– डॉ नीलम महेंद्र –
हमारी संस्कृति वर्षों पुरानी होने के बावजूद आज भी प्रासंगिक है और आधुनिक विज्ञान से कहीं आगे है। जो खोज हमारे ॠषी मुनी हजारों साल पहले कर गए थे 21 वीं सदी के वैज्ञानिक उन पर अनुसंधान करके उनको सही पा रहे हैं। चाहे गणित के क्षेत्र में शून्य की खोज हो चाहे चिकित्सा के क्षेत्र में अंग प्रत्यारोपण ( गणेश जी के सिर पर हाथी का सिर ) , चाहे शिक्षा का क्षेत्र में तक्षशिला विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय हो चाहे सभ्यता के क्षेत्र में भारतीय सिन्धू घाटी सभ्यता, हर क्षेत्र में भारत शिखर पर था।
नव संवत्सर नववर्ष नवरात्रि नवभोर , समय है अपनी जड़ों को पोषित करने का समय है आगे बढ़ने का। नवरात्रि अर्थात् शक्ति स्वरूप माँ के नौ रूपों के पूजन के नौ विशेष दिन। वैसे तो नवरात्रि साल में दो बार आती हैं लेकिन चैत्र मास में पड़ने वाली नवरात्रि का पहला दिन जिसे गुड़ीपड़वा के नाम से भी जाना जाता है भारतीय नववर्ष का पहला दिन भी होता है। यहाँ यह जानना रोचक होगा कि अंग्रेजी नव वर्ष 365 दिनों में 12 महीनों के एक चक्र के पूर्ण होने की एक बेहद सरल प्रक्रिया है जिसमें 31 दिसंबर की रात 12 बजे तारीख़ ही नहीं साल भी बदलता है और पूरी रात अलसुबह भोर तक जश्न में डूबे लोग जाते साल को अलविदा कहते हैं और नए साल का स्वागत कुछ इस तरह करते हैं कि उसके पहले सूर्योदय तक थक के चूर गहरी नींद की आगोश में अपनी थकान मिटा रहे होते हैं।
यह खेद का विषय है कि आधुनिकता की दौड़ में हम लोग अपनी पूर्णता वैज्ञानिक संस्कृति को पिछड़ा हुआ मानकर भुलाते जा रहे हैं। अंग्रेजी नव वर्ष के विपरीत भारतीय काल गणना के अनुसार नव वर्ष अथवा नव सम्वत्सर ‘समझने के हिसाब से एक सरल प्रक्रिया’ न होकर सूर्य चन्द्रमा तथा नक्षत्रों तीनों के समन्वय पर अनेकों ॠषियों के वैज्ञानिक अनुसंधानों पर आधारित है। यह 6 ॠतुओं ( भारत वह सौभाग्यशाली देश है जहाँ हम सभी 6 ॠतुओं को अनुभव कर सकते हैं ) के एक चक्र के पूर्ण होने का वह दिन होता जिस दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूर्ण करती है। इस दिन की सबसे खास बात यह है कि इस दिन, दिन व रात बराबर के होते हैं अर्थात् 12 -12 घंटे के। इसके बाद से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़े होने लगते हैं तथा दिन व रात के माप में अन्तर आने लगता है।
नवसंवत्सर ‘न्यू ईयर’ जैसे केवल 12 महीने का समय नापने की एक ईकाई न होकर खगोलीय घटनाओं के आधार पर भारतीय समाज के लिए सामाजिक सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक तरीके से जीवन पद्धति का पथ प्रदर्शक है।
यह केवल एक नए महीने की एक नई तारीख़ न होकर पृथ्वी के एक चक्र को पूर्ण कर एक नए सफर का आरंभ काल है। यह वह समय है जब सम्पूर्ण प्रकृति पृथ्वी को इस नए सफर के लिए शुभकामनाएँ दे रही होती है। जब नए फूलों और पत्तियों से पेड़ पौधे इठला रहे होते हैं , जब मनुष्य को उसके द्वारा साल भर की गई मेहनत का फल लहलहाती फसलों के रूप में मिल चुका होता है ( होली पर फसलें कटती हैं ) और पुनः एक नई शुरुआत की प्रेरणा प्रकृति से मिल रही होती है। यह वह समय होता है जब मनुष्य मात्र ही नहीं प्रकृति भी नए साल का स्वागत कर रही होती है। धरती हरी भरी चादर और बगीचे लाल गुलाबी चुनरी ओड़े सम्पूर्ण वातावरण में एक नयेपन का एहसास करा रही होती है। लेकिन बेहद अफसोस की बात है कि जो भारत अपनी सभ्यता संस्कृति और ज्ञान के क्षेत्र में दुनिया के लिए एक आश्चर्य था, जिसे कभी विश्व गुरु और सोने की चिड़िया कहा जाता था आज एक विकासशील देश बनकर रह गया है। जिस गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज आधुनिक विज्ञान में न्यूटन के नाम है उससे 550 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने इसका विस्तार से वर्णन किया था।
पश्चिमी सभ्यता में 15 वीं शताब्दी में गैलीलियो के समय में यह धारणा थी कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य उसका चक्कर लगाता है परन्तु उससे 1500 वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने यह बता दिया था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है और सूर्य का चक्कर लगाती है। जिस सापेक्षता के सिद्धांत के लिए आइन्सटीन को जाना जाता है उसका उल्लेख वर्षों पूर्व हमारे पुराणों में मिलता है। आज हम लोग जिस पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण कर रहे हैं किसी समय उसने भारतीय ज्ञान का अनुसरण करके अपनी सभ्यता स्थापित की थी। 1752 ई तक इंग्लैंड में भी नव वर्ष 25 मार्च से ही आरंभ होता था इसलिए वर्ष 10 महीने का होता था और महीनों के नाम आप स्वयं समझें कि कहाँ से आए, सातवाँ महीना सितंबर (सप्तम ) ,अक्टूबर (अष्टम ) , नवम्बर ( नवमी ) तथा दिसंबर। (दशमी )।
लेकिन न जाने क्यों आज हम पश्चिमी सभ्यता की नकल करते हुए रात्रि 12 बजे तारीख बदलने की संस्कृति को स्वीकार करते हैं जबकि हमारी संस्कृति में तिथि सूर्योदय के साथ बदलती है।
इस जानकारी से शायद हर भारतीय को शर्मनाक आश्चर्य होगा कि जो पश्चिमी सभ्यता इंग्लैंड के ग्रीनविच नामक स्थान से मध्यरात्रि 12 बजे को दिन परिवर्तन का समय मानती है , उसका आधार यह है कि उनकी मध्यरात्रि के समय हमारे भारत में सूर्योदय हो रहा होता है। हमारी संस्कृति वर्षों पुरानी होने के बावजूद आज भी प्रासंगिक है और आधुनिक विज्ञान से कहीं आगे है। जो खोज हमारे ॠषी मुनी हजारों साल पहले कर गए थे 21 वीं सदी के वैज्ञानिक उन पर अनुसंधान करके उनको सही पा रहे हैं।
चाहे गणित के क्षेत्र में शून्य की खोज हो चाहे चिकित्सा के क्षेत्र में अंग प्रत्यारोपण ( गणेश जी के सिर पर हाथी का सिर ) , चाहे शिक्षा का क्षेत्र में तक्षशिला विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय हो चाहे सभ्यता के क्षेत्र में भारतीय सिन्धू घाटी सभ्यता, हर क्षेत्र में भारत शिखर पर था। अब समय है अपनी गलतियों से सबक लेकर अपनी संस्कृति की तरफ वापस जाकर विश्व में पुनः आगे जाने का।
अब समय है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को अपने अतीत पर गर्व करना सिखाएँ। इस नवसंवत्सर समय है कि पृथ्वी के साथ साथ हम सभी एक नए सफर की शुरूआत करें, एक बार फिर से विश्व गुरु बनने के सफर की शुरूआत। इस संवत्सर यह प्रण लें कि हम उस भारत का निर्माण करें जिसका अनुसरण विश्व करना चाहेगा।
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डाँ नीलम महेंद्र
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
समाज में घटित होने वाली घटनाएँ मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।भारतीय समाज में उसकी संस्कृति के प्रति खोते आकर्षण को पुनः स्थापित करने में अपना योगदान देना चाहती हूँ।
हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं यह देश हमारा है हम ही इसके भी निर्माता हैं क्यों इंतजार करें किसी और के आने का देश बदलना है तो पहला कदम हमीं को उठाना है समाज में एक सकारात्मकता लाने का उद्देश्य लेखन की प्रेरणा है।
राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय समाचार पत्रों तथा औनलाइन पोर्टल पर लेखों का प्रकाशन फेसबुक पर ” यूँ ही दिल से ” नामक पेज व इसी नाम का ब्लॉग, जागरण ब्लॉग द्वारा दो बार बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड
संपर्क – : drneelammahendra@hotmail.com & drneelammahendra@gmail.com
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