– अनिल सिन्दूर –
बुंदेलखंड का अन्नदाता एक बार फिर दैवीय आपदा का शिकार हो गया है ! देखते ही देखते उसकी खड़ी फ़सल नष्ट हो गयी ! कहर बन कर वर्षी दैवीय आपदा ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया ! किसान आत्महत्या करने को मजबूर है ! किसान धरती के भगवान कहे जाने वाले सरकारी अधिकारिओं एवं जनप्रतिनिधिओं के सामने गिडगिडाने को मजबूर है !
दैवीय आपदा के दौरान होने वाली तबाही के बाद सरकारी अफ़सरों और सरकारों में बैठे जनप्रतिनिधिओं का दायित्व बहुत बढ़ जाता है लेकिन देखा जाता है कि किसी भी राजनैतिक पार्टी की सरकार रही हो इन दायित्वों का निर्वाह किसी भी सरकार ने नहीं किया है ! दैवीय आपदा के नाम पर अरबों रुपए तो जुटाए गए लेकिन उनका उपयोग किसानों को राहत देने में न लगाकर दुसरे इतर कार्यों में लगाया जाता रहा है जिसके दुष्परिणाम यह हैं की किसानों की समस्या जस के तस खडी रहती है ! योजनाओं का क्रियान्वयन धरातल पर न हो कर कागजों में होकर रह जाता है !
पांच वर्ष पूर्व बुंदेलखंड सूखे की मार से कराह रहा था ! सूखे के दौरान भूगर्भ एवं रिमोट सेंसिंग के वैज्ञानिकों ने सर्वेक्षण रिपोर्ट केंद्र को प्रस्तुत कर बताया किकम वर्षा एवं जल दोहन के कारण जल स्तर गिर गया इसके जल्द ही उपाय न किये गए तो आने वाले दस वर्षों में पानी की स्थिति भयावह हो जायेगी लोग पीने के पानी को भी तरसेंगे ! इस रिपोर्ट के बाद बुंदेलखंड की प्यास बुझाने को बुंदेलखंड पैकेज के तहत वर्ष 2009 में उ.प्र. तथा म.प्र. के 13 जिलों को 72 सौ करोड़ रुपए देना तय हो गया जिसमें उ.प्र. के सात जिले झाँसी, जालौन, महोबा, हमीरपुर, बाँदा तथा चित्रकूट को 3506 करोड़ तथा म.प्र. के 6 जिले दतिया, पन्ना, दमोह, छतरपुर, सागर तथा टीकमगढ़ को 3760 करोड़ रुपए सिर्फ इस बात के लिए दिये थे कि इन 13 जिलों की वर्षा आधारित खेती के रकवे को कम किया जाये ! इस योजना को 4 सालों में मूर्तरूप दिया जाना तय हुआ लेकिन दुरभाग्य की बात यह है कि यह आजतक न हो सका ! इस योजना के तहत उ.प्र. तथा म.प्र. के जिलों में 20 हज़ार कुओं का निर्माण, पुराने कुओं तथा तालाबों का गहरीकरण, 4 लाख हेक्टेयर भूमि को कृषि योग्य सिंचाई का पानी उपलब्ध करवाना, जल संरक्षण नहरों का गहरीकरण बांध परियोजनाओं , उद्यानीकरण में फलों की खेती का क्षेत्रफल बढ़ने, फूलों की खेती , जैविक खेती को बढ़ावा देना , पशुपालन में वृद्धी, दूध तथा मीट प्रसंस्करण की यूनिट लगाने आदि पर खर्च किया जाना था ! जिस समय यह पैकेज दिया गया उस समय उ.प्र. में बहुजन समाज पार्टी की सरकार तथा म.प्र. में भाजपा की सरकारें थीं और इस समय उ.प्र. में सपा तथा म.प्र. में भाजपा की ही सरकार है ! दोनों ही प्रदेशों ने एन पांच वर्षों में क्या काम किया ये धरातल पार काम करने वाले लोगों से छिपा नहीं है ! दोनों ही सरकारें दिये गए धन का उपयोग का प्रमाण पत्र न दे सकीं !
वर्ष 2009 से 2012 तक केंद्र सरकार ने 1212.54 करोड़ रुपए उ.प्र. सरकार को दिये लेकिन उ.प्र. सरकार केवल 744.29 करोड़ ही खर्च कर सकी ! पीने के पानी तथा सिंचाई के पानी पर 400.25 करोड़ के सापेक्ष 248.31 करोड़ ही सरकार खर्च कर सकी ! रूरल क्षेत्रों में पीने के पानी की सप्लाई को 70 के सापेक्ष 20 करोड़, कुओं –तालाबों के रिचार्ज को 85.66 करोड़ के सापेक्ष केवल 15.45 करोड़ ही खर्च किये गए , 103 करोड़ रुपए 140 कम्युनिटी टयूबवेल के लिए दिये गए लेकिन दुःख की बात ये है कि एक भी कम्युनिटी टयूबवैल नहीं लगवाये गए ! 30,864 तालाबों को तैयार किया जाना था लेकिन लक्ष के सापेक्ष 5,442 तालाबों को ही तैयार करवाया गया !
उ.प्र सरकार ने इस वर्ष 1018.62 करोड़ रुपए खर्च होने का प्रमाण पत्र दिया है ! जिसके फलस्वरूप केंद्र ने 12 मार्च 2015 को 1557.94 करोड़ रुपए उ.प्र. को दे दिये हैं ! इस धन का कैसे उपयोग होगा कितने वर्षों में होगा सभी कुछ अभी गर्त में है लेकिन बुंदेलखंड की दशा आज भी जस की तस है !
16 मार्च को बुंदेलखंड के सन्दर्भ में जल संरक्षण एवं संबर्धन पर एक राज्य स्तरीय जन सुनवाई एनजीओ द्वारा प्रायोजित की गयी ! जिसमें मैग्सेसे पुरुस्कार सम्मानित ‘जल पुरुष’ राजेन्द्र सिंह, विशेष सचिव खाद्य प्रसंस्करण एवं वरिष्ठ स्तंभकार आर. विक्रम सिंह, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल, विन्ध्वासनी कुमार एमएलसी भाजपा मौजूद थे ! इस जनसुनवाई का प्रयोजन क्या था ये सोचने की बात है केंद्र ने जो धन जल संरक्षण एवं संबर्धन को दिया था वो खर्च ही नहीं कर सकी ऐसे में इस जनसुनवाई की उपयोगिता क्या है ! होना यह चाहिये था कि जल पुरुष राजेन्द्र सिंह जी सरकार से यह जानकारी मांगते कि जो केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत धन दिया था उसे कहाँ खर्च किया और जिन मदों में खर्च होना चाहिये था खर्च क्यों नहीं किया ! स्वमसेवी संघठनो की कठपुतली बनने से जल समस्या हल नहीं होगी ! झाँसी मंडल के तीन जिलों से जल समस्या निवारण को लायी गयी जल सहेलिओं के मुह से कहलवाने से भी क्या होगा जब तक कि समस्या निवारण को गंभीरता नहीं होगी !
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परिचय
अनिल सिन्दूर
पत्रकार ,कथाकार, रचनाकार व् सोशल एक्टिविष्ट
28 वर्षों से विभिन्न समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसी में बेवाकी से पत्रिकारिता क्षेत्र में ,पत्रिकारिता के माध्यम से तमाम भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतों को उजागर कर सज़ा दिलाने में सफल योगदान साथ ही सरकारी योजनाओं को आखरी जन तक पहुचाने में विशेष योगदान
वर्ष 2008-09 में बुंदेलखंड में सूखे के दौरान भूख से अपनी इहलीला समाप्त करने वाले गरीब किसानों को न्याय दिलाने वाबत मानव अधिकार आयोग दिल्ली की न्यायालय में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों के जिला अधिकारिओं पर मुकद्दमा,कथाकार, रचनाकार व् सोशल एक्टिविष्ट ,सॉलिड वेस्ट मनेजमेंट पर महत्वपूर्ण योगदान
# सोशल थीम पर बनी छोटी फिल्मों पर अभिनय, रंगमंच कलाकार , आकाशवाणी के नाटकों को आवाज़
# खादी ग्रामौद्योग कमीशन बम्बई द्वारा वर्ष 2006 शिल्पी पुरस्कार
संपर्क – मोब. 09415592770 , ई-मेल : anilsindoor2010@gmail.com , sindoor.anil@yahoo.com
निवास – इस समय कानपूर में निवास