शमी का पौधा, तेजस्विता एवं दृढ़ता का प्रतीक

शमी का संबंध शनि देव से है। इसे एक चमत्कारिक पौधा भी माना जाता है, क्योंकि जो व्यक्ति इसे घर में रखकर इसकी पूजा करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती।
विश्व की प्राचीनतम सभ्यता और हमारी वैभवशाली हिंदू सनातन संस्कृति का गौरव गान करता ये लेख,पुराणानुसार जो सप्तनगरीयाँ है – अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवंतिका(उज्जैन) और द्वारका.

हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रकृति को देवता कहा गया है। जल, अग्नि, वायु, धरती और आकाश, इन पंचतत्वों से बने शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी इन पांच तत्वों की आवश्यकता होती है। इन्हीं पंचतत्वों में से एक है धरती। इस पर पाई जाने वाली समस्त वनस्पतियां, पेड़-पौधे हमारे जीवित रहने के लिए जितने जरूरी हैं, उतने ही हमारे ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को कम करने के काम भी आते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों में नवग्रहों से संबंधित पेड़-पौधों का जिक्र मिलता है। इन्हीं में से एक है शमी का पौधा या वृक्ष।

कभी समय मिले तो मंदिर प्रांगण या शहर के किसी एकांत जगह विचरण करते वक़्त ध्यान दीजियेगा की आपके आसपास सबसे अधिक कौनसे पेड़-पौधे है?

“शमी” का पौधा, तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नितत्व की प्रचुरता होती है इसलिए इसे यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने हेतु उपयोग में लाया जाता है।

1.मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामजी ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शमी के वृक्ष के सम्मुख अपनी विजय के लिए प्रार्थना की थी।लंका विजय के बाद भी श्रीराम ने शमी वृक्ष का पूजन किया था।

2.महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान शमी के पौधे में ही अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे।

3.कवि कालिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसी वजह से शमी का काफी अधिक महत्व है।

शमी का पौधा घर के ईशाण कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है। इसे घर में मुख्य द्वार के बाएं तरफ लगाना चाहिए। शमी का पौधा लगाने से कई प्रकार से वास्तुदोष दूर होते हैं। इसे लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती है।

नवग्रहों में “शनि महाराज” को दंडाधिकारी का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा या साढ़ेसाती आती है,तब जातक के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा हिसाब होता है इसलिये शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं। पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता। शनिवार की शाम को शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है।

जन्मकुंडली में यदि शनि से संबंधित कोई भी दोष है तो शमी के पौधे को घर में लगाना और प्रतिदिन उसकी सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है। सोमवार को शमी के पौधे में एक लाल मौली बांधे। इसे रातभर बंधे रहने दें। अगले दिन सुबह वह मौली खोलकर एक चांदी की डिबिया या ताबीज में भरकर तिजोरी में रखें, कभी धन की तंगी नहीं होगी।

शनिवार को पेड़ के सबसे निचले भाग में उड़द की काली दाल और काले तिल चढ़ाएं।

कई सारे युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आती है। विवाह में बाधा आने का एक कारण जन्मकुंडली में शनि का दूषित होना भी है। किसी भी शनिवार से प्रारंभ करते हुए लगातार 45 दिनों तक शाम के समय शमी के पौधे में घी का दीपक लगाएं और सिंदूर से पूजन करें। इस दौरान अपने शीघ्र विवाह की कामना व्यक्त करें। इससे शनि दोष समाप्त होगा और विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है।सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है।शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है।शमी के पंचांग (फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस) का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है।

शमी को वह्निवृक्ष भी कहा जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधी मानी गई है। कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं।

शनिवार को शाम के समय शमी के पौधे के गमले में पत्थर या किसी भी धातु का एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित करें। शिवलिंग पर दूध अर्पित करें और विधि-विधान से पूजन करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र की एक माला जाप करें। इससे स्वयं या परिवार में किसी को भी कोई रोग होगा तो वह जल्दी ही दूर हो जाएगा।

इस वर्ष 25 अक्टूबर 2020, दशहरे” के दिन दोपहर 1:30 से लेकर 2:40 के आसपास आप शमी का पौधा घर ले आये। यदि आप जमीन पर लगा लो तो बेहतर अन्यथा यदि आपको गमले में लगाना हो तो याद रखे कि ये पौधा थोड़ा बड़ा होता है अतः किसी घड़े/मटके में साँफ़ मिट्टी में लगाये। आसपास नाली या कूड़ा-कचरा ना हो, ये याद रखें। जड़ के पास एक रुपये का “सिक्का” और एक “सुपारी” रखे, साथ ही “लोहे” के कुछ छोटे नट-बोल्ट..गमलों की “अचल मिट्टी” और जमीन पर पौधों की “चलायमान मिट्टी” में फर्क रहता है,बारिश की वजह से मिट्टी को खनिज पदार्थ मिलते रहते है जबकि गमले में ये समस्या आती है।

“लोहे” का आधिपत्य स्वंय शनिदेव रखते है और जब शनै-शनै लोहे का खनिज शमी के पौधे को मिलता रहता है, इसके पत्ते के रंग में जबरदस्त निखार आता है। इस पौधे को बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है पर धूँप बहुत चाहिये होती है। PLC.

 

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