नवगीत – लेखिका अनु प्रिया

नवगीत 

1-

जलती धूप में
भूल आई हो
अपने सारे सपने
कहीं जल न जाएँ देखना
किसी परिंदे के पंखों को
खोंसकर अपने बालों में
बादलों के बीच
चली जाती हो
चूल्हे पर
खौलता रहता है
अदहन का पानी
तितलियों से मांगकर थोडा सा रंग
अपनी कहानियों में
भरती हो चटख रंग
जाने कब से
खटखटा रही है सांझ
तुम्हारी खिड़की
और
तुम तारों के संग हंसकर
चाय पी रही हो
तुम सिर्फ अपने भीतर ही नहीं रहती
जाने कितनी देह में
बसती हो तुम
बाहर भीतर की परिधि से मुक्त ….

2-

कभी हंसकर
कभी होकर नाराज
कह देती थी
मुझसे सारी बातें मन की
अक्सर रूठ जाती थी
खाने की बात को लेकर
डॉक्टर ने
मना किया है चावल और अचार
नहीं खायी जाती मुझसे रोटी
कहती भरकर आँखे अपनी
मैं ले आती थी
तुम्हारी बच्चों सी मुस्कान सबसे छुपा कर
बक्से में जाने क्या टटोलती रहती थी
कोई पुराना सपना
या यादों की गीली पोटली
दर्द की सीमा पार होती तो
बच्चों की तरह फूट पड़ती
कितनी ही दवाइयां
और एंटी बायोटिक्स से कड़वा हो गया था तुम्हारा स्वाद
कहती थी तुम होकर उदास
बाबा की तस्वीर को देखते हुए
जाने क्यूँ भर आती थी तुम्हारी आँखें
और आँखों में जाने कितने अधूरे सपने ….
अब तो
तुम भी चली गयी हो जाने कहाँ
कितने अधूरे सवाल छोड़कर
दादी !!………….(दादी की याद में )

anupriya,poetanupriya,writeranupriyaअनुप्रिया

लेखिका व् कवयित्री

प्रकाशन -कथाक्रम .परिकथा ,वागर्थ ,कादम्बिनी ,संवदिया ,युद्ध रत आम आदमी  ,प्रगतिशील आकल्प ,शोध दिशा ,विपाशा ,श्वेत पत्र   , नेशनल दुनिया ,दैनिक भास्कर ,दैनिक जागरण , संस्कार -सुगंध ,अक्षर पर्व ,हरिगंधा,दूसरी  परंपरा,लमही,हाशिये की आवाज आदिपत्र – पत्रिकाओं में कवितायेँ निरंतर प्रकाशित .नंदन ,स्नेह ,बाल भारती ,जनसत्ता,नन्हे सम्राट  ,जनसंदेह टाइम्स ,नेशनल दुनिया ,बाल भास्कर ,साहित्य अमृत ,बाल वाटिका,द्वीप लहरी ,बाल बिगुल में बाल कवितायेँ प्रकाशित .संवदिया ,विपाशा ,ये उदास चेहरे ,मधुमती,नया ज्ञानोदय,साहित्य अमृत,अनुसिरजण,हाशिये की आवाज़,दूर्वा दल के जख्म और अंजुरी भर अक्षर आदि पत्रिकाओं में रेखा चित्र प्रकाशित

संपर्क-

अनुप्रिया

श्री चैतन्य योग गली नंबर -27,फ्लैट नंबर-817 चौथी मंजिल ,डी डी ए फ्लैट्स मदनगीर ,नयी दिल्ली  पिन-110062 मोबाइल –  9871973888

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