– निर्मल रानी –
हमारा देश इस समय कई महामारी रूपी जनसमस्याओं से जूझ रहा है। इनमें प्रमुख समस्याएं हैं सांप्रदायिकता,भ्रष्टाचार,बेरोज़गारी,अशिक्षा,जनसंख्या वृद्धि तथा जातिवाद आदि। परंतु इन सभी समस्याओं से भी बड़ी समस्या मंहगाई की है जो देश के प्रत्येक वर्ग के लोगों को प्रभावित करती है। हां अमीर वर्ग के लोग या काली कमाई करने वाले लोगों पर भले ही मंहगाई का उतना असर न पड़ता हो या फिर राजनेता व उच्चाधिकारी स्वयं को इस महासमस्या से प्रभावित महसूस न करते हों परंतु मध्यम वर्ग,निम्रमध्यमवर्ग तथा गरीब वर्ग के लोगों के लिए तो मंहगाई सबसे बड़ी समस्या है। इसमें कोई शक नहीं कि समय के आगे बढऩे के साथ-साथ पूरे विश्व में प्रत्येक वस्तु की कीमतों में मूल्य वृद्धि होती रही है। ज़ाहिर है भारतवर्ष भी इसका अपवाद नहीं है। पंरतु गत् चार वर्षों में हमारे देश में मंहगाई ने जो विकराल रूप धारण किया है खासतौर पर रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ें विशेषकर खाद्य सामग्री जिस प्रकार निरंतर मंहगी होती जा रही है उससे तो आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। कम आयवर्ग के लोगों ने तथा गरीबों ने अपने खानपान की शैली में परिवर्तन कर दिया है। तीन समय भोजन करने वाले लोग अब दो वक्त की रोटी पर गुज़ारा कर रहे हैं। और जो दो वक्त की रोटी खाते थे वह बेचारे एक ही वक्त की रोटी खाकर अपना जीवन-बसर करने लगे हैं।
देश को भलीभांति याद है कि उसने पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की मनमोहन सिंह सरकार को इसीलिए सत्ता से उखाड़ फेंका था क्योंकि उस समय मंहगाई ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया था। दालें,सब्जि़यां आदि सबकुछ मंहगी होने लगी थीं। इसी दौर में भारतीय जनता पार्टी के मुख्य चुनाव प्रचारक के रूप में नरेंद्र मोदी जी ‘अवतरित’ हुए। और उन्होंने जनता को जहां नाना प्रकार के सपने दिखाए,प्रलोभन दिए वहीं उनका एक नारा यह भी था कि बहुत हुई मंहगाई की मार अब की बार मोदी सरकार। चूंकि भारतीय जनता पार्टी विशेषकर नरेंद्र मोदी देश में घूम-घूम कर जनता को अपने भाषणों के द्वारा ऐसे सपने दिखा रहे थे कि देश की जनता को लगने लगा था कि मोदी के सत्ता में आते ही देश में ‘रामराज्य’ आ जाएगा। देश में काला धन वापस आएगा,उन्हीं के कथनानुसार प्रत्येक देशवासी के बैंक खातों में 15-15 लाख रुपये जमा हो जाएंगे, देश की बहन-बेटियों की इज्ज्ज़त-आबरू की सुरक्षा सुनिश्चित होगी,अशिक्षा व बेरोज़गारी से देश को पूरी तरह निजात मिल सकेगी, कानून का राज होगा,देश से भ्रष्टाचार,जमाखोरी,रिश्वतखोरी सब कुछ फना हो जाएगा और मंहगाई की मार पडऩी तो बिल्कुल ही बंद हो जाएगी। चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किए गए उनके सबसे प्रमुख नारे-‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ से भी यही सब परिलक्षित होता था।
परंतु मोदी सरकार को सत्ता में आए हुए दो वर्ष होने वाले हैं। उपरोक्त जितनी समस्याएं यूपीए के शासनकाल में थीं लगभग सभी समस्याएं पहले से भी अधिक बढ़ती जा रही हैं। खासतौर पर मंहगाई ने तो मनमोहन सिंह सरकार के समय की मंहगाई का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है। देश की जनता अभी तक अंधेरे में अच्छे दिनों की तलाश कर रही है और अच्छे दिनों की आहट तक न सुनाई देने से वह अपने-आप को ठगा हुआ महसूस करने लगी है। दिल्ली और बिहार के चुनाव नतीजों ने भी यह बता दिया है कि झूठ कुछ समय तक के लिए अस्थाई रूप से तो लेागों को गुमराह कर सकता है परंतु यह सिलसिला ज़्यादा लंबा नहीं चलता। आज यदि आप मोदी सरकार के पैरोकारों से या स्वयंभू तथाकथित राष्ट्रवादियों से यह पूछना चाहें कि कहां गए आपके मंहगाई की मार से निजात दिलाने के वायदे। तो आपको यह जवाब मिलेगा कि दुनिया में देश का सिर ऊंचा हो रहा है और आप आलू-प्याज़,टमाटर और दालों की मंहगाई जैसी तुच्छ बातों में उलझे पड़े हैं? यानी देश की गरीब जनता जो अपनी दिहाड़ी व मज़दूरी से दो वक्त का भोजन मुहैया नहीं कर पाती गोया उसे इस बात से संतोष करना चाहिए कि उसके प्रधानमंत्री दुनिया में जहां-जहां जा रहे हैं वहां-वहां भाड़े के टट्टू मोदी-मोदी के नारे लगाकर देश का सिर ऊंचा कर रहे हैं?
भारतीय जनता पार्टी के विषय में हालांकि यह आम धारणाा है कि यह पार्टी तथा इसकी सरकार व्यापारियों के हितों का ध्यान रखने वाली पार्टी व सरकार है। जिस समय चुनाव प्रचार में मोदी उद्योगपति अदानी का विमान लेकर देश में घूमते फिर रहे थे उस समय अरविंद केजरीवाल ने जनता को आगाह भी कराया था। परंतु देश की बेचारी जनता मनमोहन सिंह के शासन के भ्रष्टाचार व मंहगाई से इतनी दु:खी थी तथा मोदी के लच्छेदार भाषणों व उनमें किए जा रहे लंबे-चौड़े वायदों में इतना अंधी हो गई थी कि उसे केजरीवाल की चेतावनी दिखाई व सुनाई नहीं दी। आज देश उस हकीकत को देख रहा है। मोदी सरकार कारपोरेट जगत के लोगों तथा उद्योगपतियों के हितों का ज़्यादा ध्यान रख रही है। गरीबों का जीना दुश्वार करने वाली कमरतोड़ मंहगाई को नियंत्रित करने की तरफ उसका कोई ध्यान नहीं है। रेडियो पर हर महीने होने वाली ‘मन की बात’ नामक कार्यक्रम में भी केवल लंतरानी सुनाई देती है। तरह-तरह के उपदेश बघारे जाते हैं। अपने मन की बात तो कर दी जाती है परंतु जनता के मन की बात का कोई समाधान नहीं सुनाई देता। सत्ता का पूरा ध्यान देश में सांप्रदायिक धु्रवीकरण करने में लगा हुआ है, अपनी विदेश यात्राओं की उच्च कोटि की मार्किटिंग करवाने में व अपनी रंग-बिरंगी पौशाकों के माध्यम से अपना वैभव दर्शाने में प्रधानमंत्री जी व्यस्त दिखाई दे रहे हें। सहिष्णुता-असहिष्णुता पर बेवजह की बहस को संसद में मुद्दा बनाया जाता है। और केवल पक्ष ही नहीं बल्कि विपक्ष भी भाजपा के धर्म आधारित ध्रुवीकरण करने के इस झांसे में आकर उसमें उलझता दिखाई देता है। परंतु मंहगाई को लेकर संसद में कोई शोर-शराबा,धरना-प्रदर्शन आदि कुछ भी नज़र नहीं आता।
मंहगाई बढऩे के आमतौर से जो प्रमुख कारण होते हैं उनमें रोज़मर्रा के इस्तेमाल की वस्तुओं जैसे आलू-प्याज़ तथा दालों आदि की इनके पैदावार के समय ही जमाखोरी कर लिया जाना तथा बाद में इन वस्तुओं की कि़ल्लत होने पर इन्हें अपने मुंहमांगे दामों पर बाज़ार में बेचा जाना मंहगाई का एक प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त मंहगाई बढऩे का दूसरा कारण मालभाड़े की ढुलाई की दर का बढऩा है। यह स्थिति तब पैदा होती है जब ईंधन की कीमतें बढ़ें तथा कच्चे तेल से निर्मित होने वाली वस्तुओं की कीमत में इज़ाफा हो। यानी टायर-टयूब आदि की कीमतें बढ़ें। भाड़े के मूल्यों में वृद्धि का प्रभाव केवल दाल व साग-सब्जि़यों पर ही नहीं बल्कि समस्त वस्तुओं पर पड़ता है। कच्चे माल की ढुलाई मंहगी होने से उत्पादन मंहगा होता है और उत्पाद स्वयं मंहगा हो जाता है। खाद्य वस्तुएं भी बीज,खाद,पेस्टिसाईड तथा मज़दूरी आदि की दर में वृद्धि के कारण मंहगी हो जाती हैं। मंहगाई बढऩे का एक और प्रमुख कारण किसी भी वस्तु की बिक्री में माध्यम के रूप में कई प्रकार की एजेंसी,आढ़त,डिपो व दुकानदारों का विक्रय की प्रक्रिया के बीच में आना भी है। किसान के खेत से लेकर अंतिम ग्राहक अर्थात् उपभोक्ता के हाथों तक दाल-सब्ज़ी आने के मार्ग में चार या पांच सीढ़ी को पार करना होता है। और प्रत्येक सीढ़ी पार करने के उपरांत उस उत्पाद का मूल्य इसलिए बढ़ता जाता है क्योंकि प्रत्येक पग पर तैनात व्यक्ति चाहे वह डीलर हो,आढ़तिया हो,ट्रांसपोर्टर हो या बड़ा और फिर छोटा दुकानदार, सभी को उसी उत्पाद में अपना मुनाफा चाहिए।
अब यह सरकार की जि़म्मेदारी है कि वह जमाखोरी पर लगाम लगाए,दलाली व कमीशन के नाम पर किसी भी वस्तु का मूल्य सीमा से अधिक बढऩे न दे, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की निर्धारित कीमत के अनुरूप ही देश में तेल का मूल्य निर्धारित करे। किसानों को उचित मूल्यों पर बीज,खाद, पेस्टिसाईट,बिजली व पानी आदि मुहैया कराए। और जमाखोरों व दलालों द्वारा नाजायज़ तौर पर मचाई जाने वाली लूट से जनता को निजात दिलाते हुए उसका लाभ किसान तथा उपभोक्ता तक पहुंचाने की व्यवस्था करे। आज विभिन्न दालों का मूल्य 200 रुपये के आसपास पहुंच चुका है। साधारण सब्जि़यां साठ रुपये से लेकर सौ रुपये किलो तक बिकती देखी जा रही हैं। साबुन-तेल,पेस्ट,नमक,मिर्च-मसाले आदि सभी मंहगे होते ही जा रहे हैं। यानी मंहगाई की मार से छुटकारा पाना तो दूर उल्टे जनता पर मंहगाई की मार पहले से अधिक तीव्रता के साथ पड़ रही है। देश में जहां गरीब एक समय की रोटी के लिए तरस रहा है वहीं कृषिप्रधान देश में किसानों द्वारा आत्महत्याएं किए जाने जैसे शर्मनाक समाचार सुनने में आते रहते हैं। सहिष्णुता व असहिष्णुता की बहस में जनता को उलझाने वाले पक्षों को यह देखकर शर्म आनी चाहिए कि आिखर क्या दुनिया यह सोचकर भारतवर्ष को अच्छी नज़र से देखती होगी जब वह यहां के किसानों की आत्महत्या का समाचार या भुखमरी व कुपोषण के चलते लोगों के मौत के गले लग जाने की खबरें सुनती होगी? राजनेताओं द्वारा गुमराह करने वाले इस अंधकारमय वातावरण के बीच न जाने देश की जनता को मंहगाई से कभी निजात मिलेगी अथवा नहीं?
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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