स्टोरी
अनिल ने बिस्तर पर लेटे-लेटे दीवार घड़ी की ओर देखा, सुबह के नौ बजनेे को थे ‘ओह! मॉय गॉड’ कहकर वह एक झटके से उठ गया। साइड टेबिल पर रखी सिगरेट की डिब्बी और लाइटर उठाने के बाद उसने खिड़की के परदे खींच दिये। सूरज की तेज किरणों से उसकी आँखें चौंधिया गयीं और पूरा कमरा सूर्य-प्रकाश से नहा गया।
रात देर से सोने के कारण अक्सर उसे सुबह उठने में देर हो जाती है, पर आज सुबह उसे जल्दी उठना था जैसा कि सोने से पहले उसने स्वयं से तय किया था। साथी पत्रकार उदय के साथ मिलकर न्यूज चैनल के लिए आज उसे कोई न कोई स्टोरी अवश्य तैयार कर लेनी थी। बालकनी से अखबार उठाने से पहले वह सिगरेट सुलगा चुका था। अखबार हाथ में लिये और सिगरेट फूँकता वह टॉयलेट की ओर बढ़ा ही था कि सेलफोन की घंटी बज उठी।
‘‘हैलो!……हाँ उदय बोलो।’’
‘‘उठ गये…….क्या कर रहे हो?’’
‘‘उठ गया हूँ ……….दो नम्बर जा रहा हूँ ………’’
‘‘तम्बाकू निषेध पर तुम्हारा लेख आज के हिन्दुस्तान में छपा है।’’
‘‘अच्छा……..किस पेज पर है?’’
‘‘सम्पादकीय पेज……पृष्ठ संख्या आठ’’
‘‘ठीक है, वहीं अंदर पढ़ता हूँ।’’
‘‘सुबह से कितनी फँूक चुके?’’
अनिल ने सिगरेट का कश खींचा फिर बोला, ‘‘अमां यार अभी पहली ही है, सुन बे…….हनुमान सेतु पर मिलते हैं। मंगल को लेकर आ जाना…..और हाँ उसका कैमरा चेक कर लेना कहीं पिछली बार की तरह धोखा न दे जाये।’’
‘‘ओ के बॉस…….’’
‘‘ठीक है….आज हर हाल में कोई स्टोरी ढूँढनी…गढ़नी है….बॉय।’’
‘‘ये गढ़नी क्या है बॉस?
”चोप्प….’’ अनिल ने फोन काट दिया। नेचुरल कॉल लगातार आ रही थी।
अनिल ने दूसरी सिगरेट सुलगायी। हिन्दुस्तान का संपादकीय पृष्ठ खोलकर देखा, मोटे अक्षरों की हैडिंग के साथ ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 31 मई, 2007’ शीर्षक के नीचे किनारे उसका नाम छोटे अक्षरों में ‘अनिल यादव’ छपा था। उसने सिगरेट का तेज कश लेकर ढेर-सा धुआँ उगलते हुए बुरा-सा मुँह बनाया और टॉयलेट कम बाथरूम में अखबार सहित घुस गया। अखबार पढ़ते और सिगरेट के कश लेते नित्यक्रिया से निवृत्त होना उसकी आदत में शुमार था।
अनिल ने शेविंग करने की जरूरत महसूस नहीं की। दाढ़ी में दो तीन बार हाथ फेरा। शीशे की ओर आड़ी-तिरछी दृष्टि घुमायी, ‘चलेगी’ उसके होंठ बुदबुदाये। शावर खोलकर वह फटाफट नहाने लगा।
शोभा को मायके गये एक सप्ताह हो चुका था। खाना-पीना, नाश्ता सब ऐसे ही चल रहा था। शोभा के न रहने से सब कुछ अस्त-व्यस्त-सा हो जाता है। उसने ड्रेसिंग टेबिल पर रखी धर्मपत्नी शोभा की फोटो की ओर निहारा फिर फोटो के पास रखे नायसिल पाउडर के डिब्बे से अपने उघारे बदन पर पाउडर छिड़कने लगा।
गर्मी उमस के साथ चरम पर थी। उसे भूख महसूस हुई। क्या खाये?किचन की तलाशी लेते उसे याद आया कल रात वह चार अण्डे लाया था। फ्रिज खोला अण्डों को देख उसकी आँखें चमकीं। चारों अण्डों को फोड़ उनकी जर्दी कटोरे में डाली फिर उसमें नमक मिलाकर फेंटा,फेंटने के बाद कटी अदरक,टमाटर,धनिया पत्ती, हरी मिर्च को मिलाया फिर कटी प्याज को गरम तेल में डालकर लाल होने दिया। इसके बाद फेंटी हुई जर्दी ओवन में डालकर बड़ा-सा आमलेट बना लिया। अगले सात-आठ मिनट में उसने चाय सिप करते, आमलेट खाते हुए कपड़े पहने और फ्लैट लॉक कर बाहर आ गया।
जेब से पर्स निकालकर देखा उसमें सौ-सौ के सात नोट शेष थे। आज स्टोरी हर हाल में बनाकर देनी है। पिछले एक हफ्ते से बहुत मस्ती हुई। उसने बाइक स्टार्ट की और मुख्य सड़क पर आकर हनुमान सेतु मंदिर की दिशा में बाइक मोड़ दी।
हनुमान सेतु के पहले गोमती नदी के किनारे पान की गुमटी के पास उदय कैमरामैन मंगल के साथ पान पराग का पाउच फाड़कर मुँह में डालते दिख गया। अनिल ने बाइक गुमटी के पास रोक दी।
‘‘आज 31 मई है…….विश्व तम्बाकू निषेध दिवस……..और तुम साले पाउच फाड़ रहे हो।’’ अनिल बाइक से उतरते हुए उदय से बोला।
‘‘मालूम है साले…..दो सिगरेट फूँकने के बाद तो तेरी निकलती है।’’
उदय के ऐसा कहने से गुमटीवाला और कैमरामैन मंगल ठठ्ठा मारकर हँस दिये।
अनिल ने आँखें तरेरी फिर स्वाभाविक मुद्रा में आँख मारते बोला, ‘‘इसका मतलब मैं सिगरेट सुलगा सकता हूँ।’’
‘‘ऐसी गर्मी में सिगरेट……?’’ मंगल बोल पड़ा।
‘‘सिगरेट ही तो राहत देती है……बेवकूफ।’’ अनिल ने धुआँ उसके चेहरे पर उगलते हुए कहा।
‘‘यार ये तूने कैप्सटन ब्राण्ड कब से पीनी शुरू कर दी?’’
‘‘सुभाषचन्द्र बोस ए फोरगोटन हिस्ट्री।’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘अरे जबसे पता चला कि यह ब्राण्ड नेताजी को पसंद था..तब से..’’
‘‘अच्छा तो क्या नेताजी को अपना आदर्श बना लिया है?’’
‘‘हाँ…….पर केवल सिगरेट के मामले में।’’ अनिल मंगल सिंह की पीठ पर धौल जमाते बोला।
मंगल पर धौल भारी पड़ा उसे खाँसी आ गयी, इस वार्ता से दूर वह अभी तक अनिल द्वारा उसे ‘बेवकूफ’ कह देने में ही अटका पड़ा था।
‘‘छोड़ो भी….यार ये बताओ आज की स्टोरी के बारे में क्या सोचा है? ऐसी गर्मी में।’’ उदय अपने सिर की कैप सही करते बोला।
अनिल ने दूर दूसरे किनारे की ओर सिमटी-बहती गोमती नदी की ओर दृष्टि दौड़ायी फिर हनुमान सेतु की गरमाती डामर की सड़क के किनारे पुल पर…. एकाएक वह चहका ….‘‘उदय उधर देख….’’
‘‘किधर…….?’’
‘‘वहाँ पुल के किनारे कोई बैठा है।’’
‘‘इतनी तेज धूप-लू में….अरे बाप रे….पता नहीं ज़िन्दा भी है….या नहीं…’’
‘‘आओ वहीं चलकर देखते हैं।’’
इस बार उदय ने अपनी बाईं आँख दबाते कहा……‘‘स्टोरी’’
अनिल ने अपनी बाइक वहीं खड़ी रहने दी…….तीनों पैदल ही सड़क पार कर पुल के किनारे चलने लगे।
पुल की पटरी पर बैठे उस बूढ़े असहाय भिखारी जैसे आदमी के निकट पहुँचते ही तीनों के चेहरे खिल उठे।
तीनों की आँखों की चमक इस समय ठीक वैसी ही थी जैसे शिकार के पास पहुँुचकर शिकारी की आँखें चमक उठती हैं।
अनिल बूढे़े के चेहरे के पास तक झुकता हुआ लगभग उसे छूते हुए कुछ कहने को हुआ पर चुप रहा।
वृद्ध की साँसें तेज तेज चल रही थीं…..आँखें बंद थीं, होंठ कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे……पर मुँह से कुछ कह पाने में वह असमर्थ था।
‘‘मंगल सामने से क्लोजअप लो…….कैमरे में टाइमर लगा लो…..देखो इस समय दिन के बारह बजकर छः मिनट हुए हैं।’’ अनिल ने कैमरामेन मंगल को निर्देश दिया। ‘‘उदय तुम माइक पकड़ो’’ उदय ने माइक पकड़ लिया अनिल वृद्ध के बगल में झुकते हुए बैठ गया और कैमरे की ओर देखते हुए बोला ‘‘31 मई की इस चिलचिलाती तेज धूप और लू में जबकि शहर का तापमान 46 डिग्री पार कर रहा है, सड़क का डामर तेज धूप से पिघल रहा है……दोपहर के बारह बजकर दस मिनट होने को हैं…….इस बूढ़े असहाय आदमी की खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है……प्रदेश की राजधानी में जहाँ सत्ता के लोग…शासन का सर्वोच्च अधिकारी वर्ग एअर कंडीशनर की ठंडी हवा का आनंद उठा रहे हैं वहीं ये बूढ़ा आदमी हनुमान सेतु के किनारे भूखा-प्यासा गर्मी से लड़ रहा है। …..यह आम आदमी है जिसे हम जनता कहते हैं……..जिसके लिए दूर-दूर तक पीने का पानी नसीब नहीं है, पानी और भूख से बेहाल अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है…….है कोई नेता?……है कोई नौकरशाह? इस आम आदमी की खबर लेने वाला…..कोई नहीं…….’’ बूढ़ा आदमी अपने आसपास कुछ हलचल महसूस कर अपनी बची-खुची शक्ति समेटकर भर्राई आवाज में बोला,‘‘पानी….पानी …।’’
मंगल ने वृद्ध की आवाज भी टेप कर ली और कैमरा बंद कर दिया।
उदय ने अपने बैग से आधी पी पेप्सी की बोतल बूढ़े के मुँह में लगानी चाही कि अनिल चीख पड़ा, ‘‘क्या करते हो?……अच्छी-खासी स्टोरी का सत्यानाश करना है क्या?’’
‘‘अरे……ये बिना पानी के इस धूप-गर्मी में मर नहीं जायेगा?’’
‘‘मरेगा…….तभी तो स्टोरी बनेगी…….अब चलो यहाँ से घण्टे दो घण्टे बाद आते हैं… इसे फिर से कवर करने…….तब तक कुछ खा-पी लेते हैं….भूख भी लग आयी है।’’ अनिल ने अपने माथे पर चुह-चुहा आईं पसीनें की बूँदों को धूप का चश्मा उतार कर रूमाल से पांेछ डाला। उदय शांत रहा पर मंगल बोल पड़ा,‘‘चलो सामने जैमिनी कॉण्टीनेण्टल में चला जाये।’’
‘‘साले…….जैमिनी में चलेगा…….अच्छा चल वहीं ले चलता हूँ….तू भी क्या याद रखेगा।’’
सेतु के उस पार परिवर्तन चौक फिर लक्ष्मण पार्क और उसके सामने नवनिर्मित जैमिनी कॉण्टीनेण्टल…….प्रेस क्लब के पास होने के कारण अनिल-उदय अक्सर यहाँ खाने पीने आते रहते हैं।
दोपहर के लंच से तीनों तृप्त हुए……कुल बिल पाँच सौ अस्सी रुपये का बना। बिल अनिल ने चुकाया……बीस रुपये बैरा को टिप के दिये कुल छः सौ खर्च हुए। उसके पर्स में इकलौता सौ का पत्ता शेष था। यदि इस स्टोरी का पेमेंट उसे कल तक मिल जाये तो उसे ए.टी.एम. से रुपये नहीं निकालने पड़ेंगे। अनिल ने मन ही मन हिसाब-किताब लगाया।
तीनों जैमिनी होटल से अपने-अपने दाँत कुरेदते बाहर आ गये।
सेतु के किनारे पटरी पर बूढ़ा आदमी एक ओर लुढ़का पड़ा था। मंगल ने कैमरा सही किया अनिल ने अपनी दाईं हथेली उसकी नाक के नीचे लगायी अभी साँसें चल रही थीं।
‘‘जिन्दा है।’’
‘‘क्या किया जाये?’’
‘‘चलो मंदिर में चलते हैं……..यहाँ तक आये हैं तो हनुमान जी के दर्शन ही कर लिए जायें।“
‘‘पर इस समय तो मंदिर बंद रहता है। कपाट चार बजे के बाद ही खुलते हैं।’’ मंगल बोला।
‘‘तो क्या……यहीं धूप में इस बुढ्ढे के साथ मरने का इरादा है? चलो वहीं पान की गुमटी के पास चलते हैं, वहाँ पेड़ की छाया भी है।’’
मीडिया के सजग प्रहरी पान की गुमटी के पास आ जाते हैं और गुमटी वाले से पान मसाला का पाउच लेकर सारा का सारा मसाला अपने-अपने मुँह में उड़ेल लेते हैं।
‘‘अनिल पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस है।’’ खाली पाउच फेंकते उदय बोला।
‘‘हाँ वो तो है…….’’
‘‘तो क्यों न उस दिन के लिए भी आज ही कल में एक स्टोरी और तैयार कर ली जाये।’’
‘‘कोई पेड़ कटवाकर या फिर प्रदूषण फैलवाकर……’’ अनिल ठहाका मारकर हँस पड़ा।
अनिल के ठहाके से गुमटी के पीछे नदी की ढाल जहाँ से शुरू होती है वहीं पेड़ के नीचे तख्त पर ताश खेलते रिक्शा-ठिलिया चलाने वाले जैसे लोग उसकी ओर ताकने लगे।
‘ऐसी गर्मी…….भूख……प्यास…….बेकारी वाले दिन भी कोई इतना हँस सकता है…..’ जैसे भाव उनके चेहरे पर गौर से देखने पर जरूर दिख जाते।
पर उनकी ओर से बेपरवाह अनिल अपनी रौ में आगे बोला, ‘‘जानते हो जागरण में विश्व पर्यावरण दिवस पर मेरा लेख मैंगजीन के पहले पृष्ठ पर छप रहा है।’’
मंगल ने लंच का ऋण-सा चुकाते हुए उसकी ओर प्रसन्नता से देखा जबकि उदय ने कुछ-कुछ ईर्ष्या से……
कुछ देर बाद वे तीनों पुनः उस वृद्ध के पास आ गये। अनिल ने पूर्व की भाँति वृद्ध की नाक के नीचे हथेली लगायी……अभागे गरीब वृद्ध की साँसें थम चुकी थीं।
अनिल की आँखें चमकीं….एकबार फिर कैमरा रेडी हुआ….अनिल ने वृद्ध के पास से बोलना शुरू किया….‘‘शाम के चार बज रहे हैं….प्रदेश की राजधानी में…..
उसी दिन सायं सात बजे की न्यूज में महानगर के हजारों लाखों लोगों ने उस बूढ़े आदमी को धूप-भूख-प्यास से लाचार लड़ते-मरते देखा और सत्ता पक्ष व विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप सुने। जिम्मेदार नौकरशाह द्वारा मामले को लेकर दी जा रही सफाई और किसी छोटे से कर्मचारी का निलम्बन भी सुना।
देर रात चौथे स्तम्भ के दोनों उदीयमान पत्रकार न्यूज डॉयरेक्टर के साथ डिनर लेने के बाद जिन सिप कर रहे थे।
कैमरामैन मंगल उनके साथ नहीं था।
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महेन्द्र भीष्म
सुपरिचित कथाकार
बसंत पंचमी 1966 को ननिहाल के गाँव खरेला, (महोबा) उ.प्र. में जन्मे महेन्द्र भीष्म की प्रारम्भिक षिक्षा बिलासपुर (छत्तीसगढ़), पैतृक गाँव कुलपहाड़ (महोबा) में हुई। अतर्रा (बांदा) उ.प्र. से सैन्य विज्ञान में स्नातक। राजनीति विज्ञान से परास्नातक बुंदेलखण्ड विष्वविद्यालय झाँसी से एवं लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्नातक महेन्द्र भीष्म सुपरिचित कथाकार हैं।
कृतियाँ
कहानी संग्रह: तेरह करवटें, एक अप्रेषित-पत्र (तीन संस्करण), क्या कहें? (दो संस्करण) उपन्यास: जय! हिन्द की सेना (2010), किन्नर कथा (2011) इनकी एक कहानी ‘लालच’ पर टेलीफिल्म का निर्माण भी हुआ है।
महेन्द्र भीष्म जी अब तक मुंशी प्रेमचन्द्र कथा सम्मान, डॉ. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार, महाकवि अवधेश साहित्य सम्मान, अमृत लाल नागर कथा सम्मान सहित कई सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।
संप्रति -: मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ पीठ में संयुक्त निबंधक/न्यायपीठ सचिव
सम्पर्क -: डी-5 बटलर पैलेस ऑफीसर्स कॉलोनी , लखनऊ – 226 001
दूरभाष -: 08004905043, 07607333001- ई-मेल -: mahendrabhishma@gmail.com