बेहतर जल प्रबंधन समय की जरूरत

0
77

– अजय कुमार चतुर्वेदी –  

कहा गया है कि जल ही जीवन है। जल प्रकृति के सबसे महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है। कहने को तो पृथ्वी चारों ओरसे पानी से ही घिरी है लेकिन मात्र 2.5% पानी ही प्राकृतिक स्रोतों – नदी, तालाब, कुओं और बावडियों-से मिलता है जबकिआधा प्रतिशत भूजल भंडारण है। 97 प्रतिशत जल भंडारण तो समुद्र में है। लेकिन यह भी एक कडवी सच्चाई है कि भारत जलसंकट वाले देशों की लाईन के मुहाने पर खड़ा है। जल के इसी महत्व के मद्देनजर भारत में भी 2012 से सप्ताह भर तकप्रतिवर्ष विचार विमर्श किया जाता है जिसे सरकार ने भारत जल सप्‍ताह नाम दिया है। इसके आयोजन की जिम्मेदारी जलसंसाधन मंत्रालय को सौंपी गई है। इसकी परिकल्पना भी इसी मंत्रालय ने ही की थी।

अंतरराष्ट्रीय मंच

जल की उपयोगिता, प्रबंधन तथा अन्य जुड़े मुद्दों पर खुली चर्चा के लिए यह अंतरराष्ट्रीय मंच बहुत उपयोगी  साबित हुआ है,जिसमें देश विदेश से आए विशेषज्ञों ने जल संसाधन के प्रबंधन और उसके क्रियान्वयन पर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए  हैं।समन्वित जल संसाधन प्रबंधन के लिए तीन आधारभूत स्तंभों को विशेषज्ञों ने जरुरी माना है – सामाजिक सहयोग, आर्थिककुशलता और पर्यावरणीय एकरूपता। इन उद्देश्यों की  प्राप्ति के लिए जरूरी है कि नदियों के थालों (बेसिन) के अनुरूपकार्ययोजना बना कर प्रबंधन किया जाए तथा बेसिन की नियमित निगरानी और मूल्यांकन किया जाए। 2012 में हुए पहलेमंथन में पांच महत्वपूर्ण सुझाव मिले –

·         खाद्य और ऊर्जा संरक्षण के लिए बेहतर जल प्रबंधन की सहमति बनाई जाए।

·         जल के प्रभावी और बेहतर उपयोग पर नीति गत चर्चा की जरूरत।

·         जल परियोजनाओं की वित्तीय और आर्थिक स्थिति के बीच उचित तालमेल पर बल।

·         जल संसाधनों से जुड़े जलवायु परिवर्तन के ऐसे मुद्दे जिनसे राष्ट्रीय जल मिशन की तमाम गतिविधियां जुड़ी  हैं, उन्हेंअधिक बढावा देना होगा।

2013 में सात सुझाव मिले जिनमें बेहतर जल प्रबंधन, उसके वित्तीय तथा आर्थिक पहलुओं, बांधों की सुरक्षा और उससेसंबंधित कदमों पर कुछ ठोस सुझाव शामिल थे। जल संसाधन से जुड़ी परियोजनाओं के मूल्यांकन किये जाने के सुझाव शामिल थे।

2015 से भारत जल सप्‍ताह के स्वरुप में बड़ा बदलाव

आम चुनाव के कारण 2014 में भारत जल सप्‍ताह नहीं हुआ लेकिन उसके बाद 2015 में आयोजित जल सप्‍ताह मेंइसका स्वरूप ही बदल गया। जल से जुड़े तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। इस बात पर आम सहमति रही कि कृषि,औद्योगिक उत्पादन, पेयजल, ऊर्जा विकास, सिंचाई तथा जीवन के लिए पानी की निरंतरता बनाए रखने के लिए सतत प्रयासकी जरूरत है। नागरिकों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना सरकार की पहली प्राथमिकता होती है। पहली बार जल से संबंधितविभिन्न मुद्दों पर विषय वार कार्य योजना बनाने पर भी सहमति बनी। 2016 के भारत जल सप्‍ताह में विदेशी विशेषज्ञों कीप्रभावी भागीदारी के लिए अन्य देशों को भी शामिल किया गया। 2016 के आयोजन में इजराइल को सहयोगी देश के रुप मेंशामिल किया गया और उसके विशेषज्ञों ने विशेष रूप से शुष्क खेती जल संरक्षण पर बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इसमेंइजराइल को महारत हासिल है और इस तकनीक में वहां के वैज्ञानिक दुनियाभर में अपना लोहा मनवा चुके हैं। पिछले साल केआयोजन में भारत सहित 20 देशों के करीब डेढ़ हजार प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें कुल आठ संगोष्ठी हुई। दो सत्रों काआयोजन सहयोगी देश इजराइल ने किया था। नदियों को आपस में जोड़ने के मुद्दे पर भी पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुलीऔर विस्तृत चर्चा हुई। जल संसाधन मंत्रालय ने कई सिफारिशों को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। कम सिंचाई वालीखेती को बढ़ावा देना और रिसाइकिल्ड पानी का उपयोग कारखानों, बागवानी और निर्माण उद्योग आदि में किया जाने लगा है।कुछ और सिफारिशों को लागू करने की भी तैयारी है

पानी के उचित प्रबंधन की जरूरत

इजराइल के मुकाबले भारत में जल की उपलब्धता पर्याप्त है। लेकिन वहां का जल प्रबंधन हमसे कहीं ज्यादा बेहतर है।इजराइल में खेती, उद्योग, सिंचाई आदि कार्यों में रिसाइकिल्ड पानी का उपयोग अधिक होता है।  इसीलिए उस देश के लोगों कोपानी की दिक्कत का सामना नहीं करना पडता। भारत जैसे विकासशील देश में 80% आबादी की पानी की जरूरत भूजल सेपूरी होती है और इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उपयोग में लाया जा रहा भूजल प्रदूषित होता है। कई देश,खासकर अफ्रीका तथा खाड़ी के देशों में भीषण जल संकट है। प्राप्त जानकारी के अनुसार दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहेकरोड़ों लोग जबरदस्त जल संकट का सामना कर रहे हैं और असुरक्षित जल का उपयोग करने को मजबूर हैं। बेहतर जलप्रबंधन से ही जल संकट से उबरा जा सकता है और संरक्षण भी किया जा सकता है।

भारत में प्रभावी जल प्रबंधन की जरूरत

भारत में भी वही तमाम समस्याएं हैं जिसमें पानी की बचत कम, बर्बादी ज्यादा है। यह भी सच्चाई है कि बढ़ती आबादीका दबाव, प्रकृति से छेड़छाड़ और कुप्रबंधन भी जल संकट का एक कारण है। पिछले कुछ सालों से अनियमित मानसून औरवर्षा ने भी जल संकट और बढ़ा दिया है। इस संकट ने जल संरक्षण के लिए कई राज्यों की सरकारों को परंपरागत तरीकों कोअपनाने को मजबूर कर दिया है। देश भर में छोटे- छोटे बांधों के निर्माण और तालाब बनाने की पहल की गयी है। इससेपेयजल और सिंचाई की समस्या पर कुछ हद तक काबू पाया जा सका है। भारत में तीस प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों मेंरहती है। आवास और शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग दो सौ शहरों में जल और बेकार पडे पानीके उचित प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। इसके कारण सतही जल को प्रदूषण से बचाने के उपाय भी सार्थकनहीं हो पा रहे हैं। खुद जल संसाधन मंत्रालय भी मानता है कि ताजा जल प्रबंधन की चुनौतियों लगातार बढती जा रही है।सीमित जल संसाधन को कृषि, नगर निकायों और पर्यावरणीय उपयोग के लिए मांग, गुणवत्तापूर्ण जल और आपूर्ति के बीचसमन्वय की जरूरत है।

नई राष्ट्रीय जल नीति जरुरी

देश में पिछले 70 सालों में तीन राष्ट्रीय जल नीतियां बनी। पहली नीति 1987 में बनी जबकि 2002 में  दूसरी और2012 में तीसरी जल नीति बनी। इसके अलावा 14 राज्‍यों ने अपनी जलनीति बना ली है। बाकी राज्य तैयार करने की प्रक्रियामें हैं। इस राष्ट्रीय नीति में “जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए इसे जीवन, जीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकासका आधार माना गया है।” नीति में जल के उपयोग और आवंटन में समानता तथा सामाजिक न्याय का नियम अपनाए जानेकी बात कही गई है। मंत्रालय का कहना है कि भारत के बड़े हिस्से में पहले ही जल की कमी हो चुकी है। जनसंख्यावृद्धि,शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव से जल की मांग तेजी से बढने के कारण जल सुरक्षा के क्षेत्र में  गंभीर चुनौतियों खडीहो गयी है। जल स्रोतों में बढता प्रदूषण पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने के साथ ही स्वच्छ पानी की उपलब्धताको भी प्रभावित कर रहा है। जल नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि खाद्य सुरक्षा, जैविक तथा समान और स्थाईविकास के लिए राज्य सरकारों को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धांत के अनुसार सामुदायिक संसाधन के रूप में जल का प्रबंधनकरना चाहिए। हालाँकि, पानी के बारे में नीतियां, कानून तथा विनियमन बनाने का अधिकार राज्यों का है फिर भी जल संबंधीसामान्य सिद्धातों का व्यापक राष्ट्रीय जल संबंधी ढाँचागत कानून तैयार करना समय की मांग है। ताकि राज्यों में जल संचालनके लिए जरूरी कानून बनाने और स्थानीय जल स्थिति से निपटने के लिए निचले स्तर पर आवश्यक प्राधिकार सौंपे जा सकें।तेजी से बदल रहे हालत को देखते हुए नयी जल नीति बनाई जानी चाहिए। इसमें हर जरूरत के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धताऔर जल प्रदूषित करने वाले को कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए।

जल की समस्या, आपूर्ति, प्रबंधन तथा दोहन के लिए सरकारी स्तर पर कई संस्थांऐं काम कर रही हैं। राष्ट्रीय जलमिशन तथा जल क्रांति अभियान अपने अपने स्तर पर अच्छा काम कर रहे हैं। मिशन का उद्देश्य जल संरक्षण, दुरुपयोग मेंकमी लाना और विकसित  समन्वित जल संसाधन और प्रबंधन द्वारा सभी को समान रूप से जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है।अभियान गांवों और शहरी क्षेत्रों में जल प्रबंधन, जन जागरण और आपूर्ति के काम में लगा है।

कई देशों में आयोजित होते हैं ऐसे ही कार्यक्रम

पानी के महत्व को सभी देशों ने पहचाना है। कनाडा, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अमेरिका जैसे विकसित देश भी जल सप्‍ताह आयोजित करते हैं। सिंगापुर में तो यंग वाटर लीडर्स – 2016 के आयोजन में तीस देशों से आए 90 से अधिक प्रतिनिधियों नेभाग लिया और पानी के मुद्दे पर गहन चर्चा की। भारत में 10 से 14 अक्तूबर, 2017 के दौरान होने वाले भारत जल सप्‍ताह – 2017 मे इस बार सहयोगी देश के रूप में हालैंड शामिल हो रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल क्षेत्र में हालैंड का लाभभारत को आने वाले दिनों में जरुर मिलेगा।

______________

परिचय – :

अजय कुमार चतुर्वेदी

लेखक व् पूर्व नौकरशाह

लेखक भारतीय सूचना सेवा के वरिष्‍ठ अधिकारी रहे हैं और पर्यावरण संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते रहे हैं।

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here