पंद्रहवीं कहानी -: बोतल भर सुकून

लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच  ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l

-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की पंद्रहवीं  कहानी –

_____ बोतल भर सुकून ________

mradul-kapil-story-by-mradul-kapil-articles-by-mradul-kapilmradul-kapil-invc-news1111111अमन  पिछले 12 मिनट से अपने मोबाईल पर लगी दीपा की call waiting देख रहा था , रात के 9 .40 हो रहे थे और अमन सात समंदर दूर बैठे अपने किसी Clint से किसी नए वर्क आर्डर के लिए बात कर रहा था .
28 साल का अमन उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले के छोटे से गांव से निकल कर 7 साल पहले मुंबई जैसे महानगर आया था , हर गांव से आने वाले लड़के की तरह अमन के भी शुरू में बहुत से सपने थे , वो बहुत से पैसे कमा कर अपने किसान पिता को आराम देना चाहता था , गांव में स्कूल , अस्पताल सब खोलना चाहता था , लेकिन इन 7 सालो में ये सारे सपने टारगेट ,प्रमोशन , कंपनी की ग्रोथ में कहा दब गए है ये पता ही नही चला , सारे दोस्त , रिश्ते कब टाइम न होने की भेट चढ़ गए ये अमन जान भी न पाया , इन सात सालो में वो सिर्फ एक बार ( माँ की आँखों के आपरेशन के समय ) ही गांव जा पाया था अब उसके पिता नही चाहते थे अमन वापस शहर जाये लेकिन अमन के सपनो के लिए गांव का आसमान बहुत छोटा था ,
मुंबई में ही उसे दीपा मिली सीधी सी सामान्य लड़की , मोहित को दीपा का साथ पसंद था , वो पूरी ज़िंदगी उसके साथ बिताना चाहता था लेकिन उस से पहले मोहित खुद को एक मुकाम पर स्थापित कर लेना चाहता था , ताकि वो दीपा के साथ ख़ुशी से आने वाला कल को बिता सके , और इसके लिए उसे और ज्यादा मेहनत करनी थी ,
और कब इस कोशिश में वो अपने प्यार से दूर होता चला गया उसे अंदाजा भी न हुआ , सुबह जब वो सो कर उठता तो दीपा अपने ऑफिस जा चुकी होती , अमन पुरे दिन में एक लंच के मैसेज के अलावा दीपा से एक पल भी बात न कर पाता , रात में अमन के अपने घर आने से पहले दीपा सो चुकी होती थी , पूरे दिन में वो चंद पल निकालना मुश्किल होता था जो वो दीपा को दे सके , एक ही शहर में रहते हुए भी अमन पुरे 6 महीनो से दीपा को नही मिल सका था। उसके जन्मदिन पर अमन किसी और शहर में कंपनी की नई ब्रांच खोलने के लिए टूर पर था ,
हर रात अमन वापस आते समय 380 रूपए में रॉयल स्टैग की बोतल में कत्थई रंग का सुकून खरीद लता था , और रात भर शराब में डूबा मन गांव की अमराइयों , खेतो और बागो में भटकता रहता , और हर सुबह अमन अपने आप को कंक्रीट के जंगल में अपने सपनो के बोझ तले दबा हुए खुद को अकेला खड़ा पाता।
Clint का फ़ोन काटने के बाद अमन ने दीपा की कॉल उठाई ;
मोहित : हाँ , बाबू बताओ
दीपा : अमन में तुम से ब्रेकअप कर रही हूँ , अब मुझ से और बर्दाश्त नही होता
मोहित : अरे मेरी बात तो सुनो ….
दीपा : नही अमन अब मै और कुछ नही सुनना चाहती ।

भाग :2
” विष्णुपुर ” गांव में कई दिन से उत्सव का माहौल था और उत्सव होता भी क्यों नही, पूरे देश के गाँवो में विष्णुपुर को सर्वश्रेष्ठ आदर्श ग्राम के रूप में चुना गया था ।दो दशक पहले तक ये गांव भी भारत के लाखो गाँवो की तरह गरीबी , बीमारी , बेरोजगारी , आशिक्षा और नशे के दलदल में फंसा हुआ था , लेकिन आज गांव में अच्छे स्कूल , अस्पताल , बहुत से लघु और कुटीर उद्योग, बैंक सब कुछ था और इस बदलाव के पीछे सिर्फ एक ही नाम था – अमन । अमन जो आज के बीस साल पहले मुंबई शहर की चमक दमक पीछे छोड़ कर रात के अंधरे में गांव पंहुचा था और माँ की गोद में सर रख कर घंटो तक रोता रहा था । अब के बीस साल पहले की वो रात अमन को आज भी याद है जब दीपा ने उसे आखरी बार कॉल की थी :
मोहित : हाँ , बाबू बताओ ।
दीपा : मोहित में तुम से ब्रेकअप कर रही हूँ ।अब मुझ से और बर्दाश्त नही होता ।
मोहित : अरे मेरी बात तो सुनो ….
दीपा : नही मोहित अब मै और कुछ नही सुनना चाहती ।
मोहित : दीपा ये सब मै हमारे आने वाले कल के लिए ही तो कर रहा हूँ ।भले आज मै तुम्हे समय नही दे पाता हूँ, लेकिन हमें अपनी पूरी ज़िंदगी साथ में ही गुजारनी है ।जब हमारे पास पैसा होगा , नाम होगा तो पूरी दुनिया हमारे कदमो में होगी ….
दीपा : नही मोहित! मुझे पैसा नही, तुम्हारा साथ और प्यार चाहिए था ,जो तुम नही दे पाये।अब हमारे रिश्ते में कुछ नही बचा है।
(अमन मोहित के मोबाईल पर इस बार बॉस की कॉल वेटिंग दिख रही थी । अमन जानता था कि बॉस एक नए प्रोजेक्ट के लिए उसे विदेश भेजना चाह रहा है ।पेट के अंदर जा चुका रॉयल स्टैग का कत्थई रंग का सुकून अमन को उसके धान के खेतो और नदी किनारे के उस जंगल की ओर खींच रहा था ,जहाँ वो बचपन में घंटो तक दोस्तों के साथ खेलता रहता था )
शराब का नशा अब अमन से उसके दिल की बात बुलवाने लगा था ।
अमन :” दीपा चलो , गांव चलते है , गांव में रहेंगे चैन से , बस अब बहुत हुआ दीपा प्लीज़ चलो अब गांव में ही रहेंगे ” मोहित ने अब फैसला ले लिया था ,”
दीपा : गांव ……. माई फुट गांव , तुम खुश रहो अपने पागलपन में , परसो मेरी सगाई है और आज के बाद हमारी कभी बात नही होगी , गुड बाय। ”
दीपा की कॉल कट चुकी थी , अमन बहुत देर तक दीपा को फोन मिलाने की नाकाम कोशिश करता रहा पर वो नाकमयाब रहा , दीपा ने अमन का नम्बर ब्लॉक कर दिया था । दीपा अमन की ज़िंदगी से दूर जा चुकी थी ।
उस रात अमन को पहली बार डर लगा था , जिसको दूर करने के लिए अमन बाकी बची आधी बोतल शराब को एक साँस में ही पी गया था । अमन के फोन पर बॉस की कॉल आती रही और वो अपनी ही की गयी उल्टी में डूबता जा रहा था ।कुछ होश में आने के बाद अमन ने सिम तोड़ कर फेक दिया । इन आसमान छूती इमारतों वाले शहर से अपने सारे रिश्ते खत्म कर अमन कच्चे घर वाले गांव में जा कर रुका ।
अमन ने कांच के बंद एयर कंडीसन केबिन के जगह मीलों तक फैले खुले खेतों को चुना था।
अमन ने गांव और वहाँ के विकास के लिए खुद को झोक दिया था । अब उसे सुकून रॉयल स्टैग की बोतल में नही, किसी बच्चे की मुस्कराहट में मिलता था। वो गांव वालो के लिए भगवान के अवतार से कम न था।
अमन ने अपने आप को पूरी तरह से बदल लिया था ।सिवाय 2 बातो के ,
पहली अमन के पास आज भी समय नही था खुद के लिए , उसे बहुत कुछ करना था गांव के लिए , समाज के लिए। शायद इसी लिए अमन ने शादी नही की थी ।अब वो उन सब का था जिनका कोई नही था ।दूसरी बात जो अमन नही बदल सका था वो थी दीपा की पसंद की अपने मोबाईल पर लगी रिंगटोन
” तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नही ,शिकवा नही , पर तेरे बिना ज़िंदगी भी कोई … “

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mradul-kapilwriter-mradul-kapilmradul-kapil-writer-author-mradul-kapilmradul-kapil-invc-news-mradul-kapil-story-teller11परिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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