समग्र प्रगति के लिए हाई-स्पीड कॉरिडोर में भारत का प्रवेश

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– जी. श्रीनिवासन –

भारत ने जहां एक ओर अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने पर वर्ष 2022 में अपनी हीरक जयंती बड़ी धूमधाम से मनाने पर अभी से ही अपनी नजरें जमा ली हैं, वहीं दूसरी ओर एनडीए सरकार ने भारत में पहली बुलेट ट्रेन चलाने से संबंधित एक दशक पुराने सपने को साकार करने के लिए इस दिशा में बाकायदा ठोस शुरुआत कर दी है। इस दिशा में पहला सुदृढ़ कदम गुजरात के गांधीनगर में 14 सितंबर को तब उठाया गया जब भारत के दौरे पर आए जापान के प्रधानमंत्री श्री शिंजो आबे और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई और देश के प्रतिष्ठित शहर अहमदाबाद के बीच 508 किमी लंबी पहली हाई-स्पीड रेल परियोजना की नींव रखी।

श्री मोदी ने इस रेल परियोजना के महत्व एवं खासियत, विशेषकर इसकी प्रथम विकास-उन्‍मुख विधा को संक्षेप में यह कहते हुए रेखांकित किया कि ‘बुलेट ट्रेन’ से राष्ट्र को जो बहुमूल्‍य लाभ होगा वह दरअसल ‘हाई-स्‍पीड कनेक्टिविटी से अधिक उत्पादकता’ के रूप में हासिल होगा। उन्होंने यह बिल्‍कुल सही कहा कि प्रतिष्ठित बुलेट ट्रेन उनकी सरकार की आंकाक्षा के अनुरूप वर्ष 2022 तक निर्मित होने वाले ‘नए भारत का प्रतीक’ होने के अलावा ‘गेम-चेंजर’ भी साबित होगी।

इस परियोजना से देश भर में उत्पन्न उत्साह के माहौल को आगे भी अक्षुण्‍ण बनाए रखने और इस परियोजना पर काम शुरू होने के बाद आने वाली ढेर सारी चुनौतियों और असीम अवसरों पर प्रकाश डालने के लिए एक संक्षिप्‍त पृष्ठभूमि पेश की जा रही है। जापान सरकार से प्राप्‍त तकनीकी और वित्तीय सहायता के साथ मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर) परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी गई है। इस परियोजना का क्रियान्वयन शुरू करने के लिए नेशनल हाई स्‍पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचआरसीएल) का गठन एक विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) के रूप में किया गया है। एक संयुक्त व्यवहार्यता रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि इस परियोजना को वर्ष 2022-2023 में शुरू करने का लक्ष्‍य रखा गया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी देश की आजादी के 75वें साल यानी वर्ष 2022 में ही इस परियोजना को चालू करने को इच्‍छुक हैं, इसलिए परियोजना पूरी करने की समय सीमा एक साल घटा दी गई है।

महाद्वीपीय यूरोपीय देशों, जापान और चीन में हाई-स्पीड ट्रेनों के द्वारा किए जा रहे चमत्कारों को सुनने के साथ-साथ इसके गवाह रह चुके लोगों को अब बिल्‍कुल ठीक एक ऐसी ही आधुनिक ट्रेन के देश के प्रमुख शहरों से होकर गुजरने का अपना सपना सच होता प्रतीत हो रहा है। वैश्विक भू-राजनीतिक रुझान पर करीबी नजर रखने वाले कई विश्लेषकों का कहना है कि बर्फ से ढके माउंट फूजी के पास से बड़ी तेज रफ्तार से गुजरती प्लैटिपस जैसी नजर आने वाली और नीले एवं सफेद रंग की शिंकानसेन (जापानी बुलेट ट्रेन का नाम) की तस्वीर  जापान की लोकप्रिय सुशी के रूप में उसका अभिन्न अंग बन गई है। अक्टूबर 1964 से ही जब पहली बुलेट ट्रेन ने नया रिकॉर्ड बनाते हुए टोक्यो और वाणिज्यिक केंद्र ओसाका के बीच 582 किमी की दूरी को महज चार घंटे में ही तय कर लिया था (अब यह और भी घटकर सिर्फ दो घंटे 22 मिनट रह गया है),‘शिंकानसेन’ विश्‍व युद्ध के बाद दुनिया में अपना आर्थिक वर्चस्व स्‍थापित करने वाले जापान की प्रतिष्ठित छवि के रूप में उभर कर सामने आई है। जापानी बुलेट ट्रेन इस द्वीपसमूह की इंजीनियरिंग दक्षता और सुरक्षा एवं समय की पाबंदी के अविश्वसनीय मानकों की एक मिसाल है। अब तक जापानी बुलेट ट्रेनों से दस अरब यात्री सफर कर चुके हैं। इस दौरान महज एक दुर्घटना या हताहत की नौबत आई है। यही नहीं, इस दौरान ट्रेन परिचालन में औसत देरी का रिकॉर्ड महज एक मिनट से भी कम अविश्‍वसनीय अवधि का रहा है!

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी बुलेट ट्रेन के जरिए सुनिश्चित होने वाली अपार दक्षता के जरिए अर्थव्यवस्था को मूल्य और दौलत के रूप में होने वाले बेशुमार लाभ को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। यही कारण है कि इस परियोजना के शिलान्‍यास समारोह में श्री मोदी ने कहा कि हाई-स्‍पीड कॉरिडोर को समग्र आर्थिक विकास के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह दलील दी कि हवाई अड्डे तक पहुंचने,  इसके बाद उड़ान और फि‍र अंततः शहर में गंतव्य तक पहुंचने में लगने वाले कुल समय की तुलना में बुलेट ट्रेन लोगों को उनके गंतव्यों तक पहुंचाने में महज आधा समय ही लेगी। यही नहीं, इस दौरान लोगों को ट्रैफिक जाम, प्रदूषण और सड़कों पर हिंसक झड़पों जैसी आम बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। इससे जीवाश्म ईंधनों की खपत  के मद में भारी-भरकम बचत भी संभव होगी।

जहां तक जापान का सवाल है, उसने भारत में यह प्रतिष्ठित परियोजना बड़ी मुश्किल से जीती है क्योंकि वह भारत के साथ मित्रता को एक रणनीतिक लाभ के रूप में देखता है। इतना ही नहीं, यह जापान के लिए एक तरह से भू-राजनीतिक जीत भी है क्‍योंकि उसने सिर्फ 0.1 प्रतिशत ब्याज पर 12 अरब अमेरिकी डॉलर के ऋण की पेशकश करके चीन को पछाड़ दिया है, जिसे भारत को 50 वर्षों में अदा करना है। इससे परियोजना की अनुमानित लागत का 80 प्रतिशत से भी अधिक हिस्‍सा कवर हो गया है। इसके साथ ही जापान अपने वित्तपोषण के पूरक के तौर पर तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण पैकेज भी सुलभ कराएगा।

भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना को अवश्‍य ही एक नए परिप्रेक्ष्य से देखा जाना चाहिए। भारत की पहली ट्रेन ने काफी पहले वर्ष 1853 में बॉम्बे और ठाणे के बीच की 34 किमी दूरी लगभग एक घंटे में तय की थी। एक सदी के साथ-साथ कई दशक गुजर जाने के बाद भी भारतीय रेल की औसत गति प्रति घंटे 60 किलोमीटर ही है, जो दुनिया में सबसे कम गति में से एक है। यहां तक कि देश की सबसे तेज गति से चलने वाली ट्रेन ‘गतिमान’ भी 160 किलोमीटर प्रति घंटे की ही अधिकतम रफ्तार पकड़ पाती है। हालांकि, यदि आने वाले समय में देश के नीति निर्माताओं के आकलन के अनुसार ही सब कुछ होता है तो हाई-स्‍पीड ट्रेन इस अधिकतम गति की तुलना में दोगुनी से भी अधिक चरम रफ्तार से दौड़ेगी और इसके साथ ही वह ऐसे सभी भारतीयों की विश्वसनीयता और दिल जीत लेगी जो भारत को ढेर सारी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण देश के रूप में तब्‍दील होते हुए देखना चाहते हैं।

बुलेट ट्रेन परियोजना को बकवास कहकर इसे कोसने वाले आलोचकों को यह समझना होगा कि हवाई, रेल और सड़क मार्गों वाले यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करने के अलावा हाई-स्पीड ट्रेन ऐसे लोगों के नए यातायात का भी सृजन करती है जो एक नवीन अनुभव के रूप में बेहद तेज रफ्तार के साथ आरामदायक और सुविधाजनक यात्रा का लुत्‍फ उठाना चाहते हैं। एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें निजी क्षेत्र की ओर से निवेश अत्‍यंत कम एवं धीमा है तथा सार्वजनिक निवेश का व्‍यापक भार उठाने पर सरकार विवश है, उसे देखते हुए यह भारत में आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए वैश्विक स्तर पर बहुतायत में उपलब्‍ध किफायती अधिशेष पूंजी का अनुकरणीय उपयोग करने का एक लाभप्रद तरीका है। संक्षेप में, यदि बेहतरीन अग्रिम योजनाओं और कठोर निष्पादन मानकों के जरिए शुरुआती मुसीबतों और प्रबंधकीय बाधाओं से पार पा लिया गया और बिल्‍कुल सटीक तरीके से पूर्व निर्धारित समय सीमा पर ही सब कुछ हासिल कर लिया गया तो हाई-स्‍पीड रेल परियोजना से भारतीय अर्थव्यवस्था को अपार लाभ होना तय है।

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About the Author

G.Srinivasan

Author and senior journalist

Formerly Deputy Editor, The Hindu Group, the author now works as independent economic journalist and is based in Delhi.

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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