शैलजा पाठक की तीन कविताएँ
1.एक ऐसा भी इंतज़ार
और फिर वो शमशान में जिन्दा रहाइन्तजार में की भीड़ कम हो
लकड़ी आ जाये
विदेश से आ जाये उडन खटोले में
उसका लाडलाउसका फूल जैसा कोमल पोता
जो पिछली गर्मी बाबा कर के
बार बार लिपट जाया करतावो जिन्दा है मन के अन्दर की आँखें
टकटकी बांधे देख रही है
रास्ता
रात धधक रही है
चंद रिश्ते इधर उधर इंतजाम
में लगे हैं
वक़्त निर्दय है बीत रहा है
शरीर जल के राख हो रहावो जिन्दा है अब भी
एक बार बेटे को देखना है
उसकी आँखों में विछोह को
देना है तसल्लीपोता पेट पर बैठा है
ए घोडा ..टिकटिकआत्मा परमात्मा
आकाश गंगा एक हो रहे हैं
राख ठंठीवो जिन्दा है ..बेटा ..दुरी ..अकेला
मौत ..बरगद काँप गया
पिता सौप रहा था
खाली घर को अपना प्यार दुलार
गंगा ने समेट ली सारी बेचैनीदूर आसमान चीरता हवाई जहाज
उससे भी दूर एक जोड़ी आँखें गहरी भींगी उदास ……
२.मझली चाची
मझली चाची के हलदियाईन हाथ
टह लाल आँखें
चूल्हा पर खदकते अदहन से सवाल
ना कभी कोई सुना ना सुन पायेगातीज पर कसी चूड़ियाँ
छनछनाती नही
कलाई पर गोल चिपकी सी होती है
जैसे कलेजे को घेरे रहता है दर्दठीक होली की शाम चुड़िहारिन
उतार लेगी पुरानी चूड़ियाँ
पहना जायेगी नइ
चाची झोंक दी जायेंगी आग में लकड़ी की तरहरात मन के सूने आँगन में
जलेगी होली
अतीत का हुडदंग
मंजीरे पर फाग गाते लोग
पिसती भांग का नशा
सामने वाली खिड़की पर
एकटक निहारती एक जोड़ी आँख
भींग कर भी ना भींग पाई उसके रंग सेरात वीराने चाचा का संदेसा
आज हम बड़का टोला में रुकेंगेफागुनहटा चले तो गाँव घर बड़ा याद आवे है
अम्मा कहती रहीधरती लाल रंग गई आज ..चाची कोरी की कोरी
बड़का टोला से देर रात तक आती रही नाच गाने की आवाज
मोरे नैना कटीले दरोगा जी सब दुश्मन निगोड़े दरोगा जी ……
३. राख
दांत मांजे थे कभी
हाथ या बर्तन कभीराख में जिन्दा पड़ी
एक आंच भी थीराख की पुडिया
कभी माथे का टिकाफिर राख तुम
स्वर्णिम कलश की
लाल कपड़ों से बंधी थीमंत्र पूजा अर्चना
अंतिम विदाईतुमने अंतिम सांस ली क्या ?
धार कांपी या हमारी आँख में
पानी के परदे ….
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हमेशा की तरह अद्भुत बिम्ब और संवेदना !! शैलजा पाठक हिन्दी कविता में एक मौलिक नाम है … भाई नित्यानन्द जी एक बार प्रूफ देख लीजिये . बहुत अच्छी पोस्ट पढ़वाने के लिए धन्यवाद !!
वाह! शैलजा.. तुम्हें पढ़कर कभी मन नहीं भरता.. बस पढ़ती रहूँ.. भरती-खाली होती रहूँ.. तुम्हारे शब्दों के साथ जीती रहूँ.. शुभकामनायें.. आसमान को छूना है तुम्हें..
नित्यानंद भाई.. ये सिलसिला चलता रहे.. आभार..
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मझली चाची ….बहुत शानदार ,सभी को पढ़नी चाहिए
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