श्रमिकों के बुरे दिन और देश का इतिहास

                                    

– निर्मल रानी – 

जिस समय पूरी दुनिया की नज़रें कोरोना के वैश्विक दुष्प्रभावों पर लगी हुई हैं उसी के साथ साथ विश्व मीडिया भारत के करोड़ों श्रमिकों की दुर्दशा पर भी नज़र रखे हुए है। भारतीय मीडिया इसे ‘मज़दूरों का पलायन’ कहकर संबोधित कर रहा है जबकि यह बेबस व मजबूर श्रमिक अपने औद्योगिक व व्यवसायिक प्रतिष्ठनों की बेरुख़ी व सरकार की नाकामियों व ग़लत फ़ैसलों की वजह से सुरक्षा के दृष्टगत दूरस्थ अपने अपने क़स्बों व गांव मुहल्लों में अपने घरों में अपने परिवार के पास पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं। कई लोगों ने देश के अब तक के सबसे बड़े श्रमिक प्रस्थान की तुलना 1947 के भारत पाक विभाजन से की है जब करोड़ों लोगों ने अनिश्चितता के वातवरण में इधर से उधर कूच किया था। उस समय भी भारत पाक दोनों ही ओर के संपन्न लोग प्रायः सुरक्षित थे जबकि विभाजन की त्रासदी का दंश आम लोगों ने ही झेला था। स्थिति आज भी लगभग वैसी ही है। आज भी लॉक डाउन की सबसे बड़ी मार कामगार,श्रमिक,दिहाड़ीदार व आम लोगों पर ही पड़ रही है। परन्तु मजबूरी,बेबसी और लाचारी के जो मंज़र लगभग दो महीने से चल रहे इस वृहद श्रमिक कूच के  दौरान देखे गए वह विभाजन से कहीं ज़्यादा दर्दनाक,भयावह,अप्रत्याशित तथा श्रमिकों के भरोसे को तोड़ने वाले थे वाले थे।
                                             बड़े आश्चर्य की बात है कि देश के चंद दो चार गिने चुने मीडिया घराने ने ही कोरोना से भी बड़ी कही जा सकने वाली श्रमिक त्रासदी को अपने टी वी चैनल्स पर दिखाना उचित समझा अन्यथा अधिकांश भोंपू चैनल्स का पूरा समय साम्प्रदायिकता फैलाने व सरकार का  गुणगान करने में ही निकल रहा है। सोशल मीडिया पर अपने अपने गांव घरों को वापस जा रहे श्रमिकों व उनके परिवार के सदस्यों की जो हृदय विदारक तस्वीरें सामने आ रही हैं उन्हें देखकर कोई भी पत्थर दिल इंसान भी रो पड़ेगा। परन्तु अफ़सोस कि देश के नेताओं को इन्हें तत्काल राहत पहुंचाए जाने का कोई उपाय नहीं सूझा। श्रमिक कूच  के दौरान केवल दो अवसरों पर सरकारें सक्रिय दिखाई दीं। एक उस समय जब औरंगाबाद के समीप ट्रेन से कटकर 16 श्रमिकों ने अपनी जानें गंवाईं। चूँकि उनकी संख्या 16 थी इसलिए उन श्रमिकों के क्षत विक्षत शव को मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ ले जाने के लिए  विशेष ट्रेन का प्रबंध किया गया। प्रशासन ने तत्काल आर्थिक सहायता के साथ स्पेशल ट्रेन से शवों को महाराष्ट्र से रवाना किया। जबलपुर पहुंचने पर शवों को दो बोगियों से शहडोल और उमरिया रवाना किया गया। श्रमिक स्पेशल ट्रेन में औरंगाबाद के समीप हुई दुर्घटना में मारे गये शहडोल के ग्यारह और उमरिया के पांच व्यक्तियों के शव भी जबलपुर लाये गये थे। सभी 16 शवों को स्पेशल ट्रेन से उमरिया और शहडोल रवाना किया गया। दुर्घटना स्थल पर अधिकारियों को हेलीकॉप्टर से भेजा गया। नेताओं के शोक संदेशों का दौर चला।श्रमिकों की शव यात्रा में राजनैतिक दलों के नेताओं ने शिरकत कर घड़ियाली आंसू बहाए। साथ ही इस दुर्घटना के बाद रेल ट्रैक के किनारे श्रमिकों के पैदल चलने पर रोक लगा दी गयी और इस संबंध में रेलवे प्रशासन को अलर्ट कर दिया गया। जो श्रमिक उस दुर्घटना के दौरान या बाद में रेल ट्रैक के किनारे चल रहे थे उन्हें हटाने की व्यवस्था की गयी।
                                            दूसरी सरकारी सक्रियता उस समय नज़र आई जब उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले में दो ट्रकों की टक्कर में ट्रक पर सवार 24 मज़दूरों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। अनेक श्रमिक इस दुर्घटना में घायल भी हुए। यहाँ भी मृतक श्रमिकों की संख्या चूँकि 24 थी और मामला भी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का था इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सभी ने संवेदना के ट्वीट कर डाले। मोदी जी ने अपने ट्वीट में फ़रमाया कि -‘उत्तर प्रदेश के औरैया में सड़क दुर्घटना बेहद ही दुखद है। सरकार राहत कार्य में तत्परता से जुटी है। इस हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं, साथ ही घायलों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं।’ इसी प्रकार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ”उत्तर प्रदेश के औरैया में हुए सड़क हादसे में कई श्रमिकों की मृत्यु के बारे में जानकर अत्यंत दुख हुआ है. इस दुर्घटना में जिन लोगों की जान गई है, मैं उनके परिजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं. साथ ही दुर्घटना में घायल हुए मज़दूरों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं’। वहीं मुख्यमंत्री योगी का संवेदना ट्वीट कुछ इन शब्दों में था -‘जनपद औरैया में सड़क दुर्घटना में प्रवासी कामगारों/श्रमिकों की मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण एवं दुःखद है, मेरी संवेदनाएं मृतकों के शोक संतप्त परिजनों के साथ हैं। पीड़ितों को हर संभव राहत प्रदान करने,घायलों का समुचित उपचार कराने व दुर्घटना की त्वरित जांच करवाने के निर्देश भी दिए गए हैं।’
                                          ठीक है सरकार की जितनी भी संवेदनशीलता है उसका का सम्मान किया जाना चाहिए। परन्तु इसी लॉक डाउन में पैदा परिस्थितियों के कारण एक,दो,चार,छः करके भी कम से कम अब तक एक हज़ार लोग रास्ते में ही मौत की आग़ोश में समा चुके हैं।लगभग प्रतिदिन श्रमिकों के साथ होने वाले किसी न किसी हादसे की ख़बरें आ रही हैं। बिना किसी हादसे के भी कितने श्रमिक या उनके परिवार के सदस्य यहाँ  तक कि छोटे बच्चे भूख,प्यास,थकान या डी हाइड्रेशन की वजह से दम तोड़ रहे हैं। देश के इतिहास में श्रमिकों ने इतने बुरे दिन पहले कभी नहीं देखे। निश्चित रूप से यह सरकार की ग़लत व जल्दबाज़ी में लिए गए फ़ैसलों तथा अदूरदर्शिता का ही परिणाम है।  

_________________

परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -: E-mail : nirmalrani@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here