जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 के नजदीक आते ही राजनीतिक माहौल गरमाता जा रहा है। इस बार का चुनाव पहले से भी ज्यादा पेचीदा और अहम माना जा रहा है। राजनीति के विशेषज्ञ नीरज गुप्ता का मानना है कि इस बार का चुनाव सिर्फ सीटों की संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि कुछ खास सीटों और वोटरों के कारण तय होगा। यही सीटें और वोटर किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले हैं साथ ही राजनीतिक विशेषज्ञ नीरज गुप्ता का यह भी मानना की यह चुनावी विश्लेषण सभी राजनितिक पार्टियों के लिए बेहद अहम है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024: क्यों खास है यह चुनाव?
जम्मू-कश्मीर की राजनीति हमेशा से ही भारत के राजनीतिक परिदृश्य में खास जगह रखती आई है। लेकिन 2024 के चुनाव में कुछ नए पहलू जुड़े हैं जो इसे और भी दिलचस्प बनाते हैं। एक तरफ जहाँ धारा 370 की समाप्ति के बाद का यह पहला चुनाव होगा, वहीं दूसरी तरफ अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर इस बार निर्णायक भूमिका में हैं।
यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि इस बार कई सीटें आरक्षित की गई हैं, जिन पर दलित और जनजाति के वोटरों का खासा प्रभाव है। राजनीतिक दलों के लिए यह जरूरी है कि वे सही उम्मीदवार को चुने और उनकी जरूरतों को समझें। नीरज गुप्ता का कहना है कि यह चुनाव सिर्फ सत्ता पाने का नहीं, बल्कि उस सत्ता को बनाए रखने का भी सवाल है।
राजनीतिक विश्लेषक नीरज गुप्ता के दूसरे राजनीतिक विश्लेषण पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे
अनुसूचित जाति और जनजाति: चुनाव में क्यों हैं निर्णायक भूमिका में?
अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटरों का महत्व इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा है। इन समुदायों के वोटर सिर्फ संख्या में नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी जागरूक हो चुके हैं। ये वोटर अपनी समस्याओं और हक की पूरी जानकारी रखते हैं और अब ये किसी भी पार्टी के वादों से बहकने वाले नहीं हैं।
आरक्षित सीटें: यहाँ की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
इस बार 7 सीटें आरक्षित की गई हैं जो पहले सामान्य सीटें थीं। इस बदलाव ने राजनीतिक दलों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। ये सीटें हैं:
- सुचेतगढ़, जम्मू
- मड़, जम्मू
- अखनूर, जम्मू
- बिश्नाह, जम्मू
- रामगढ़, सांबा
- कठुआ, कठुआ
- रामनगर, उधमपुर
इन सीटों पर एससी (अनुसूचित जाति) समुदाय का वर्चस्व है, और यही वजह है कि यहाँ की राजनीतिक स्थिति बेहद संवेदनशील है।
अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटरों का महत्व
राजनीतिक विश्लेषक नीरज गुप्ता का मानना है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। इनका महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह समुदाय अपनी समस्याओं के प्रति बहुत जागरूक है और अब वे किसी भी राजनीतिक दल की हवा में बहने वाले नहीं हैं।
# कौन सी सीटें हैं सबसे महत्वपूर्ण? #
नीरज गुप्ता के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की कुछ सीटें ऐसी हैं जिनका परिणाम पूरे चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकता है। इन सीटों को पहचानना और वहाँ के वोटरों को समझना राजनीतिक दलों के लिए बेहद जरूरी है।
50 फीसदी से अधिक वोटर वाली सीटें
- रामनगर: यहाँ कुल 96780 वोटर हैं जिनमें से अधिकतर एससी हैं।
- कठुआ: कुल 108665 वोटर, जिनमें से 50% से ज्यादा अनुसूचित जाति के हैं।
- रामगढ़: 88590 वोटर हैं और इनमें भी अनुसूचित जाति का खासा असर है।
- बिश्नाह: यहाँ 119786 वोटर हैं और एससी वोटरों की संख्या बड़ी है।
- सुचेतगढ़: 112821 वोटर हैं, जिनमें से 50% से ज्यादा अनुसूचित जाति के हैं।
- मड़: कुल 93325 वोटर, एससी का बड़ा प्रभाव।
- अखनूर: 95268 वोटरों में भी एससी की मजबूत पकड़ है। ( अनुमानित )
20 से 25 फीसदी एससी वोट वाली सीटें
इन सीटों पर एससी वोटरों का प्रतिशत 20 से 25 के बीच है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इन सीटों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।
- आरएस पुरा, जम्मू: 129095 वोटर, 25% एससी वोटर।
- बाहु, जम्मू: 120695 वोटर, 22% एससी।
- जम्मू ईस्ट: 106870 वोटर, 20% एससी।
- जम्मू वेस्ट: 105855 वोटर, 23% एससी।
- नगरोटा: 95571 वोटर, 21% एससी।
- छंब: 105670 वोटर, 24% एससी।
- सांबा: 91088 वोटर, 20% एससी।
- विजयपुर: 80539 वोटर, 22% एससी।
- बिलावर: 94659 वोटर, 23% एससी।
- बनी: 57997 वोटर, 24% एससी।
- बसोहली: 69280 वोटर, 22% एससी।
- जसरोटा: 86753 वोटर, 21% एससी।
- हीरानगर: 87938 वोटर, 23% एससी।
- उधमपुर वेस्ट: 115656 वोटर, 20% एससी।
- उधमपुर ईस्ट: 100691 वोटर, 21% एससी।
- चिनैनी: 109175 वोटर, 22% एससी। ( अनुमानित )
राजनीतिक दलों की रणनीति और चुनौतियाँ
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में राजनीतिक दलों के सामने कई चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी चुनौती है सही उम्मीदवार का चुनाव करना। आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा, क्योंकि यहाँ के वोटर सिर्फ वादों पर नहीं, बल्कि काम पर वोट देंगे।
भाजपा और कांग्रेस की रणनीति
भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों ने अपनी रणनीति को इस बार पूरी तरह बदल दिया है। भाजपा चर्चित चेहरों को आगे लाना चाहती है, जबकि कांग्रेस अपने पुराने एससी नेताओं को मैदान में उतारने की तैयारी में है।
नीरज गुप्ता का कहना है कि इन दोनों पार्टियों के बीच की इस प्रतिस्पर्धा में वही जीत दर्ज करेगा जो जमीनी हकीकत को समझेगा और वोटरों के मन की बात सुनेगा।
FAQs: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024
1. क्या इस बार भी जम्मू-कश्मीर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का मुकाबला रहेगा?
- जी हाँ, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। हालाँकि, क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
2. अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटरों का चुनाव में कितना प्रभाव होगा?
- अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर इस बार के चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। इनकी संख्या और राजनीतिक जागरूकता इस चुनाव का परिणाम तय करने में अहम होगी।
3. आरक्षित सीटों पर उम्मीदवार चुनने में किस प्रकार की चुनौतियाँ हैं?
- आरक्षित सीटों पर सही उम्मीदवार चुनना राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि यहाँ के वोटर अब सिर्फ जाति के आधार पर नहीं, बल्कि उम्मीदवार के काम और छवि के आधार पर वोट देंगे।
जम्मू-कश्मीर की सत्ता
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की राजनीति का भविष्य तय करेगा। अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर इस बार निर्णायक भूमिका में हैं और राजनीतिक दलों के लिए सही उम्मीदवार का चुनाव करना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
नीरज गुप्ता का विश्लेषण बताता है कि इस चुनाव में वही पार्टी विजयी होगी जो जमीनी हकीकत को समझेगी और वोटरों के साथ सही संवाद स्थापित करेगी। किंगमेकर की सीटें और यहाँ के वोटर इस बार पूरे चुनाव का खेल पलट सकते हैं। इसलिए, जो पार्टी इन वोटरों का दिल जीतने में कामयाब होगी, वही जम्मू-कश्मीर की सत्ता की कुर्सी पर काबिज होगी।