित लोगों के नामों पर बहस छिड़ना अपने आप में इस बात सुबूत है कि भारत के इस सर्वोच्च सम्मान की महत्ता पर ग्रहन लग चुका है।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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