{निर्मल रानी**,,}
देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बिहार भी अन्य राज्यों की तरह इस समय प्रगति की राह पर आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। विशेषकर राज्य की सड़कें, बिजली-पानी, आम लोगों के रहन-सहन, बाजार, भवन निर्माण आदि सभी क्षेत्रों में परिवर्तन की लहरें उठती देखी जा रही हैं। बिहार को शिक्षित एवं बुद्धिजीवी लोगों का राज्य तो पहले ही माना जाता था। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि चाहे वह संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं हों अथवा आई टी क्षेत्र की प्रतियोगिताएं अथवा परीक्षाएं इनमें बिहार के छात्रों का धमाकेदार प्रतिनिधित्व हमेशा से ही रहा है। मैनें स्वयं राज्य के कई जिलों में विभिन्न स्थानों पर बांस और घास-फूस द्वारा तैयार की गई तथा आम के बगीचों में संचालित होने वाले कोचिंग सेंटर देखे हैं। बिहार का सुपर थर्टी इस समय आई टी क्षेत्र में अपनी अभूतपूर्व सफलता की पताका लहराता दिखाई दे रहा है। विश्व की सबसे विश्वसनीय समझी जाने वाली बीबीसी लंदन को सबसे अधिक टीआरपी बिहार से ही प्राप्त होती है। राज्य का गरीब से गरीब व अनपढ़ व्यक्ति भी देश व दुनिया के समाचारों को सुनना चाहता है तथा अपने कस्बे से लेकर विश्व की राजनीति तक पर पूरी नजर रखता है। संभवतः बिहार ही देश का ऐसा राज्य होगा जहां समाचार पत्र भी सबसे अधिक बिकते हैं तथा सबसे अधिक पढ़े भी जाते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में ही वहां प्रायः चाय की दुकानें खुल जाती हैं तथा चाय खानों पर रेडियो पर प्रसारित होने वाले समाचारों की आवाजें सुनाई देने लगती है। जगह-जगह आम लोग राजनीति संबंधी बहस में मशगूल देखे जा सकते हैं।
परंतु यदि आप बिहार में फैले गंदगी के साम्राज्य को देखें तो गोया ऐसा प्रतीत होगा कि नाचते हुए मोर ने अपने पांव देख लिए हों। यही बिहार के जागरूक, पढ़े-लिखे, समझदार व बुद्धिजीवी समझे जाने वाले लोग न जाने क्यों बिहार से गंदगी के वातावरण को अलविदा नहीं कह पा रहे हैं। कहीं खाने-पीने के ढाबे व रेस्टोरेंट के सामने गंदगी का पड़ा ढेर दुर्गंध फैलाता दिखाई देता है तो कहीं आटो रिक्शा स्टैंड सार्वजनिक शौचालय के साथ ही बना नजर आता है। कहीं पूरे के पूरे बस स्टैंड में कीचड़, गंदगी, दलदल व बदबू का नजारा देखने को मिलता है तो कहीं स्वास्थय सेवाएं प्रदान करने वाले सरकारी अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, निजी नर्सिंग होम आदि गंदगी व कूड़े के ढेर तथा ठहरे हुए गंदे बरसाती पानी से घिरे हुए दिखाई देते हैं। राज्य में आप कहीं भी चले जाएं बैंक,कचहरी,कोई भी सरकारी कार्यालय,सिनेमा घर यहां तक कि निजी व्यवसायिक केंद्र आदि सभी जगहों पर कूड़े का ढेर, नालियों का रुका हुआ पानी, उनपर बैठे जहरीले मच्छर तथा पान खाकर थूकने की गवाही देती उपरोक्त सभी स्थानों की लाल होती दीवारें यह संकेत देती हैं कि गंदगी गोया यहां के लोगों के लिए कोई खास मायने नहीं रखती है। पिछले दिनों बिहार के एक सायबर कैफे में जोकि एक इमारत के प्रथम तल पर था,जाने का अवसर मिला। सीढ़ी पर चढ़ते ही दीवार पर एक इबारत लिखी देखी। लिखा था-श्यहां पान खाकर न थूकें। थूकने वाले को अपने हाथों से दीवार साफ़ करनी पड़ेगी्य। निश्चित रूप से यह वाक्य लिखा देख कर अच्छा लगा। परंतु अफसोस कि इस इबारत के लिखने के बावजूद उसी स्थान पर कुछ ‘समझदार’ लोगों ने पान खाकर थूका भी हुआ था। गोया चेतावनी की भी कोई परवाह नहीं।
गंदगी फैलने व फैलाने के लिए जहां राज्य की आम जनता को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता वहीं राज्य सरकार व स्थानीय निकाय व स्वायत्त शासन विभाग व स्वास्थय विभाग भी राज्य में गंदगी का पालन-पोषण करने के कम जिम्मेदार नहीं हैं। पिछले दिनों मैंने अपने बिहार प्रवास के दौरान यह देखा कि जगह-जगह मुख्यमंत्री नितीश कुमार की सरकार की उपलब्धियों का बखान करने वाले अनगिनत बोर्ड बड़े से बड़े आकार के सार्वजनिक स्थलों पर लगाए गए हैं। जिनमें राज्य सरकार की योजनाओं व उपलब्धियों का गुणगान किया गया है। जिस स्तर पर यह विज्ञापन किए जा रहे हैं उसे देखकर यह लगता है कि राज्य सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपये केवल अपनी पीठ थपथपाने वाले विज्ञापनों व इश्तिहारों पर खर्च कर डाले हैं। परंतु इन्हीं इश्तिहारों में अनेक इश्तिहार ऐसे भी देखे जोकि कूड़े के ढेर, सड़ांध मारती दुर्गंध तथा सुअरों के झुंड के बीच खड़े राज्य सरकार की उपलब्धियों का कसीदा पढ़ रहे हैं। ऐसे स्थलों पर किसी योजना या विकास संबंधी इश्तिहार का लगा होना अपने-आप में ही उस योजना के महत्व को कम कर देता है। लिहाज़ा नितीश सरकार को कम से कम अपने कसीदे व गुणगान करने वाले इश्तिहार तो साफ-सुथरी, स्वच्छ जगहों पर ही लगाने चाहिएं। परंतु यक़ीनन उन्हें सार्वजनिक स्थलों पर ऐसी जगह मिल ही नहीं पाती होगी।
जहां तक राज्य के लोगों का गंदगी के वातावरण में रहने के आदी होने का प्रश्र है तो स्थानीय प्रशासनिक स्तर पर भी इस सम्बन्ध में कोई काम नहीं किया जाता। मैंने आज तक पटना, मुज़फ्फ़रपुर, दरभंगा जैसे राज्य के प्रमुख नगरों में किसी भी नाली और नालों को सुचारू रूप से प्रवाहित होते नहीं देखा। जहां देखिए वहीं आपको नाली व नाले गंदगी से भरे हुए जाम तथा मच्छरों व अन्य कीड़े-मकोड़ों की पनाहगाह के रूप में दिखाई देंगे। जिन जगहों पर आप चंद सैकेंड भी खड़े रहना पसंद नहीं करेंगे,जहां चारों ओर नाली की सड़ांध फैलती दिखाई देगी उन्हीं के मध्य कहीं कोई रेहड़ी वाला सत्तू घोलकर बेचता दिखाई देगा तो कोई पान-बीड़ी,खैनी बेचता दिखाई देगा। लिट्टी, समोसा, जलेबी, घेवर, आदि सब कुछ इसी बदबूदार तथा गंदगी से भरपूर वातावरण में बिकते नजर आएंगे और इन्हीं जगहों पर खड़े होकर लोग इनका रसास्वादन भी करते दिखाई देंगे। क्या स्थानीय प्रशासन, नगर निकाय, गंदगी के इस स्थानीय बढ़ते साम्राज्य के विरुद्ध एक व्यापक मुहिम नहीं छेड़ सकते? नाली व नालों की सफ़ाई को लेकर क्या व्यापक अभियान नहीं चलाया जा सकता? जिस स्तर पर मुख्यमंत्री वृद्धा पेंशन तथा बालिकाओं को साईकल दिए जाने जैसी अपनी योजनाओं का गुणगान कर रहे हैं उसी स्तर पर यदि राज्य में स्वच्छता हेतु जागरूकता अभियान चलाया जाए तो ऐसा नहीं कि राज्य सरकार को कोई सफलता हासिल नहीं होगी।
शहर से लेकर गांव तक कहीं भी चले जाईए आपको प्रातःकाल व संध्या के समय भी मुख्य मार्ग पर बैठकर लोग शौच करते दिखाई देंगे। यहां तक कि दुर्गंध के कारण दूसरे लोगों का रास्ता चलना भी दुश्वार हो जाता है। केंद्र सरकार ने विश्व बैंक की सहायता से घर-घर में शौचालय बनाए जाने के लिए भी कई योजनाएं चला रखी हैं जिसमें आर्थिक सहायता व सब्सिडी देना भी शामिल है। यहां तक कि केंद्र सरकार शौचालय बनाने संबंधी आकर्षक व प्रभावी विज्ञापन भी दूरदर्शन पर प्रसारित करती रहती है। परंतु इन्हें लागू व कार्यन्वित करने वाली राज्य सरकार की मशीनरी विकास की इन बुनियादी जरूरतों की अनदेखी कर अपना ही गुणगान किए जाने में ज्यादा व्यस्त रहती है। पिछले दिनों अपने बिहार प्रवास के दौरान राज्य के एक जागरूक व्यक्ति से बातचीत हुई। वह भी सड़कों पर आम लोगों के शौच करने तथा जगह-जगह गंदगी व दुर्गंध के वातावरण से बेहद दुरूखी था। उसने एक किस्सा सुनाया जिससे यह पता चला कि राज्य में यह समस्या कोई नई नहीं है। उसने बताया कि एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू अपने एक अंग्रेज अतिथि के साथ बिहार में सड़क मार्ग से प्रातःकाल कहीं जा रहे थे। उसी समय अपने नित्य कर्म से निवृत होने वाले मर्द, औरतें, बुजुर्ग व बच्चे सभी सड़क के दोनों ओर अपने हाथें में बोतल,डब्बे आदि लेकर खड़े दिखाई दिए। पंडित नेहरू तो उन्हें देखकर सबकुछ समझ गए। परंतु अंग्रेज अतिथि उन लोगों के इरादों से अनभिज्ञ था। उसने आखिरकार पंडित जी से यह पूछ ही लिया कि सड़क के दोनों ओर यह लोग अपने हाथों में बोतल और डब्बे लेकर क्यों खड़े हैं। अब पंडित जी बेचारे उस अंग्रेज को क्या बताते। उन्होंने उस अंग्रेज अतिथि से यह कहकर अपनी इज्जत बचाई कि यह लोग अपनी परंपरा के अनुसार अपने हाथों में जल लेकर आपका स्वागत करने के लिए खड़े हैं। जाहिर है बिहार और बिहार के लोगों की इज़्ज़त बचाने का पंडित नेहरू के पास इससे सही और कोई उत्तर हो ही नहीं सकता था।
परंतु इस तरह की बातें हर जगह लागू नहीं होतीं। खासतौर पर जब यही गंदगी व दुर्गंध फैलाने वालों पर ही आक्रमण कर बैठे तथा कभी कालाजार, कभी जापानी बुखार तो कभी इन्सेफ्लाईटिस नामक जानलेवा बीमारियों की चपेटमें आम लोगों को लेने लग जाए। उस समय न तो कोई झूठ काम आता है। न ही कोई युक्ति अथवा आरोप-प्रत्यारोप, तर्क व बहाने। लिहाजा राज्य सरकार,स्थानीय प्रशासन, नगर निकायों से लेकर राज्य के समस्त नागरिकों तक का यह कर्तव्य है कि यदि वे बिहार को वास्तव में आगे बढ़ता देखना चाहते हैं तथा राज्य के विकास की गाथा लिखना चाहते हैं तो उसकी शुरुआत सफ़ाई से ही की जानी चाहिए। पान खाकर चारों ओर थूकना,अपनी मनचाही जगह पर बैठकर शौच से निपटना तथा कूड़े व दुर्गंध के वातावरण में बैठकर खाना-खिलाना व खाद्य सामग्री का बेचना विकास अथवा प्रगति के लक्षण स्वीकार नहीं किए जा सकते।
*******
**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728
*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.