*शिक्षा के यह विरोधी मुसलमान नहीं बल्कि इस्लाम के दुश्मन

Students lie injured after they were brought to the Lady Reading Hospital for treatment in Peshawar

**तनवीर जाफरी

अफगानिस्तान तथा अफगान-पाक सीमांत क्षेत्र वज़ीरिस्तान के इलाकों से प्रायज् ऐसी ख़बरों आती रहती हैं कि कट्टरपंथी तालिबानों द्वारा कहीं शिक्षण संस्थाओं को ध्वस्त कर दिया गया तो कहीं school जाने वाले बच्चों पर ज़ुल्म ढाए गए। स्वयं को मुसलमान बताने वाली यह शक्तियां मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने तथा उन्हें school भेजे जाने की तो ख़ासतौर पर विरोधी हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ बीते पांच वर्षों में शिक्षा का विरोध करने वाले इन तालिबानों द्वारा पांच सौ से अधिक शिक्षण सस्थाओं व schools को निशाना बनाया जा चुका है। शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों पर ज़ुल्म ढाने के अपने क्रम के दौरान गत् 13 सितंबर को उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान के पेशावर शहर के बाहरी क्षेत्र मथानी में खैबर model school की बच्चों को school ले जा रही एक वैन पर हमला किया गया। इस हमले में पांच शिक्षार्थी बच्चों को इन क्रूर तालिबानों ने गोली मारकर शहीद कर दिया। इसी प्रकार पिछले दिनों इस्लामाबाद से 70 किलोmeetर की दूरी पर स्थित एक school भवन को इन्हीं शक्तियों द्वारा विस्फोट से उड़ा दिया गया। गौरतलब है कि तालिबानी संगठन इस प्रकार के हमलों की खुलकर çज़ मेदारी भी लेते हैं तथा आगे भी शिक्षा का विरोध करते रहने तथा भविष्य में ऐसे हमले जारी रखने की भी चेतावनी देते रहते हैं। ज़ाहिर है इनके इस मिशन का मकसद सिर्फ यही है कि मुस्लिम समाज के लोग ख़ासतौर पर मुसलमान लड़कियां शिक्षा ग्रहण न कर सकें।

प्रश्र्न यह है कि क्या इस्लाम धर्म, कुरान शरीफ या पैगंबर-ए-रसूल हज़रत मोहम्मद  साहब की कोई हदीस मुसलमानों को शिक्षा दिए जाने का विरोध करने की हिदायत देती है? या फिर इस प्रकार का घिनौना व अमानवीयतापूर्ण क्रूर प्रदर्शन इन तालिबानों द्वारा अपने गढ़े हुए इस्लाम के कारण है? मोह मद साहब का कथन है कि जिसके पास बेटी हो उसकी तौहीन न करें बल्कि उसे बेटे से कम न समझें। ऐसा समझने वाले को अल्लाह जन्नत से नवाज़ेगा। इस्लाम में औरतों की शिक्षा को इसलिए महत्व दिया गया है क्योंकि शिक्षित नारी से ही घर बनता है तथा समाज का विकास होता है। ज़ाहिर है घर ही बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है। नारी की शिक्षा के बिना समाज में किसी प्रकार का विकास संभव नहीं है। वास्तविक इस्लामी शिक्षा न सिर्फ महिलाओं सहित संपूर्ण समाज को शिक्षित किए जाने की पक्षधर है बल्कि वास्तविक इस्लाम अमन व सलामती का भी संदेश देता है। शिक्षा का महत्व इस समय केवल सामाजिक उत्थान के लिए ही नहीं बल्कि स्वयं इस्लाम धर्म की सुरक्षा के लिए भी शिक्षा अत्यंत ज़रूरी है।

परंतु बड़ी अजीब सी बात है कि शिक्षा का विरोध करने वाले वह तथाकथित मुसलमान आतंकवादी हैं जो स्वयं तो अफीम का धंधा कर धन इक_ा करते हैं, फिर उसी धन से हथियार मुहैया करते हैं और उन हथियारों से बेगुनाह लोगों की जान लेते हैं। और यही लोग बच्चों को school जाने से रोकते हैं, school भवन को विस्फोटों से उड़ाते हैं और school जाने वाले बच्चों को कत्ल कर देते हैं। जो इस्लाम किसी एक बेगुनाह व्यक्ति के कत्ल को पूरी मानवता के कत्ल की संज्ञा देता हो, वह इस्लाम इन दहशतगदोz के इस प्रकार के काले कारनामों का çज़ मेदार कैसे हो सकता है? इस प्रकार के तालिबानी आतंकी मुसलमान तो क्या इंसान कहे जाने के योग्य भी नहीं हैं। आज दुनिया में इस्लाम फैलने का कारण तालिबानी प्रवृति की कारगुज़ारियां नहीं बल्कि हज़रत मोह मद का उदार स्वभाव, उनका चरित्र तथा आपसी प्रेम व भाईचारे की शिक्षा का प्रचार-प्रसार है। परंतु इसी इस्लाम के नाम पर कुछ स्वयंभू इस्लामी ठेकेदारों ने अपनी साम्राज्यवादी रणनीति के अंतर्गत् तथा अपने स्वार्थवश इस्लाम को इस प्रकार से पेश करना शुरु कर दिया है कि वही इस्लाम धर्म इन्हीं तालिबानों की क्रूरतापूर्ण हरकतों के कारण आज आतंक व बदनामी का पर्याय बनता जा रहा है।

पाकिस्तान व अफगानिस्तान में जहां इन तालिबानों द्वारा शिक्षा का क्रूरतापूर्वक विरोध किया जा रहा है, वहीं ठीक इसके विपरीत भारत में मुस्लिम समुदाय द्वारा मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा आवश्यक रूप से ग्रहण कराए जाने के संबंध में फतवे जारी किए जा चुके हैं। भारत में कुरान और हदीस के हवाले से बार-बार मुस्लिम समाज को यह हिदायत दी जा रही है कि शिक्षा ग्रहण करना प्रत्येक मुसलमान के लिए ज़रूरी है, चाहे वह पुरुष हो अथवा महिला। ऐसे फतवों में बताया जाता है कि इंसान संसार में इसलिए आया है कि वह मानवता को अज्ञानता से निकाल कर ज्ञान की रोशनी में दाçखल करे। और इन्हीं फतवों में शिक्षा ग्रहण करने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इस्लाम में यह बात बहुत ज़ोर देकर कही गई है कि एक पढ़ी-लिखी औरत पूरे समाज को शिक्षित कर सकती है। पैगम्बर -ए-इस्लाम हज़रत मोह मद साहब ने फरमाया है कि जो शख्स  बेटियों या बहनों का पालन-पोषण कर उन्हें अच्छी तालीम देता है और उनकी शादी बेहतर ढंग से करता है, अल्लाह उसे जन्नत अता फरमाता है। इस्लाम धर्म में केवल अपनी संतानों को ही नहीं बल्कि प्राचीन प्रथा में प्रचलित कनीज़ों (गुलाम महिलाओं)अथवा बांदियों की भी शिक्षा-दीक्षा देने का निर्देश दिया गया है।

यहां एक प्रश्न यह भी है कि जब इस्लाम एक विeव्यापी धर्म है तथा इसकी शिक्षाएं भी संपूर्ण मुस्लिम जगत के लिए एक जैसी हैं तो आçखर भारतीय मुस्लिम धर्मगुरुओं के फतवों तथा तालिबानी आतंकवादियों द्वारा शिक्षा का विरोध किए जाने जैसे विचारों में इतना अंतçर्वरोध क्यों है? भारत में इस समय देश के अधिकांश मदरसों में भी आधुनिक व उपयोगी शिक्षा ग्रहण करने पर ज़ोर दिया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष भारत की सर्वप्रमुख एवं सर्वाच्च सेवा परीक्षा समझे जाने वाली संघ लोक सेवा आयोग (यू पी एस सी) की परीक्षा में जहां कई मुस्लिम छात्रों की सफलता के समाचार मिलते हैं, वहीं गत् वर्ष देवबंद जैसे इस्लामी धार्मिक शिक्षण संस्थान के एक छात्र द्वारा भी इस परीक्षा में सफलता हासिल किए जाने का समाचार है। गत् वर्ष तो ज मू-कश्मीर के एक छात्र शाह फैसल ने इसी यूपीएससी परीक्षा में देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर भारतीय मुसलमानों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। शाह फैसल की पृष्ठभूमि भी कुछ अजीबो गरीब थी। उसके पिता की जहां आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी, वहीं उसकी शिक्षिका मां ने उसे पढ़ाई करने तथा यू पी एस सी की परीक्षा में सç मलित होने के लिए प्रेरित किया। और आçखरकार उस मुस्लिम समुदाय की मां की मेहनत व उसकी सोच रंग लाई व उसका बेटा भारत जैसे विशाल देश में यू पी एस सी परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर सका।

परंतु गत् दो दशकों से अफगानिस्तान व वज़ीरिस्तान क्षेत्र में ख़ासतौर पर शिक्षा को लेकर जहालत, क्रूरता व बबüरता का जो तांडव देखने को मिल रहा है, वह निश्चित रूप से न सिर्फ इस्लाम बल्कि पूरी इंसानियत को कलंकित करने वाला है। अफीम की आय पर पलने वाले यह तालिबान खुद तो नशे के कारोबार में पलते हैं जोकि कतई तौर पर गैर इस्लामी हैं। इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक़ तो नशीली चीज़ों के कारोबार की कमाई हुई रोटी भी हराम है न कि अधिकांश तालिबानी समाज इसी धंधे को अपने जीविकोपार्जन का मु य ज़रिया समझता है। जबकि यही तालिबान शिक्षा ग्रहण करने जैसे इस्लामी दिशा निर्देशों का बलात विरोध करता है। आçखर यह इनका कैसा इस्लाम है, मुझे नहीं लगता कि ऐसी शक्तियां मुसलमान कहे जाने योग्य भी हैं।

इन तालिबानों की रोज़मर्रा की हरकतों में औरतों को सरेआम बेइÊज़त करना, उनपर सार्वजनिक रूप से ज़ुल्म ढाना, उनकी हत्याएं करना, मानव बम बनाना तथा मानव बमों को इस्तेमाल करते हुए बेगुनाह लोगों को मारना आदि शामिल हैं। यह क्रूर तालिबानी इस प्रकार के गैर इस्लामी व मानवता विरोधी कार्य करके जहन्नुम के हकदार बनते हैं तथा साथ-साथ इस्लाम को भी कलंकित करते हैं। हकीकत तो यह है कि मानवता तथा शिक्षा के यह विरोधी मुसलमान कहने योग्य तो हैं ही नहीं बजाए इसके यह शक्तियां इस्लाम की घोर दुश्मन तथा मानवता विरोधी हैं।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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