आज के युवाओं ने शायद यह सुनी होगी कि एक समय बिहार में बूथ लूट कर चुनाव जीते जाते थे। बाहुबलियों का सहारा लेकर उन बूथों पर कब्जा जमा लिया जाता था, जहां पक्ष में मतदान की उम्मीद नहीं होता थी। बूथ कब्जा कर स्वयं की बैलेट में मुहर लगाकर बॉक्स में डाल लिए जाते थे। तब यह कहा जाता था कि बिहार में जनता वोट कहां देती है। बिहार चुनाव की आहट आते ही अखबारों में बैलेट बनाम बुलेट बहस का प्रमुख विषय होता था। मतदाताओं की मर्जी से मतदान बिहार में सपना होता था। 12 दिसंबर 1990 को टी एन शेषन देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त बनें। शेषन ने अपने कार्यकाल में स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए नियमों का कड़ाई से पालन किया गया जिसके साथ तत्कालीन केन्द्रीय सरकार एवं ढीठ नेताओं के साथ कई विवाद हुए। अपने मौलिक सोच और दूढ़ता ने बिहार चुनाव में कई मिथक टूटे।
तब बिना बुलेट मतदान सपना था, आज बूथ लूटना कर सत्ता पाना सपना हो गया है। जब बिहार की लोकतांत्रित प्रकिया में बुलेट का प्रभाव कम हुआ तब जात-पात की राजनीति ने जोर पकड़ लिया। ऐसी बात नहीं है कि नब्बे के दशक से पहले बिहार में जाति की सियासत नहीं होती थी। लेकिन नब्बे के बाद के हर चुनाव में दबे कुचले और पिछड़े तबकों को निडर मानसिकता का बना दिया। सियासत की बिसात पर जाति के मोहरे खड़े किए जाने लगे। लेकिन गत ढ़ाई दशक में हुए चुनाव के बाद अबकी हालात बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। जातीय और धार्मिक धु्रवीकरण की आंधी सुस्त पड़ती दिख रही है। हर बार जात पात और विकास के नाम पर लड़े जाने वाले बिहार चुनावों में इस बार राजनीतिक दलों के बीच नई जंग होती दिख रही है। विकास असली मुद्दा बन गया है। पैकेज के बाद पैकेज का प्रहार भले ही राजनीतिक लगे, फिर भी यदि इसका क्रियान्वयन हो तो विकास बिहार का ही होगा, भला जनता का ही होगा। ऐसा लग रहा जाति की बेड़ियों में जकड़ा बिहार अब बदहाली के गर्त से निकलने के लिए कुलबुलाने लगा है। इसके संकेत चुनाव पूर्व के माहौल से मिलने लगा है। यह बिहार के सकारात्मक भविष्य का संकेत है।
बदलते सियासत के चुनावी जुमले में एक और उदाहरण देखें। चुनाव के लिए भाजपा और जेडीयू ने तो दो नए गीत ही लांच कर दिए हैं। भाजपा सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी का गाना-इस बार बीजेपी, एक बार बीजेपी, जात पात से ऊपर की सरकार चाहिए बिजली पानी हर द्वार चाहिए।। सबका विकास सबका प्यार चाहिए, वापस गौरवशाली बिहार चाहिए… क्या संकेत देता है। जदयू भी इसी राह पर चलते हुए मनोज तिवारी की काट के लिए बॉलीवुड गायिका स्नेहा खनवलकर से यह गाना रिकार्ड करवाया है-फिर से एक बार हो, बिहार में बहार हो।।
फिर से एक बार हो, नीतीशे एक बार हो।। फिलहाल भाजपा और जदयू दोनों के ये गीत अब गांव -गांव पहुंचने लगे हैं।
बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए जब दिल्ली समेत देश को दूसरे हिस्सों में चुनाव के दौरान बिजली, पानी और सड़क का मुद्दा जब प्रमुखता से चर्चा होता था, तब बिहार के चुनावों में इस मुद्दों पर किसी का ध्यान नहीं रहता है। बदलते हालात और सत्ता के लिए सियासत में जोर अजमाईस से क्या कुछ नया नहीं हो रहा है। हालात बदल रहे हैं। अब सरकार चाहे किसी की भी बनेगी, लेकिन विकास करना सबकी मजबूरी होगी। जनता जागने लगी है, होशियार हो चुकी है। वह जान गई है कि वह जनता है। सत्ता के दंभ में कोई कितना भ चूर क्यों न हो, जनता पांच साल बाद जनता होने का अहसास करा ही देती है। जनता को जनता होने का अहसास का अहसास अब बिहार के सियासी सुरमाओं को डराने लगा है।
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संजय स्वदेश
वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक
संजय स्वदेश दैनिक अखबार हरी भूमि में कार्यरत हैं
बिहार के गोपलगंज जिले के हथुआ के मूल निवासी। दसवी के बाद 1995 दिल्ली पढ़ने पहुंचे। 12वीं पास करने के बाद किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक स्नातकोत्तर। केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र से पत्रकारिता एवं अनुवाद में डिप्लोमा। अध्ययन काल से ही स्वतंत्र लेखन के साथ कैरियर की शुरुआत। आकाशवाणी के रिसर्च केंद्र में स्वतंत्र कार्य।
अमर उजाला में प्रशिक्षु पत्रकार। सहारा समय, हिन्दुस्तान, नवभारत टाईम्स समेत देश के कई समाचार पत्रों में एक हजार से ज्यादा फीचर लेख प्रकाशित। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक महामेधा से नौकरी। दैनिक भास्कर-नागपुर, दैनिक 1857- नागपुर, दैनिक नवज्योति-कोटा, हरिभूमि-रायपुर के साथ कार्य अनुभव। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के अलावा विभिन्न वेबसाइटों के लिए सक्रिय लेखन कार्य जारी…
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