{ मनोज मर्दन त्रिवेदी } परम पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वारूपानंद जी महाराज का आज ९१र्वा जन्म दिवस है । धर्म की रक्षा और धार्मिक आस्थाओं में कुठाराघात या विकृती पर समाज को जगाना धर्मादेश देने के वे अधिकारी है । हिन्दु धर्म में शंकराचार्य के आदेश को ईश्वरीय आदेश मानने की परंपरा रही है । वर्तमान समय में सांई को केन्द्रित कर धर्मक्षेत्र में सुधार का और दिशा देने का अभियान पूज्य शंकराचार्य महाराज द्वारा चलाया गया है यह अभियान मेरी सोच के अनुसार केवल सांई बाबा का विरोध नहीं है यह धर्म के नाम पर सनातन धर्म और प्राचीन मान्यतायें जो प्रमाणिक वैज्ञानिक आधार पर समाज को व्यवस्थित सुखमय रखने में सक्षम जीवन जीने की नियमयावली है उन मान्यताओं में आ रही विकृतियों को दूर करने वाला अभियान है ।
कौन किसकी पूजा करता है किस पर श्रद्धा रखता है ? यह बिल्कुल निजता से जुडा मामला है परंतु करोड़ो वर्षो से विशाल भारत के भूखंड ही नहीं मान्यता के अनुसार संपूर्ण सृष्टि का संचालन करने वाली वैदिक संस्कृति जिसमें चमत्कारो को नहीं कर्म और सिद्धांतों का महत्व रहा है उसी संस्कृ ति के विरूद्ध समाज में चमत्कारों की कपोल कल्पित कहानियों के प्रचार से पुरातन संस्कृति से दूर करने और उसे अडंबर बताकर विकृत व्यवस्था की स्थापना समाज को पतन की ओर ले जायेगी ।
धर्म चाहे जो भी हो उसके मूल सिद्धांतो में पूजा पद्धति का अंतर हो सकता है परंतु चमत्कारो को केवल मनोरंजन के लिये ही स्थान है । सृष्टि के व्यवस्थित संचालन के लिये हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों की रचना की गयी है। श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नही किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों मे देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत वेद -ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। इन सभी ग्रंथों में सृष्टि के सभी प्राणियों पेडों पौधों तक की चिंता के साथ संरक्षण करने के लिये धर्म का आधार दिया गया है ।
संपादक
दैनिक यशोन्नति
*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC. ****