आई एन वी सी,
दिल्ली,
आईटीओ स्थित जमीयत उलमा ए हिन्द के केन्द्रीय कार्यालय में उत्तर प्रदेश की भयावह स्थिति विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भयानक सांप्रदायिक दंगों के मद्देनजर मुस्लिम संगठनों की ओर से एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया गया। दंगों में हुई मौतों और भारी वित्तीय नुकसान पर कड़ी चिंता व्यक्त करते हुए जमीयत उलमा ए हिन्द के महासचिव महासचिव मौलाना महमूद मदनी, जमाते इस्लामी हिन्द के श्री नुसरत अली, मुस्लिम मजलिस मशावरत के अध्यक्ष डॉ. जफरुल इसलाम खान, मिली पॉलिटिकल काउंसल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. तसलीम रहमानी और मजलिस उलमा ए हिन्द के मौलाना मोहसिन तकवी, मर्कजी एहले हदीस हिंद के शीश तयमी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ. कासिम रसूल इलयास सहित अन्य मुस्लिम संगठनों ने यूपी में अखिलेश सरकार को दंगों को रोकने में असफल करार दिया है और मांग की है कि यूपी सरकार अपने नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा, और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असक्षम रही है। सरकार की अकर्मण्यता और लापरवाही के कारण सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। संवाददाता सम्मेलन में मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने दंगों के सिलसिले में यूपी सरकार द्वारा लगाये गये आरोप कि विपक्षी दलों की साजिश का नतीजा है साम्प्रदायिक दंगों के बयान को नकारते हुए कहा कि संवैधानिक जिम्मेदारी से बचने की नाकाम कोशिश है। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर असमाजिक तत्व किसी भी अपने प्रतिद्वंद्वी सत्ताधारी पार्टी की सरकार को विफल करने और स्थिति को खराब कर उसे अपाहिज और निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं, लेकिन इससे सत्ताधारी सरकार अपने नागरिकों की जान माल की रक्षा की जवाबदेही से नहीं बच सकती है। अखिलेश सरकार के गठन के बाद से ही जिस तरह पूरे राज्य में सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला शुरू हो कर अब तक जारी है। लेकिन इन दंगों में लिप्त असमाजिक एवं सांप्रदायिक तत्वों और दंगों के लिए जिम्मेदार दलों, संगठनों, व्यक्तियों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने में लापरवाही बरत कर सरकार ने एक प्रकार से इनको और दंगों के लिए छूट का अवसर प्रदान किया है। अखिलेश शासन में हुए अब तक दंगों से साफ हो जाता है कि यूपी सरकार संवैधानिक ड्यूटी करने में नाकाम रही है। ऐसी स्थिति में इस के लिए बेहतर है कि वे नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सत्ता से अलग हो जाये। प्रेस के प्रष्नों का उत्तर देते हुए मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि सवाल दंगों में साम्पद्रायिक ताकतों के लिप्त होने का नहीं है बल्कि राज्य सरकार की जानबूझ कर की गयी लापरवाही का है। उन्होंने अपनी मांग को सही ठहराते हुए कहा कि मुसलमानों को समाजवादी सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी की दंगे हर घंटे गांव गांव फैलता चला जाये। उन्होंने कहा कि आज हापुड़ ओर बड़ौत में दंगा होने की सूचना है जबकि दो दिन पहले तक यहां अमन था। जिससे सरकार की नाकामी साफ जाहिर होती है। मौलाना मदनी ने कहा कि गांव से लोग हजारों की संख्या में पलायन कर रहे है और उनके रहने का कोई माकूल बंदोबस्त नहीं है। थानों में जहां 10 लोगों के रहने का स्थान नहीं है वहां चार चार सौ लोग ठहरे हुए है। इसके मददेनजर जमीअत की रिलीफ टीम दंगाग्रस्त इलाके में पहुंच चुकी है और आज रात हम भी वहां जायेगे। लोगों की रहने की जगह और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए जमीअत उलमा हिन्द हर तरह की कुरबानी देने को तैयार है। उन्होंने लोगों से अपील की कि सब्र का दामन हरगिज न छोड़े और यकीन रखे कि हम उनकी मदद के लिए पहुंच रहे हैे। यह बिल्कुल अविश्वसनीय और समझ से परे है कि धारा 144 लागू होने और किसी तरह के जलसे जुलूस पर रोक के बावजूद डीजीपी की मौजूदगी में महापंचायत आयोजित हो, यह पुलिस प्रशासन और उच्चाधिकारियों की आज्ञा के बिना नहीं हो सकता है, हमारी मांग है कि ऐसे लापरवाह पुलिस अधिकारी जो सांप्रदायिक दंगाई तत्वों के लिए नरम कोना रखने हों उन पुलिस अधिकारियों को दंगों का ज़िम्मेदार ठहराया जाए और उन पर त्वरित कार्रवाई करते हुए निलंबित कर दिया जाए व उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया जाए। साथ ही जलसे जुलूस और पंचायत करके दंगों का माहौल बनाने वाले पार्टी तथा सांप्रदायिक नेताओं को गिरफ्तार किया जाए। इस संबंध में सरकार जनता को अंधेरे में रखकर केवल आश्वासन से काम लेना चाहती है, इस संवाददाता सम्मेलन के द्वारा मांग की गई कि सरकार शहर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों व गांवों में सेना तथा अन्य सुरक्षा बलों को शांति स्थापित करने के लिए तैनात करे क्योंकि शहर से ज्यादा कस्बों और गांवों की स्थिति खतरनाक है और हाँ अब भी लोग मारे व जलाए जा रहे हैं। घरों और दुकानों में आगजनी की जा रही है। मुस्लिम समुदाय के लोग खौफजदा है सुरक्षा पाने के लिए अपने घरों को छोड़कर आश्रय पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। शिविरों में आश्रय के लिए पहुचे लोगों का बुरा हाल है, अगर केंद्र सरकार ने तुरंत प्रभावी हस्तक्षेप करके स्थिति को नियंत्रित नहीं किया तो यह आग देश के दूसरे हिस्से में भी फैल सकती है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और आगामी संसदीय चुनाव में सफलता के लिए साम्प्रदायिक ताकतें पूरे देश का सांप्रदायिक वातावरण खराब करने के लिए सक्रिय हो गई हैं, यूपी खासकर पश्चिमी यूपी उनके निशाने पर है, यह विडंबना है कि अलपसंख्यक समाज का प्रभावशाली और धार्मिक समुदाय शांति का माहौल बनाने और देश के विकास के मकसद से सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए आगे नहीं आ रहा है। संवाददाता सम्मेलन में इस बात पर अत्यधिक जोर दिया कि जगह-जगह संयुक्त शांति समितियां स्थापित की जाएं और उन समितियों के अन्तर्गत सांप्रदायिक ताकतों को मुख्य धारा से अलग करने का अभियान चलाया जाए, इस संबंध में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की जिम्मेदार है कि वह शांतिपूर्ण भाईचारा स्थापित और कानून का राज कायम करने के लिए अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाहन करें।
दिल्ली,
आईटीओ स्थित जमीयत उलमा ए हिन्द के केन्द्रीय कार्यालय में उत्तर प्रदेश की भयावह स्थिति विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भयानक सांप्रदायिक दंगों के मद्देनजर मुस्लिम संगठनों की ओर से एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया गया। दंगों में हुई मौतों और भारी वित्तीय नुकसान पर कड़ी चिंता व्यक्त करते हुए जमीयत उलमा ए हिन्द के महासचिव महासचिव मौलाना महमूद मदनी, जमाते इस्लामी हिन्द के श्री नुसरत अली, मुस्लिम मजलिस मशावरत के अध्यक्ष डॉ. जफरुल इसलाम खान, मिली पॉलिटिकल काउंसल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. तसलीम रहमानी और मजलिस उलमा ए हिन्द के मौलाना मोहसिन तकवी, मर्कजी एहले हदीस हिंद के शीश तयमी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ. कासिम रसूल इलयास सहित अन्य मुस्लिम संगठनों ने यूपी में अखिलेश सरकार को दंगों को रोकने में असफल करार दिया है और मांग की है कि यूपी सरकार अपने नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा, और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असक्षम रही है। सरकार की अकर्मण्यता और लापरवाही के कारण सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। संवाददाता सम्मेलन में मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने दंगों के सिलसिले में यूपी सरकार द्वारा लगाये गये आरोप कि विपक्षी दलों की साजिश का नतीजा है साम्प्रदायिक दंगों के बयान को नकारते हुए कहा कि संवैधानिक जिम्मेदारी से बचने की नाकाम कोशिश है। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर असमाजिक तत्व किसी भी अपने प्रतिद्वंद्वी सत्ताधारी पार्टी की सरकार को विफल करने और स्थिति को खराब कर उसे अपाहिज और निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं, लेकिन इससे सत्ताधारी सरकार अपने नागरिकों की जान माल की रक्षा की जवाबदेही से नहीं बच सकती है। अखिलेश सरकार के गठन के बाद से ही जिस तरह पूरे राज्य में सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला शुरू हो कर अब तक जारी है। लेकिन इन दंगों में लिप्त असमाजिक एवं सांप्रदायिक तत्वों और दंगों के लिए जिम्मेदार दलों, संगठनों, व्यक्तियों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने में लापरवाही बरत कर सरकार ने एक प्रकार से इनको और दंगों के लिए छूट का अवसर प्रदान किया है। अखिलेश शासन में हुए अब तक दंगों से साफ हो जाता है कि यूपी सरकार संवैधानिक ड्यूटी करने में नाकाम रही है। ऐसी स्थिति में इस के लिए बेहतर है कि वे नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सत्ता से अलग हो जाये। प्रेस के प्रष्नों का उत्तर देते हुए मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि सवाल दंगों में साम्पद्रायिक ताकतों के लिप्त होने का नहीं है बल्कि राज्य सरकार की जानबूझ कर की गयी लापरवाही का है। उन्होंने अपनी मांग को सही ठहराते हुए कहा कि मुसलमानों को समाजवादी सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी की दंगे हर घंटे गांव गांव फैलता चला जाये। उन्होंने कहा कि आज हापुड़ ओर बड़ौत में दंगा होने की सूचना है जबकि दो दिन पहले तक यहां अमन था। जिससे सरकार की नाकामी साफ जाहिर होती है। मौलाना मदनी ने कहा कि गांव से लोग हजारों की संख्या में पलायन कर रहे है और उनके रहने का कोई माकूल बंदोबस्त नहीं है। थानों में जहां 10 लोगों के रहने का स्थान नहीं है वहां चार चार सौ लोग ठहरे हुए है। इसके मददेनजर जमीअत की रिलीफ टीम दंगाग्रस्त इलाके में पहुंच चुकी है और आज रात हम भी वहां जायेगे। लोगों की रहने की जगह और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए जमीअत उलमा हिन्द हर तरह की कुरबानी देने को तैयार है। उन्होंने लोगों से अपील की कि सब्र का दामन हरगिज न छोड़े और यकीन रखे कि हम उनकी मदद के लिए पहुंच रहे हैे। यह बिल्कुल अविश्वसनीय और समझ से परे है कि धारा 144 लागू होने और किसी तरह के जलसे जुलूस पर रोक के बावजूद डीजीपी की मौजूदगी में महापंचायत आयोजित हो, यह पुलिस प्रशासन और उच्चाधिकारियों की आज्ञा के बिना नहीं हो सकता है, हमारी मांग है कि ऐसे लापरवाह पुलिस अधिकारी जो सांप्रदायिक दंगाई तत्वों के लिए नरम कोना रखने हों उन पुलिस अधिकारियों को दंगों का ज़िम्मेदार ठहराया जाए और उन पर त्वरित कार्रवाई करते हुए निलंबित कर दिया जाए व उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया जाए। साथ ही जलसे जुलूस और पंचायत करके दंगों का माहौल बनाने वाले पार्टी तथा सांप्रदायिक नेताओं को गिरफ्तार किया जाए। इस संबंध में सरकार जनता को अंधेरे में रखकर केवल आश्वासन से काम लेना चाहती है, इस संवाददाता सम्मेलन के द्वारा मांग की गई कि सरकार शहर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों व गांवों में सेना तथा अन्य सुरक्षा बलों को शांति स्थापित करने के लिए तैनात करे क्योंकि शहर से ज्यादा कस्बों और गांवों की स्थिति खतरनाक है और हाँ अब भी लोग मारे व जलाए जा रहे हैं। घरों और दुकानों में आगजनी की जा रही है। मुस्लिम समुदाय के लोग खौफजदा है सुरक्षा पाने के लिए अपने घरों को छोड़कर आश्रय पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। शिविरों में आश्रय के लिए पहुचे लोगों का बुरा हाल है, अगर केंद्र सरकार ने तुरंत प्रभावी हस्तक्षेप करके स्थिति को नियंत्रित नहीं किया तो यह आग देश के दूसरे हिस्से में भी फैल सकती है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और आगामी संसदीय चुनाव में सफलता के लिए साम्प्रदायिक ताकतें पूरे देश का सांप्रदायिक वातावरण खराब करने के लिए सक्रिय हो गई हैं, यूपी खासकर पश्चिमी यूपी उनके निशाने पर है, यह विडंबना है कि अलपसंख्यक समाज का प्रभावशाली और धार्मिक समुदाय शांति का माहौल बनाने और देश के विकास के मकसद से सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए आगे नहीं आ रहा है। संवाददाता सम्मेलन में इस बात पर अत्यधिक जोर दिया कि जगह-जगह संयुक्त शांति समितियां स्थापित की जाएं और उन समितियों के अन्तर्गत सांप्रदायिक ताकतों को मुख्य धारा से अलग करने का अभियान चलाया जाए, इस संबंध में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की जिम्मेदार है कि वह शांतिपूर्ण भाईचारा स्थापित और कानून का राज कायम करने के लिए अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाहन करें।