क्या इस बार की चुनावी वैतरणी पार करा पायेंगे ‘तारणहार’ मोदी- अबकी बार सचमेँ मोदी सरकार?

226176{सोनाली बोस} 2014 के लोकसभा चुनाव की पहली परीक्षा 07 अप्रेल को होनी है। हम और आप चाहे माने या ना माने लेकिन इस बात से इंकार नहीँ किया जा सकता है कि इस बार के चुनाव ‘मोदीमय’ फैक्टर से बूरी तरह सराबोर हैँ और रहेंगे।भाजपा का ‘मोदी लहर’ मेँ बहना काफी सारे राजनीतिक पंडितोँ को रास नहीँ आ रहा है। चुनावी कंपैनिंग का समूचा केन्द्र बिन्दू मोदी जी का होना पार्टी के विरोधी हलकोँ मेँ लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक ज्ञाता इस तरह ‘व्यक्ति पूजा’ के फार्मुले को पचा पाने मेँ मुश्किल महसूस कर रहे हैँ जो कि काफ़ी हद तक लाज़मी भी है क्योंकि इस तरह के ट्रेंड का चलन आज तक किसी  पार्टी द्वारा किसी चुनाव मेँ नहीँ हुआ है।

अगर कुछ सियासी पंडितोँ की दलील को मानेँ तो भाजपा का इस तरह पार्टी की ideological values को दरकिनार कर सिर्फ एक विशेष व्यक्ति पर अपनी पूरी आस्था लगा देना काफी बर्बर्ता भरा बर्ताव है जो पार्टी के बाक़ि नेताओ को ‘बाग़ी’ बनाने का अहम कारण रहा है। वैसे भी मोदी जी के लिये ये बात कही जाती है कि वो जितने कुशल वक्ता हैँ उतने ही कुशल प्लानर भी हैँ। अपने प्रतिद्वन्द्वियोँ को किस तरह कुचला जाना है ये वो बखूबी जानते हैँ। या तो आप उनसे प्यार करेँ या फिर दुश्मनी…. बीच का रास्ता अपनाने का option उनकी dictionary मेँ नहीँ है। अडवाणी जी और जसवंत जी की स्थिती से हम सभी बखूबी वाक़िफ हैँ जो मोदी के इस गुण की ताक़ीद भी करती है।

लेकिन आख़िर क्या वजह है कि जो पार्टी पिछले कई सालोँ से गुटबाज़ी को प्रोत्साहित करने के लिए जानी जाती थी और जिसकी इसी वजह से हमेशा निन्दा ही हुई है, आज वही पार्टी लोकतंत्र के महापर्व मेँ शामिल होने के लिये इस हद तक बदल गई है? तो इसका सिर्फ एक ही जवाब नज़र आता है और वो है कि अंतत: भाजपा को अपना ‘तारणहार’ मोदी के रूप मेँ मिल चुका है। और इसी तारणहार का हाथ थाम बीजेपी ‘लोकसभा चुनाव’ की वैतरणी पार करना चाहती है। अब ये वैतरणी पार कर बीजेपी लोकसभा मेँ स्वर्गीक खुशी पाती है या नहीँ ये तो 16 मई के बाद ही मालूम होगा लेकिन इतना तो तय है कि मोदी जी कि छत्रछाया तले तमाम पार्टी नेता अपने आप को एक विजेता ही मान रहे हैँ। इसमेँ दो राय नहीँ है कि वैचारिक और राजनीतिक मुद्दोँ पर  बिखरे हुए और भटके हुए दल को मोदी के नेतृत्व मेँ एक दिशा मिली है। जो कि भारतीय राजनीति के पटल पर कई नये आयाम स्थापित कर सकती है।

दरअसल, बीजेपी अगर किसी एक लीडर को नहीँ चुनती है तो बहुत मुमकिन है कि तीसरी बार भी वो लोकसभा चुनाव मेँ मुँह के बल गिर जाये। इसीलिये मोदी जी की वाकचतुरता और बेबाक भाषा शैली मेँ बीजेपी को अपना भविष्य सुरक्षित नज़र आ रहा है और इसीलिये पार्टी ने अपना सारा दाँव इस घोड़े पर लगा दिया है। लेकिन फिर भी अडवाणी और जसवंत सिँह के वाक़योँ ने अभी भी इस सवाल पर विराम नहीँ लगाया है कि बीजेपी के भीतर अभी भी मोदी जी के लिये पूरी तरह एक राय नही बन पाई है। लेकिन जसवंत जी के पार्टी से निष्कासन और शनिवार को अडवाणी जी के गान्धीनगर संसदीय क्षेत्र से चुनाव पर्चा दाखिले के समय मोदी जी की मौजुदगी के ज़रिये पार्टी ने अपनी एकता साबित करने की कोशिश अवश्य की है।

वैसे भी जहाँ तक बीजेपी संगठन का ताल्लुक है तो ये बात किसी से छुपी नहीँ है कि इस पार्टी की कमान हमेशा से ही ‘अनिर्वाचित लोगोँ और संगठनोँ’ के हाथ मेँ रही है, जिन्होने निर्वाचित नेताओँ को अपने इशारोँ पर नचाया है। लेकिन अब लगता है कि इन सभी अवरोधोँ को इस पार्टी ने दूर करने का मन बना लिया है और अपने इस अधूरेपन के एहसास को अब बीजेपी और संघ ने मोदी की नेतृत्व क्षमता और वाक्पटुता से भरने की तैयारी कर ली है।

फिर भी बीजेपीऔर उसके नेता जानते है कि मोदी की शख्सियत से गुजरात दंगोँ के दाग़ धोने का फार्मुला अभी भी उन्हेँ नहीँ मिला है और बहुत मुमकिन है कि इन आम चुनावो मेँ पार्टी को इसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़े। लेकिन फिर भी इस बात को लेकर सभी ख़ासे आशांवित हैँ कि यूपीए की नाक़ामयाबी उनके नेता की कुछ बुराईयोँ और कमज़ोरियोँ को पाटने मेँ कारगर साबित होगी।

ये ग़ौरतलब है कि राजनाथ जी ने जैसे ही पार्टी की कमान संभाली उन्होने देश की नब्ज़ को पहचान अपनी पार्टी के तुरूप के इक्के को सबके सामने समय रहते शो कर दिया। राजनाथ जी ये बख़ूबी जानते हैँ कि अगर बीती पराजयोँ के क्रम को तोड़ना है तो एक ज़ोरदार दाँव चलना ज़रुरी है और इसीलिये उन्होँने मोदी पे अपना दांव लगाया है। बनारस से मोदी को उतारना हिन्दु भावनाओँ को सहलाने के लिये और अपने ज़ाहिर वोट बैंक को सुरक्षित रखने की ही एक कड़ी है।लेकिन केजरीवाल और अंसारी के साथ मोदी की बनारस सीट की जद्दोजहद क्या रंग दिखायेगी ये तो आने वाला समय ही बता पायेगा।

चलते चलते ये भी बताना लाज़मी है कि मोदी के आलोचकोँ, जिनमेँ उनकी अपनी पार्टी के कुछ लोग भी शुमार हैँ इस बात को मानने से अभी भी साफ़ इंकार करते हैँ कि ‘मोदी लहर’ ने बीजेपी के भाव या स्टॉक को सियासत मेँ उछाला है, बल्कि उनका मानना है कि ‘सत्ता विरोधी’ लहर और सरकार की नाक़ामयाबी ऐसी वजहेँ  हैँ जो इन 2014 के लोकसभा चुनावोँ मेँ बीजेपी के पक्ष मेँ काम करेंगी। फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी, चुनाव के पहले चरण की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और नतीजोँ की भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल काम है। बीजेपी का एक गुट और देश का ज़्यादातर मतदाता अभी भी ये मानता है कि मोदी जी पर दांव लगाना ज़ोख़िम का खेल है लेकिन फिर भी इतना ही कहना चाहुंगी ज़िन्दगी तो नाम ही ज़ोखिमोँ से खेलने का है और शायद भाजपा ऐसा ही लेने लायक़ एक ज़ोखिम है।

ख़ैर आईये शुभारंभ करते हैँ भारतीय लोकतंत्र के इस महापर्व का और अपनी बौद्धिक क्षमता और अपने ख्यालोँ को सर्वोपरी रखते हुए ये सुनिश्चित करते हैँ कि अपने नागरिक होने के फर्ज़ को ज़रुर पूरा करेंगे और चुनावोँ मेँ मत डालने ज़रुर जायेंगे….. आख़िर अगर हम ज़ोखिम नहीँ लेंगे तो हमारा भविष्य ज़रुर ज़ोखिम भरा हो जायेगा।

…………………………………………………………..

sonali-bose

सोनाली बोस,

लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम –

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here