गीत
सुबह
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आज फिर खुली रह गई
नींद की खिड़की
आज फिर घुस गया
बेशुमार अँधेरा भीतर तक
आज फिर ज़ेहन में
तैरते रहे
शब्द और सपने
अन्धकार की सतह पर
आज फिर
सुबह हुई
इस अँधेरे को
उलीचते – उलीचते ।
पुताई करते हुए एक ख़्याल
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कितनी भी दक्षता और तन्मयता के साथ की जाये घर की पुताई
रह ही जाते हैं
कुछ कोने – खुदरे
जो हर बार रंगीन होने से बच जाते हैं
पेंट की आखरी बूँद ख़त्म होते ही
अचानक हमारी निगाह पड़ती है
इन छपकों पर
और ये मुस्कराते हुए जान पड़ते हैं
मानो कह रहे हों
बची रहने दो
घर में थोड़ी सी जगह
दुःख और उदासी के लिए भी ।
बारात का एक दृश्य
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दुनिया के तमाम कोरियोग्राफ़रों को
मैं चुनौती नहीं
बस आमंत्रण देना चाहता हूँ
कि आओ और देखो
इन आवारा छोकरों को
जो किसी भी बारात में घुसकर
डांस करने लगते हैं
तमाम दिशाओं के अंधकार से
निकल – निकल कर
वे अचानक घुस जाते हैं
रौशनी के व्रत में
रौशनी के वर्ग में
कोई धुन अजनबी नही
कोई गीत अनजाना नहीं
वे थिरकते हैं अपनी पूरी ऊर्जा
और कलात्मकता के साथ
लय , गति ,एनर्जी लेविल
नाप सकते हो तो नाप लो
किसी भी बारात में
कोई माई का लाल
नहीं दे सकता उन्हें नृत्य में टक्कर
वे धकयाये जाते हैं
धमकाये जाते हैं
मारपीट होती है उनके साथ
उन्हें खदेड़ा जाता है
अभिजात्य रोशनी की ज्यामिति से बाहर
बार – बार
पर वे वापिस लौटते हैं
छुपते – छुपाते
और थिरकते हुए
फिर शामिल हो जाते हैं
पराई रोशनी के इस सफर में
मैं फिर आमंत्रित करता हूँ
दुनियां के तमाम कोरियोग्राफ़रों को
कि वे आयें और देखें
कि ज़िन्दगी जब – जब सिखाती है
तो किस कदर सिखाती है ।
जेबकतरे
——-
दुनियाँ अपनी जेब में डालकर चलने वालों
सावधान रहना जेबकतरों से –
किसी दिन लग गया जो दाव
तो एक छोटा – मोटा जेबकतरा भी
पार कर देगा यह दुनियाँ
किसी चाय की गुमटी पर
उस जेबकतरे के साथ
चाय पीते हुए
मैं देखूंगा तुम्हे
किसी दर्जी की दुकान पर
सिर्फ अंडरवियर में
पतलून की फटी जेब सिलवाते हुए ।
छत्ता
—-
खत्म हुआ शहद
एक-एक कर उड़ गईं
सभी मधुमक्खियाँ
तलाश लिया
कोई नया दरख़्त
कोई नई शाख़
कोई नई फूलों की बस्ती
एक खाली छत्ता
यहीं छूट गया पीछे
कहते हैं
इस छत्ते के मोम से बनती है
फटी बिंवाई की उम्दा दवा
जरूर बनती होगी
कई बार स्म्रतियां भी तो
दवा का काम करती हैं ।
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मणि मोहन
कवि ,लेखक व् शिक्षक
शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम् फ़िल् तथा शोध उपाधि
प्रकाशन : देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र – पत्रिकाओं ( पहल , वसुधा ,अक्षर पर्व , समावर्तन , नया पथ , वागर्थ , बया , आदि ) में कवितायेँ तथा अनुवाद प्रकाशित ।
वर्ष 2003 में म. प्र. साहित्य अकादमी के सहयोग से कविता संग्रह ‘ कस्बे का कवि एवं अन्य कवितायेँ ‘ प्रकाशित ।वर्ष 2012 में रोमेनियन कवि मारिन सोरेसक्यू की कविताओं की अनुवाद पुस्तक ‘ एक सीढ़ी आकाश के लिए ‘
उद्भावना से प्रकाशित । वर्ष2013 में अंतिका प्रकाशन से कविता संग्रह ” शायद ” प्रकाशित तथा इसी संग्रह पर म प्र हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रतिष्टित वागीश्वरी सम्मान दिया गया ।
सम्प्रति : शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय , गंज बासौदा में अध्यापन ।
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