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संजय कुमार गिरि की कविता – सोने के परिंदे

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सोने के परिंदेख्वाहिशों के बंधन से , मुक्त कौन हो सका है ? जिस "परिंदे की आजादी" को ? वो* भी कुछ न कर सके | उस "सोने...

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