दुनिया से कर सके तो मुहब्बत अटूटकर,
लेकिन हर एक स्वार्थ के बंधन से छूटकर !
पत्थर पे नाम खौद रही थी मैं प्यार का
आईने दाद देने लगे टूट टूटकर !
ऊंचे मकान वाले छतों पर तो चढ़ गए,
लेकिन कभी दिखाएँ सितारों को लूटकर !
ये किसके पाँव हैं जिन्हें छूने की चाह में,
राहों में फूल आए हैं शाखों से टूटकर !
थामें हुए खड़ी हूँ ‘तुषा’ अपने दिल को मैं,
आईना क्या गिरा मेरे हाथों से छूटकर !
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मानवता फाउंडेशन में कार्यरत
निवास मेरठ