– घनश्याम भारतीय –
दुनिया के कई राष्ट्र प्रमुखों के साथ हुई भारत की मैत्रीय वार्ता से जगी वैश्विक मित्रता की उम्मीद तब और अधिक बढ़ गई थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काबुल से लौटते समय एक फोन पर लाहौर पहुंच गए थे। जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन समारोह में शामिल होकर मित्रता की पहल की थी। तब सामने आई दोनों प्रधानमंत्रियों की उदारता के बाद देखे गए मित्रता के सपने सप्ताह भर बाद ही पठानकोट में टूट गए। इससे दहशतगर्दों के संरक्षक बने दोगले पाकिस्तान का असली चेहरा भी सामने आ गया। अमन व शांति में खलल पैदा करके दहशत फैलाने की उसकी पुरानी और घिनौनी सोच भी उजागर हो गई। फिर भी इस पूरे मामले में भारतीय सेना के साहस की सराहना की जानी चाहिए, जिसने घुसे आतंकवादियों को न सिर्फ ढेर कर दिया बल्कि अपना सैन्य नुकसान उठाकर भी पेंटागन जैसे हमले की पुनरावृत्ति की साजिश को बेनकाब भी कर दिया।
ऐसा इसलिए क्योंकि पठानकोट एयर बेस पर हमला भारत में भारी तबाही मचाने की सोची समझी साजिश ही कही जा सकती है। बिना किसी संशय के कहा जा सकता है कि दुनिया भर में बादशाह बना अमेरिका उस समय पेंटागन हमले को नहीं रोक सका था और भारी तबाही सामने आई थी। परंतु भारतीय सेना ने पठानकोट वायु सेना के अड्डे में घुसे आतंकवादियों को धराशाई कर भारी तबाही से बचा लिया। यह बात अलग है कि इसकी कीमत अपने सात जवानो की जान के रुप में चुकानी पड़ी। यदि दहशतगर्दों के मंसूबे कामयाब हो जाते तो कितनी बड़ी तबाही मचती, यह सोच कर भी रूह कांप जाती है। करीब 24 किलोमीटर दायरे वाले इस क्षेत्र में 3000 परिवार रहते हैं। इसके अलावा हमले के समय वहां आधा दर्जन देशों के प्रशिक्षु भी मौजूद रहे। इन सब को बचाने के लिए पूरे 36 घंटे तक अभियान चलाने वाली सेना के साहस की सराहना की जानी चाहिए।
इस हमले को लेकर सवालों से घिरे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने श्रीलंका से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर दहशतगर्दी के जरिए तबाही मचाने की साजिश के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिला कर आतंकवाद विरोधी अभियान में साथ रहने के संकेत दिए हैं। ऐसा करना उनकी विवशता भी है क्योंकि आतंकवाद आज किसी एक दो राष्ट्र की नहीं अपितु वैश्विक समस्या बन गया है। जिसका खामियाजा दुनिया के तमाम देश भुगत रहे हैं। खुद पाकिस्तान भी इस समस्या से अछूता नहीं है। वह तो सर्वाधिक पीडित है। उसके यहां आए दिन इस तरह की वारदातें सामने आ रही हैं। आतंकवादियों के सामने वहां की जनता और खुद पाक सरकार असहाय बनी हुई है। कहा जा सकता है कि जिसे सांप पालने का शौक हो उसे उसके भयंकर विष का शिकार तो होना ही पड़ेगा। इसके विपरीत अमनपसंद भारत की जनता और यहां की सरकार सदा प्रेम और सद्भाव की पक्षधर रही है। दूसरी तरफ अहिंसा परमो धर्मः के सिद्धांत पर चलने वाले भारत के सब्र का बांध जब भी टूटा है, महाभारत भी हुआ है। पाकिस्तान शायद इसे भूल रहा है। तभी तो रह-रहकर घात करते हुए दोस्ती की पीठ में छुरा घोंप रहा है।
दूसरी तरफ भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत की सीमाएं ऐसे उद्दंड देशों से सटी हैं जो लगातार अशांति को बढ़ावा देते आ रहे हैं। चाहे वह पाकिस्तान हो अथवा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल , म्यांमार व चीन हो ,सभी की कुदृष्टि भारत की ओर किसी न किसी रूप में लगी है। कोई सीमा रेखा पार कर घुसपैठ कर रहा है तो कोई दहशतगर्द भेजकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है। यह जाहिर है कि आतंकवादी किसी भी तरह के अनुबंधों और समझौतों को नहीं मानते। खून खराबा करना और दहशत फैलाना उनका कर्म धर्म सब है। उनके साथ किसी भी तरह की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए।
अब पाकिस्तान को ही ले, जो अपने जन्म से लेकर अब तक उद्दंड बना हुआ है। बटवारे के बाद अब तक भारत पाक के बीच मधुर संबंध स्थापित करने को लेकर हुए सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं। भारत में पाकिस्तानी आतंकवाद उसी का प्रतिफल है। चाहे वह 1965 का हमला हो अथवा 1971 का युद्ध, या फिर कारगिल युद्ध। सब में उसका दोगला चरित्र ही उजागर हुआ है। हम बराबर बात करते हैं और वह बात-बात पर घात करता है। पठानकोट हमला इसका ताजा उदाहरण है। जो आपसी बातचीत के एक सप्ताह बाद सामने आया है। कारगिल में घुसपैठ और युद्ध के पहले भी दोनों देशों के बीच आपसी सद्भाव के लिए भारत की ओर से दोस्ती की पहल हुई थी। इसके अलावा अन्य हमलो में भी पाकिस्तानी चाल ही सामने आई है।
पिछले दो दशक में हमलों और खून खराबे का दंश झेलते आए भारत के सामने भी आतंकवाद बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। 12 मार्च 1993 का मुंबई सीरियल ब्लास्ट 13 सितंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमला 24 सितंबर 2002 को गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला 29 सितंबर 2005 को दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट 11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेन धमाका हुआ। जिसमें देश को भारी जन धन हानि उठानी पड़ी है। फिर सन 2008 में लगातार तीन मामले सामने आए। जिसमें 13 मई को जयपुर ब्लास्ट 30 अक्टूबर को असम धमाका और 26 नवंबर को मुंबई हमले में तमाम जाने गई। इन सभी हमलो में किसी न किसी रूप में पाकिस्तान का ही हाथ सामने आया। और अब पठानकोट के वायु सेना अड्डे पर हुआ हमला मानवता और एकता के माथे पर कलंक का टीका है।
कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में ऐसे आतंकी संगठन है जिन्हे दोनों देशों के बीच शांति का प्रयास बिल्कुल पसंद नहीं है। इन संगठनों और पाकिस्तानी सरकार में मतभेद शांति के रास्ते में रोड़ा बनते हुए आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। जो समूची मानवता के लिए खतरा है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब से कुछ माह पूर्व देश में कथित असहिष्णुता के नाम पर पूरा आसमान सिर पर उठाने वाले साहित्यकार, रंगकर्मी, कलाकार आज चुप बैठे हैं। एक व्यक्ति की मौत पर पुरस्कार लौटाने वालों का जमीर आज सात जवानों की शहादत पर मौन क्यों है? उनका साहस आयातित आतंकवाद पर शांत क्यों है? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। दूसरी तरफ पाकिस्तान के अंदर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाले संगठनों पर पाक कार्रवाई तो करता है परंतु जो पाकिस्तानी संगठन भारत में आतंक फैलाते हैं उन के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करना चाहता। ऐसे में भारत सरकार को खुद अपनी आतंकवाद विरोधी रणनीति की समीक्षा करते हुए उसमें आवश्यक सुधार और सेना का मनोबल बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम भी उठाना आवश्यक हो गया है।
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घनश्याम भारतीय
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