– तनवीर जाफ़री –
उधर राजनैतिक स्तर पर देखिये तो हरियाणा,पंजाब,दिल्ली तथा केंद्र की सरकारों के ज़िम्मेदारान एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। जिस दिल्ली के चारों ओर लाखों औद्योगिक इकाइयां,लाखों ईंटों के भट्टे,करोड़ों वाहन हों उस दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने की ज़िम्मेदारी हरियाणा व पंजाब के किसानों पर मढ़ने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 360 को पार कर गया है। इसका अर्थ यह है कि दिल्ली में न चाहते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति को 20 से लेकर 25 सिगरटें तक पीनी पड़ रही हैं। 2015 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ दिल्ली के हर 10 में से चार बच्चे ‘फेफड़े की गंभीर समस्याओं’ से जूझ रहे हैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार 2015 में प्रदूषण से हुई मौतों के मामले में भारत 188 देशों की सूची में पांचवें नंबर पर था। अध्ययन के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया में वर्ष 2015 में हुई मौतों की संख्या लगभग 32 लाख रही। और पूरे विश्व में हुई क़रीब 90 लाख मौतों में से 28 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में हुई हैं। गोया यह आंकड़ा 25 लाख से भी अधिक रहा। ज़ाहिर है 2015 से लेकर आज 2019 के अंतिम दिनों तक वायु प्रदूषण की दशा गत पांच वर्षों के दौरान बद से बदतर ही हुई है।
आम लोगों में प्रदूषण के प्रति जागरूकता में कमी भी इसका प्रमुख कारण है। किसानों द्वारा पराली जलाने की घटना तो वर्ष में एक-दो बार ही होती है। जबकि आम लोग गली मोहल्लों में,गांव देहातों में रोज़ाना कूड़ा,कबाड़,प्लास्टिक,पॉलीथिन आदि जलाते हुए मिल जाएंगे। दुधारू जानवर के आस पास धुंआ कर मच्छर भगाना तो गोया डेयरी मालिकान की परंपरा का एक हिस्सा है। घण्टों धुंआ होने से मच्छर भागें या न भागें परन्तु वातावरण में भरपूर प्रदूषण ज़रूर होता है साथ ही जानवर भी आँखों में धुंआ लगने से विचलित होते हैं। जहाँ तक प्रदूषण नियंत्रण के बारे में कारगर क़ानून बनाने का सवाल है तो यहाँ भी कारपोरेट के हितों को ध्यान में रखा जाता है। मिसाल के तौर पर 15 वर्ष पुराने वाहन को सड़क पर चलने के अयोग्य ठहराना एक ऐसा ही क़ानून है। इस क़ानून के बजाए ऐसे क़ानून बनाए जाने चाहिए कि प्रत्येक अमीर व्यक्ति जब और जितने वाहन चाहे वह न ख़रीद सके। किसी भी व्यक्ति को केवल ज़रुरत के अनुसार ही वाहन ख़रीदने की इजाज़त होनी चाहिए। जबकि आज हर धनाढ्य व्यक्ति अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ वाहन ख़रीद सकता है। इससे ट्रैफ़िक व प्रदूषण दोनों ही प्रभावित होता है। अनियंत्रित व अव्यवस्थित निर्माण कार्यों से भी बहुत प्रदूषण फैलता है। इस पर भी नज़र रखा जाना ज़रूरी है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जहाँ जाने अनजाने में हम किसी न किसी तरह प्रदूषण को बढ़ाने में अपना कोई न कोई योगदान ज़रूर देते हैं चाहे पॉलीथिन या प्लास्टिक का इस्तेमाल ही क्यों न हो। वहीँ प्रदूषण को काम करने के अनेक छोटे छोटे घरेलु उपाए करने में हम पीछे रह जाते हैं। उदाहरणार्थ वृक्षारोपण में ही हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है। हम अपना जन्म दिवस मनाने और शादी की सालगिरह मनाने के लिए क्या कुछ नहीं करते। पैसे,समय सब कुछ ख़र्च करते हैं। क्या ऐसे अवसरों को हम वृक्षारोपण के लिए निर्धारित नहीं कर सकते? ऐसे मौक़ों पर हमारे द्वारा लगाए गए पेड़ हमें हमारे या हमारे बच्चों के बर्थडे की भी याद दिला सकते हैं और हमारी शादी की याद को भी ताज़ा रख सकते हैं। जबकि दूसरे मौज मस्ती के ख़र्चीले आयोजनों को हम आसानी से भुला देते हैं। भले ही हम अन्य आयोजन भी करें परन्तु इन अवसरों को वृक्षारोपण के लिए ज़रूर निर्धारित करना चाहिए। वाहनों का प्रयोग ज़रुरत पड़ने पर ही करना चाहिए। आसपास के फ़ासले पैदल या साइकिल से तय करना स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है और प्रदूषण नियंत्रण में भी इसका एक अहम योगदान है। कुल मिलकर हम कह सकते हैं कि यदि हम स्वयं प्रदूषण के कारणों व इसके समाधान के प्रति पूरी तरह जागरूक नहीं हुए तो यह जान लेवा प्रदूषण न केवल हमारी हर सांस पर मौत की इबारत लिखता रहेगा बल्कि हमारी आने वाली नस्लों के लिए भी हमारी ही और से दी गई तबाही व बर्बादी की ‘सौगात’ साबित होगा।
About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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