Satire : बुजुर्ग एक्स. एम.एल.ए. की ‘विधायक बहू’

-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी –

INVC-NEWSपिछला चुनाव- अरे वही विधानसभा वाला, कई लोगों के लिए अच्छा साबित हुआ। कई ऐसे लोग जो वर्षों पहले विधायक रह चुके हैं आजकल उनकी बहुएँ उन्हें वो सुख दे रहीं हैं जो वे स्वयं विधायक रहते नहीं पाए रहे होंगे। फोटो खींचने वाली मीडिया के लोगों के भी दिन लौट आए हैं वे लोग भी पूर्व विधायक की बहू का फोटों खींचकर जब अखबार, फेसबुक और व्हाट्सअप पर अपलोड करते हैं तो मांस/मदिरा और पान-पत्ते भर का पा जाते हैं।
पत्नी के पीछे-पीछे मुखन्निस कहलाने वाले भाई जी को सब भले ही बाई जी का तबलची कहें लेकिन आजकल उनका भी रूतबा काफी बढ़ गया है और ससुर जी का तो पूछिए ही मत, उनका सीना तो 56 इंच का हो गया है। कहने का तात्पर्य यह कि पूरा कुनबा आजकल जिले भर में भ्रमण कर अपना रौब जमा रहा है। चूँकि ससुर जी बहुत दिन तरसने के बाद अपनी बहू को चुनाव जिता पाए हैं इसलिए वह कोई मौका हाथ से गंवाना नहीं चाहते। शायद उन्हें पता है कि अगली बार के चुनाव में ऐसा मौका दोबारा मिलने वाला नहीं है।
ससुर, बहू और बेटा लक्जरी गाड़ी में बैठ कर अस्पताल, थाना, आंगनबाड़ी केन्द्र, सरकारी विद्यालय, क्रय केन्द्र, बस अड्डा आदि जगहों पर जा-जाकर औचक निरीक्षण कर रहे हैं। बड़ी हंसी आती है यह देखकर कि एक्स एम.एल.ए./बुजुर्ग नेता जी अपने बेटा और विधायक बहू को लेकर पूरे जिले का तूफानी दौरा कर रहे हैं। औचक निरीक्षण की फोटो अखबारों में छपवाकर सरकार में कोई ओहदा पाने का प्रयास कर रहे हैं- राम जानें।
हमारे बचपन में शादी-ब्याह के मौके पर जब बारात वाले बाई जी को नाचने/गाने के लिए लाते थें तब हम लोग दो रात और एक पूरा दिन बाई जी का नाच-गाना देख-सुनकर मस्त हो जाया करते थें। ठीक उसी तरह जब मुखन्निस पति की पत्नी और उनके बूढ़े बाप को देखते हैं तो 60 साल पहले की बात याद आने लगती है। बाई जी की तरह विधायक, भंड़ुवा की तरह उनके मुखन्निस पति और पुराने (……बाज) की तरह ससुर को शायद यह नहीं मालूम कि सरकार ने पूरे जिले का प्रभार उनको नहीं दिया है। ज्यादा से ज्यादा वे अपना विधानसभा क्षेत्र देख सकते हैं, पूरे जिले के सभी विधानसभाओं में आखिर क्यों जाते हैं? अरे भाई अब प्रजातन्त्र तो रहा नहीं अब तो लोकतन्त्र हो गया है जिसमें सभी चालाक हैं। अफसर, सरकारी कर्मचारी और जनता को इतना बेवकूफ मत समझिए।
कौन कहे कि आप लोगों के ऐसा करने से आम जनता में गलत संदेश जा रहा है कि पुराने वाले नेता जी अपनी नव निर्वाचित विधायक बहू को आगे करके कमीशन बांध रहे हैं। चुनाव में ज्यादा पैसा खर्चा हो गया है उसी की भरपाई इधर-उधर से करना चाहते हैं शायद इसीलिए पूरा घर एक गाड़ी में बैठ कर ब्लाक, तहसील, जिला मुख्यालय के हर ऐसे आफिसों का चक्कर लगा रहे हैं जहाँ उन्हें उम्मीद है कि यहाँ विधायक का रौब काम कर जाएगा। इस समय नवनिर्वाचित विधायक अपने कुनबे के प्रमुख सदस्यों ससुर, पतिदेव के साथ हर उन जगहों पर भी पहुँच रही हैं जहाँ फीता काट कार्यक्रम आयोजित किया गया हो।
मेरी समझ से शायद ऐसा करके उन्हें कोई लाभ मिलने वाला नहीं है उल्टे उनकी बइज्जती ही खराब होगी। उन्हें चाहिए कि यदि भविष्य में दुबारा उसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना है तो उन्हें वहाँ की जनता की समस्याओं के निराकरण क्षेत्र के विकास पर ध्यान देना चाहिए। पुराने वाले नेता जी की बहू जब से विधायक हुई हैं तब से पूरा घर और कुछ फोटखिंचवा पत्रकारों की पौ-बारह हो गई सी दिख रही है। हमसे रहा नहीं गया- एक दिन पुराने नेता (विधायक) से पूँछ बैठे कि वो लोग आखिर ये क्या कर रहे हैं? बुड्ढे नेता बोले कि देखो भइया तुम तो पुराने पत्रकार हो और सब जानते ही हो। अबकी बार किसी तरह बहू को चुनाव लड़वाया, चुनाव जीतने के लिए प्रचार-प्रसार कराया, बड़ा खर्च आ गया और आप तो ये भी जानते हो कि बेटा निठल्ला है कुछ काम-धन्धा करता नहीं अब उसकी पत्नी चुनाव जीतकर विधायक बन गई है ऐसे में उसका भी रूतबा बढ़ गया है। ठीक उसी तरह जैसे कि प्रधान पतियों का होता है।
इस बार चुनाव जीतकर मेरी बहू विधायक हुई है। उसे क्षेत्रीय राजनीति का ज्ञान तो है लेकिन एक विधायक के रूप में जितनी जानकारी होनी चाहिए अभी उससे वो नावाकिफ है। इसलिए मैं भी उसके साथ ही रहता हूँ कि कहीं कोई गलती न कर दे। एक बात और वह यह कि ये राजनीति है इसका कुछ पता नहीं कि कब पलटी मार जाए। जब तक बहू विधायक है तब तक कुछ पैसा-वैसा कमा लूँ।
बुड्ढे नेता की बात मेरी समझ में आ गई कि ये बिल्कुल सही बोल रहे हैं। फिर दुआ-सलाम करके मैंने नेता जी का पीछा छोड़ दिया। चलते-चलते नेता जी बोले देखो भइया कुछ गड़बड़-सड़बड़ मत लिख डालना। मैंने कहा आप बिल्कुल भी चिन्ता न करें, मैं वही लिखूँगा जो देखा है और जो आपने कहा है। नेता जी बहुत खुश हुए और बोले कुछ जलपान-वलपान कर लो तब जाओ। मैंने कहा नहीं नेता जी जलपान अगली बार………..।
विधायक बहू चर्चा में क्यों, जानें……
आपको बताना जरूरी है कि विधायक बहू को एक बार पूर्व में भी ससुर नेता जी ने क्षेत्र स्तरीय माननीय बनाने की कोशिश की थी, जिसमें उन्हें कामयाबी भी मिली थी। उनकी खूबसूरत गौरवर्णीय एम.एल.ए. बहू के बारे में क्षेत्रवासियों का कहना है कि वह अपने मरद से दो दर्जा अधिक पढ़ी-लिखी, बाल-बच्चेदार है। हालाँकि विधायक बहू के हस्बैण्ड पढ़े-लिखे हैं और टीचर बनने की योग्यता वाली डिग्री भी ले चुके हैं, बावजूद इसके वे निठल्ले और बेरोजगार हैं। अब जब नेता जी की बहू एम.एल.ए. हो गई है तब उनके घर में कई लग्जरी गाड़ियाँ आ गईं हैं। इसके पूर्व उनके पास एक ही लग्जरी गाड़ी थी। वैसे भी नेता जी को पैदल चलने की आदत है और कई बार मीडिया में पैदल चलते हुए इनकी फोटो भी प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें इनका भरपूर यशोगान भी किया गया था।
एम.एल.ए. बहू होने से जहाँ नेता जी का बुढ़ापा जवानी में तब्दील हो रहा है वहीं उनके निठल्ले, निकम्मे साहबजादे की व्यस्तता भी बढ़ गई है। वह जो एम.एल.ए. बहू के हस्बैण्ड कहे जाते हैं इस समय एम.एल.ए. प्रतिनिधि का काम कर रहे हैं और अपने कानों से हमेशा फोन सटाये लोगों से बतियाते देखे जा सकते हैं। उधर एम.एल.ए. बहू किसी भी बात की परवाह किए बगैर माकुन हाथी की तरह अपनी गजगामिनी (मरहूम मकबूल फिदा हुसैन द्वारा करोड़ों की लागत से निर्मित माधुरी दीक्षित पर केन्द्रित फ्लाप फिल्म गजगामिनी की बात नहीं कर रहे हैं) रफ्तार से चल रही है। इस गजगामिनी विधायक के पूर्व इसकी स्वजातीय एक और शिक्षित महिला जो पेशे से शिक्षिका थीं को 55 वर्ष पूर्व विधायक बनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। उनके पति और साहबजादे भी एम.एल.ए. रह चुके हैं। अब वह बुजुर्ग दम्पत्ति तो इस संसार में नहीं है परन्तु उनके उत्तराधिकारी (सुपुत्र) राजनीति में सक्रिय हैं।
जहाँ तक हमें मालूम है वह बुजुर्ग विधायक दम्पत्ति इतने सीधे और सरल स्वभाव के थे कि हैसियत होते हुए भी पैदल, रिक्शा, तांगा, टैक्सी में बैठकर गन्तव्य तक की यात्रा किया करते थे। वे सब गाँधीवादी और पण्डित नेहरू व इन्दिरा जी के अनुयायी थे। बहरहाल इस समय चर्चा में ये महिला विधायक इसलिए भी है कि यह साफ-सुथरी एवं बोलने, भाषण देने में कहीं भी हिचकिचाती नहीं है। एम.एल.ए. बहू के ससुर बूढ़े नेता जी को शायद यह भ्रम है कि उनकी बहू राजनीति में अपरिपक्व है, लेकिन ऐसा नहीं दिखता, उन्हें चाहिए कि उसके साथ इधर-उधर सभा, मीटिंग्स और अन्य कार्यक्रमों में आना-जाना छोड़ दें, अपनी बहू को एक माननीय महिला मानें और उसे स्वतंत्र रूप से राजनीति का मजा हुआ खिलाड़ी बनने का अवसर दें। ताकि वह एक सशक्त महिला बन राजनीतिज्ञ बन सके जो स्वजातीय ही नही समस्त महिलाओं के लिए एक आदर्श महिला कही जाए। महिला को अबला नहीं बल्कि सबला मानें। रही एम.एल.ए. बहू के पतिदेव की तो उन्हें भी चाहिए कि अन्य महिला माननीयों को देखें जिनके साथ उनके पतियों को कभी नहीं देखा जाता है, ऐसी राजनीतिज्ञ महिलाएँ अपने बलबूते खुद की पहचान बनाए हुए है। वह भी अपनी पत्नी को एक ऐसी ही राजनीतिक महिला की छवि बनाने का मौका दें और साथ-साथ न चलकर प्रतिनिधि का दायित्व किसी अन्य को दे दें।
यही सब सोच रहा था कि तभी प्यास के चलते हलक सूखने लगा था। नींद से जागकर तखत पर बैठ गया और लेखन कक्ष में रखे पुराने टूटे हुए मटके से पानी निकालकर ताबड़तोड़ तीन-चार गिलास पानी पी गया। प्यास से थोड़ी राहत मिली। बिजली थी नहीं और प्रचण्ड उमस भरी गर्मी में मच्छर भी अपना आक्रमण जारी रखे थे। एक हाथ से हैण्ड फैन चलाते हुए सोचने लगा काश मैं भी एक्स. एम.एल.ए. होता और मेरी बहू भी नेता जी बहू की तरह एम.एल.ए. बहू होती तो कितना अच्छा होता। हमारे घर भी लोगों का आना-जाना लगा रहता। जरूरतमन्द परिवारी जनों की खुशामद करते। मीडिया के लोग फोटो खैंच जैसा कार्य करते और विधायक बहू फीताकाट कार्यक्रमों में बहैसियत चीफ गेस्ट ससम्मान बुलाई जाती। लेकिन यह सब नसीब-नसीब की बात है। साथ ही हमने कोई ऐसा कर्म ही नहीं किया है कि नेता जी की तरह बुढ़ापा सफल हो। क्योंकि कहा गया है कि- ‘‘शैले शैले न माणिक्यम्, मोक्ते न गजे गजे……….।’’

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Bhupendra-Singh-GargvanshiSatireपरिचय :

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

वरिष्ठ पत्रकार व्  टिप्पणीकार

रेनबोन्यूज प्रकाशन में प्रबंध संपादक

संपर्क – bhupendra.rainbownews@gmail.com,  अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.) मो.नं. 9454908400

##**लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी  का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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