– सुदामा रॉय –
भारत-पाक रिश्ते को लेकर पाक की नीति, नीयत और भूमिका खुद को खाक में मिलाने की एक खतरनाक पृष्ठभूमि तैयार करने जैसी है। हम बचपन से ही ये सुनते आए हैं कि पाकिस्तान भारत का सबसे खतरनाक पड़ोसी मुल्क है। सबसे बड़ा दुश्मन है। इस बात को सुनते,देखते,महसूस करते और गहनतापूर्वक समझते हुए अब वाकई ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पाकिस्तान हिन्दुस्तान का तो दुश्मन नंबर वन है ही, वह खुद अपने ही मुल्क का सबसे बड़ा शत्रु है । यानि भारत से दुश्मनी साधते-साधते वो खुद अपने लिए ही कब्र खोदता नज़र आता है। अपने पतन का रास्ता अख्तियार करता नज़र आता है। दरअसल पाकिस्तान खतरनाक विसंगितयों से भरा देश है जहां लोकतंत्र होकर भी जम्हूरियत नहीं है। सीधे सरल शब्दों में कहें तो यहां की सत्ता और संवैधानिक ढांचे में इतने सुराग हैं कि यहां देश के महत्वपूर्ण फैसले लेने की ताकत सत्ता में बैठा शीर्ष नेतृत्व के बूते की बात नहीं है। अगर वो फैसला लेता भी है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वो अंजाम तक पहुंचेगा भी या नहीं। और अगर मसला भारत से जुड़ा हो तो स्थिति बिल्कुल साफ दिखती है। यहां की सरकार भारत से संबंध सुधारने की अगर कोशिश भी करती है तो उसे नाकाम करने वाली शक्तियां भी मौजूद हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि पाकिस्तान में जनता के द्वारा चुनी सरकार भी भारत से संबंधित सकारात्मक निर्णय लेने में न सिर्फ अक्षम है बल्कि देश में मौजूद नकारात्मक शक्तियों की गुलाम है। और ये नकारात्मक शक्तियां कोई और नहीं बल्कि खुद देश की सेना, आईएसआई, कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन हैं। भारत एक सहिष्णु देश है और जितनी सहनशीलता भारत की है विश्व के किसी दूसरे मुल्क में ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिल सकता। बार-बार ज़ख्म देने के बावजूद भारत हमेशा पाकिस्तान से संबंध सुधारने की विकल्प पर न सिर्फ विचार करता है बल्कि कदम भी आगे बढाता है।
लेकिन पाकिस्तान की ओर से सिला मिलता है तो सिर्फ और सिर्फ दगा देने और पीठ में खंजर भोंकने का । बीते दिनों पठानकोट में वायुसेना के एअरबेस पर हुए आतंकी हमले से ठीक कुछ दिने पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अफगानिस्तान से लौटते वक्त अचानक बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के पाकिस्तान गए थे दोस्ती का पैगाम लेकर। पाकिस्तान पहुंचने पर वहां के वजीरे आजम ने भी मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया। लेकिन भारत का ये निश्छल पहल पाकिस्तान में मौजूद सत्ता की नकारात्मक शक्तियों को पसंद नहीं आया और पठानकोट एअरबेस पर हमला कर ये जता दिया कि वो किसी भी सूरत में भारत-पाक संबंधों को सुधारने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं होने देंगे। ये घटना करीब-करीब ठीक उसी तरह से थी जिस तरह 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लाहौर यात्रा के कुछ समय बाद ही करगिल युद्ध हुआ था। यानि दोस्ती का पैगाम देना भारत के लिए उल्टे खतरे की घंटी है।
अब तक के अनुभव से कुछ ऐसे ही विचार बनते हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि पाकिस्तान के साथ फिर भारत का क्या बर्ताव होना चाहिए ? रिश्तों में सुधार की बात वहां होती है जहां कोई गुंजाइश और समझ दिखती हो। पाकिस्तान तो एक ऐसा उलझा हुआ देश है जहां भारत के मसले पर वहां की सरकार की भी नहीं चलती । प्रधानंत्री मोदी और वजीरे आजम नवाज शरीफ के बीच कुछ व्यक्तिगत रिश्तों में गर्माहट भले ही आई हो , नवाज शरीफ दोनों मुल्कों के बीच संबंधों में सुधार की सोच भले ही रखने लगे हों इसका मतलब ये नहीं कि संबंध सुधारने की दिशा में पाकिस्तान कोई बड़ा कदम उठा पाएगा। पाकिस्तानी आर्मी पर सरकार की कोई पकड़ नहीं है ये सभी जानते हैं। अभी तक पाकिस्तान में निर्वाचित सरकारों का चार बार तख्ता पलट हो चुका है। अयूब खान, याहिया खान, जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ ने सेना प्रमुख रहते हुए पाकिस्तानी सेना को एक ऐसी नकारात्मक दिशा दी जिससे पाकिस्तानी सेना को असमाजिक तत्व, क्रिमिनल, साजिशकर्ता और माफिया के तौर पर स्थापित करने में मदद की। पाकिस्तान में अगर सरकारी तंत्र का कोई विंग सबसे ज्यादा खतरनाक और भ्रष्ट है तो वो है वहां की सेना। चाहे कट्टरपंथियों को बढावा देना हो या फिर आतंकियों को मदद देनी हो, इन सब में पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों की संलिप्तता अब आम बात सी है। विभाग में पैसे बनाने के लिए सरकारी तंत्र का बेजा इस्तेमाल करना, लूट-खसोट करना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना और यहां तक की तश्करी जैसे संगीन अपराधों में पाक सैन्य अधिकारियों की संलिप्तता भी जगजाहिर है। तभी तो पाक के ज़्यादातर पूर्व सैन्य प्रमुखों के पास बेहिसाब संपत्ति है। अब तक पाकिस्तान के करीब सभी सैन्य प्रमुखों की मानसिकता पूरी तरह भारत विरोधी रही है। आतंकियों को भारत के खिलाफ पाकिस्तान की धरती में आईएसआई और पाकिस्तानी सेना प्रशिक्षित करती रही है ।
पाकिस्तान में आतंकियों को प्रशिक्षणे देने से लेकर भारतीय सरहद में घुसपैठ कराने तक में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का कोई जवाब नहीं। हाल ही में पूर्व सैन्य प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के एक टीवी चैनल को दिए एक इंटरव्यू में इस बात को स्वीकारा भी था कि हाफिज सईद जैसे आतंकियों का सेना के साथ कितने घनिष्ठ संबंध थे। परवेज मुशर्फ भारत के खिलाफ ज़हर उगलते रहे हैं और करगिल युद्ध को प्लॉट करने में उनकी क्या भूमिका थी ये जगजाहिर भी हो चुका है। पाकिस्तान के मौजूदा सैन्य प्रमुख राहिल शरीफ भी उन्हीं में से एक हैं जो शायद भारत की बर्बादी के सपने देखते हैं। तभी तो वो रह-रह कर भारत को अंजाम भुगतने की चेतावनी देते रहते हैं। युद्ध जैसे माहौल का आभास करते और कराते हुए ये कहते हैं कि पाकिस्तान हर तरह की जंग के लिए तैयार है । और तो और राहिल के भारत के खिलाफ जहर उगलते बयानों से ऐसा भी प्रतीत होता है कि उन्होंने अपने दिल में उस ज़ख्म को शायद आज तक ताजा किए रखा है जब 1971 की लड़ाई में उन्होंने अपना सगा बड़ा भाई खोया था। शायद इसीलिए राहिल भी उसी राह पर चलते दिखते हैं जिस पर अयूब खान और परवेज मुशर्रफ चलते रहे।
अब भला ऐसे हालात में अगर प्रधानमंत्री मोदी अचानक पाकिस्तान जा कर भारतीय संस्कृति और अपने संस्कार के मुताबिक नवाज शरीफ की मां के पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं, नवाज शरीफ की दिल में जगह बना भी लेते हैं तो क्या मुमकिन है कि नवाज शरीफ भारत से संबंध सुधारने की दिशा में सेना की इच्छा के इतर कोई बड़ा कदम उठा भी पाएंगे ? भारत को लेकर पाकिस्तानी सेना की नीति और नीयत शुरु से ही खोट भरी और बेहद खतरनाक रही है। भारत तो भारत पाकिस्तानी सेना अपने देश के लोगों पर ही जुल्म ढाने वाली रही है। रक्षक के रुप में भक्षक का चरित्र तो पाकिस्तानी सेना में शुरु से देखने को मिलता है। ज़रा फ्लैशबैक में जाइए और याद कीजिए बांग्लादेश के निर्माण की गाथा। जब पूर्वी पाकिस्तान(जो अब बांग्लादेश है) के बांग्लाभाषी मुस्लिमों ने अपने साथ हो रहे भेद-भाव और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरु किया, अपने अधिकारों को लेकर आंदलोन शुरु किया तो उनके दमन के लिए पाकिस्तानी सेना ने जिस तरह का चरित्र दिखाया था वो न सिर्फ रुह कंपा देने वाला था बल्कि पूरी मानव सभ्यता के खिलाफ था। जिस तरह की हरकत आज अफ्रीकी देशों में बोको हरम और सीरिया, इराक में आईसिस (ISIS) के लोग कर रहे हैं उसी तरह से पाकिस्तानी सेना ने बांग्लाभाषी मुस्लिमों के खिलाफ किया था। पाकिस्तानी सेना ने लाखों की तादाद में बांग्लाभाषी मुस्लिमों का कत्लेआम किया था। लाखों की ही तादाद में बांग्लाभाषी मुस्लिम बहू-बेटियों की इज़्जत तार-तार की थी। पाकिस्तानी सेना के जुल्मों सितम की वो दास्तां हैवानियत की हद को पूरी तरह पार कर चुका था।
अब ज़रा उन बिन्दुओं पर भी गौर करें की मौजूदा समय में पाकिस्तान की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर पर कैसी तस्वीर है। एक मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद पाकिस्तान में सिया-सुन्नी विवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की चर्चा करने की तो शायद अब ज़रुरत भी नहीं है। पहले की तुलना में अब यहां हिन्दु नाम मात्र के रह गए हैं। हर दिन जबरन हिन्दुओं का धर्मांतरण कर उन्हें मुस्लिम बनाने की कवायद खूब होती है। हिन्दुओं पर जुल्मों सितम की इंतहां इतनी की जुल्म और हैवानियत शब्द भी छोटा पड़ जाए । हिन्दु लड़कियों की यहां इज़्जत नीलाम होना, घर में घुसकर पूजास्थलों को तहस-नहस करना, बहु-बेटियों को दिनदहाड़े उठा ले जाना जैसी घटनाएं अब लोगों को चौकाती भी नहीं । पाकिस्तान में मंदिरों का हाल क्या हो रखा है ये तो सब जानते ही हैं।18 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान की करीब 6 करोड़ जनता गरीबी रेखा से नीचे रहती है। गुरबत की मार झेलती जनता को गरीबी और परेशानी से निजात दिलाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस ब्लूप्रिंट नहीं है क्यों कि यहां की हुकूमत और कट्टरपंथी संगठनो की दिलचस्पी इनमें कम और जम्मू कश्मीर में ज्यादा है। तभी तो मुल्क की आमदनी का सब से ज्यादा हिस्सा डिफेंस में चला जाता है । यहां गौर करने वाली बात है कि डिफेंस में ही सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार भी है जिससे सरकारी संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। अब मोटे तौर पर बात यहां की शिक्षा की जाए तो यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में एजुकेशन की हालत अच्छी नहीं है। यहां सिर्फ 54.90 फीसदी लोग ही शिक्षित हैं। जिसमें लिटरेट लड़को का प्रतिशत 69 है तो लड़कियों की स्थिति बेहद दयनीय है। सिर्फ 40 फीसदी लड़कियां ही यहां शिक्षित हैं। लड़कियों की शिक्षा के मामले में पाकिस्तान पड़ोसी देश बांग्लादेश, नेपाल और भूटान से भी पीछे है। गरीबी के कारण करीब 18 फीसदी बच्चे पढाई की बजाय अपने घर वालों की मदद के लिए मेहनत मजदूरी करते हैं। तभी तो मलाला युसफजई जैसी बहादुर बेटी ने पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए लोगों को जागरुक करने का बीड़ा उठाया।
लेकिन आतंकियों ने मलाला को किस तरह मौत की घाट उतारने की कोशिश की ये सब देख चुके हैं। इसी कड़ी में 2014 के दिसंबर में आतंकवादियों ने पेशावार के एक स्कूल में मासूम बच्चों को जिस तरह मौत के घाट उतारा उसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। पाकिस्तान के मस्जिदों, बाजारों और पब्लिक प्लेस में तो आतंकी विस्फोट की खबरें तो आती ही रहती हैं । इन घटनाओं का जिक्र इसलिए लाजिमी है कि इससे ये पता चलता है कि किस तरह पाकिस्तान आज अपनी करनी की सज़ा भुगत रहा है। किस तरह पाकिस्तान आतातायियों और आतंकियों का देश बनता जा रहा है। पाकिस्तान में समाज का एक बहुत बड़ा उपेक्षित वर्ग मुहाजिरों (बंटवारे के बाद भारत से पलायन कर पाकिस्तान गए मुसलमानों को वहां मुहाज़िर कहा जाता है) का भी है। बंटवारे के बाद अपने सुनहरे भविष्य के लिए अलग देश का ख्वाब लिए हिन्दुस्तान से पाकिस्तान गए तकरीबन 50 फीसदी मुहाज़िर बेहद गरीबी में कराची और सिंध प्रांत के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। उनकी ज़िन्दगी में आज भी कोई बदलाव नहीं आया। वो आज भी दाने-दाने को मोहताज हैं। स्लम और बदबूदार गलियों में रहते हैं। पढ़े-लिखे मुहाज़िरों को भी नौकरियां नहीं मिलती, वो धक्के खाते हैं। विभाजन के बाद भारत से पलायन करके गए लोग पाकिस्तान की कुल आबादी के तकरीबन 8 प्रतिशत हैं। लेकिन वो सरकार की नज़रों में इन 69 वर्षों के बाद भी इन्सान नहीं बल्कि संख्या मात्र हैं। पाकिस्तान में मुहाज़िर दोयम दर्जे की नारकीय ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। कुछ इसी तरह की तस्वीर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में रहने वालों की भी है। पीओके में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, हिंसा, शोषण और अत्याचार चरम पर है। कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान सरकार की नीतियों के खिलाफ पीओके में लोगों के जोरदार आंदोलन की तस्वीरें भी मीडिया में आई थी जो किसी ने चोरी-छिपे तरीके से रिकॉर्ड किया था।
जिस में प्रदर्शनकारी पाकिस्तानी पुलिस और सेना के जवानों द्वारा बर्बरतापूर्वक पिटते नज़र आए थे। पीओके में लोगों की आवाज हर संभव दबाने की कोशिश जाती है। वहां की बदहाली की असली तस्वीर न दिखे लोगों की इसके लिए पीओके में पाकिस्तानी सेना, कट्टरपंथी और आतंकी मिलकर दमन कार्यों को अंजाम देते हैं और मीडिया को दूर रखा जाता है। कुल मिलाकर पाकिस्तान की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक संरचना पूरी तरह तितर-बितर है, जर्जर है, कमजोर और दयनीय स्थिति में है। ऐसे नाजुक और दुखदायी हालात में भी सिर्फ कश्मीर पर आधिपत्य जमाने के मकसद से पाकिस्तानी राजनेता,सेना, आईएसआई, कट्टरपंथी, चरमपंथी और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन मिलकर सिर्फ और सिर्फ भारत को टारगेट करने के लिए पूरी ताकत झोंकते हैं तो भला पाकिस्तान की अंदरुनी स्थिति आगे और कितनी खराब होगी इसका शायद अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। जबकि पाकिस्तानी हुकूमत से लेकर वहां की तमाम शक्तियों को मुल्क की अंदरुनी हालत सुधारने की ओर ध्यान केन्द्रित करना प्राथमिकता होनी चाहिए थी। इसलिए यह समझा जा सकता है कि भारत-पाक रिश्ते को लेकर पाक की नीति, नीयत और भूमिका खुद को खाक में मिलाने की एक खतरनाक पृष्ठभूमि तैयार करने जैसी ही है। ये बातें विश्व समुदाय को भी धीरे-धीरे समझ में आने लगी हैं। ये अलग बात है कि पाकिस्तान इस मुगालते में है कि महज चीन की मदद, परमाणु ताकत के बल के सहारे, आतंकियों का इस्तेमाल कर वो भारत को मजबूर कर देगा और कश्मीर पर कब्जा कर लेगा ।
पाकिस्तान कश्मीर की लालच में आज तक जिस रास्ते पर चल रहा है वह खुद उसी के लिए कितना भयावाह और घातक साबित हो सकता है इसका अंदाजा भी शायद उसे नहीं है । उसे यह नहीं पता कि मुल्क में खुद पैदा की गई खतरनाक विसंगतियों ने उसके रास्ते में ऐसे-ऐसे गड्ढे खोदे हैं जो दरअसल गड्ढे नहीं बल्कि गहरे कब्र हैं जिसमें गिरकर वो खुद से दफन हो जाएगा और खाक में मिल जाएगा। पाकिस्तान को अब भी ये समझ जाना चाहिए कि दरअसल वर्षों से दहशतगर्दी और आतंकी घटनाओं के सहारे उसने ने जो भारत के खिलाफ अघोषित लड़ाई छेड़ रखा है वो असल में पाकिस्तान के खिलाफ ही पाकिस्तान की जंग है और इससे पाकिस्तान को ही नुकसान होना तय है।
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सुदामा रॉय
वरिष्ठ टीवी जर्नलिस्ट व् समीक्षक
सुदामा रॉय वरिष्ठ टीवी जर्नलिस्ट हैं। पिछले करीब चौदह वर्षों से एंकर, एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर और संवाददाता के तौर पर इन्होंने देश के कई चैनलों में काम किया है। प्रमुख रुप से जेके चैनल, साधना न्यूज़, फोकस न्यूज़ मौर्या टीवी, सहारा समय में इन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। बतौर फ्रीलांस पत्रकार भी सक्रिय। राजनतीतिक, राष्ट्रीय और अतंर्राष्ट्रीय मसलों पर अच्छी समझ रखते हैं । पत्रकारिता के अलावा साहित्यिक अभिरुचि और काव्य रचना में भी सक्रिय ।
सम्मान – :
इसके अलावा मीडिया संस्थानों में अध्यापन कार्य । पत्रकारिता के जरिए देश और समाज की उत्कृष्ट सेवा के लिए इन्हें प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति, करनाल, हरिय़ाणा के द्वारा Great Icon Of India Award से सम्मानित, इसके अलावा एसपी सिंह पत्रकारिता एवम् जनसंचार संस्थान, पटना की ओर से भी टीवी पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित, पत्रकारिता में विशेष कार्य के लिए लॉयंस क्लब की ओर से Lions Quest in India Foundation Award से सम्मानित।
शिक्षा -:
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता में स्नात्कोत्तर, साथ ही SHIATS, इलाहाबाद से एमबीए करने वाले सुदामा रॉय रामगढ़(झारखंड) के मूल निवासी हैं। मध्यप्रदेश, झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश और दिल्ली में बतौर पत्रकार काम करने का वृहद अनुभव है।
संपर्क- :
मोबाइल नंबर- 9560031369
इमेल आईडी- mjsudama @gmail.com / roysudama127@gmail.com
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Amazing writeup and essential thought for all of us.
right vision portrayed ..