शम्भू यादव की कविताएँ
1.मेरी तुम
गठरी सा बंधा बैठा है
जाड़े का दिन
कि बस अब तुम्हारा हाथ लगे
और खुल जाए
2. सूरज सुबह का
काली सुअर के पेट से निकला
लाल सुनहरा बच्चा
दूध पीने को
अपनी आँखे चमचमा रहा
फिर दिनभर के लिए
महानगर की गलियों में इत-उत
शरीर पर जमा करेगा,
बहुत सा कालस!
3. शाम का
शाम का सूरज
भूख से पीला पड़ा है
घर जाने की जल्दी में
घर में माँ
बड़े-से थाल में
ढेर सा चूरमा परोसे।
4. भास्वित बिंब
अंधड़ अपने साथ लाया घुप्प अँधेरा
बच्चे सचुकाए
उनकी आँखों में भर गए किस्सों के दैत्य-दानव
हिंस्र जनावर!
इतने में पत्नी उठा लाई
माँ का ठाकुर जी का बडी जोतवाला दीया
भूला-बिसरा क्षण
अपने रूप की
चिकनाई में चमकता
जोत का दायरा फैला है भरपूर
वर्तमान के मर्म में, रह-रह
उज्ज्वल अपना ही वितान
तेज हवा के प्रहार के बीच
लचकदार लय में जिमनास्ट प्रयत्नशील
‘शावलिन मास्टर’
सहज कौशल में, अद्भूत
जीवन के
भास्वित बिंब
5. यह भी एक खबर है आप विश्वास करें तो
जिस समय टीवी के मायावी पर्दे पर
न्यूज़ चैनल प्रस्तुत कर रहा था
‘हरे-भरे घास के मैदान
घास को समानता से चरती भेड़े
खुशियों से भरी हैं’
समय के उसी फ्रेम में
उन भेड़ों को ले जाया जा रहा था
वधगृह की ओर
यह भी एक पुख्ता खबर है आप विश्वास करें तो
भेड़ों के खून से सिंचित रंगबिरंगे बाग़
रूप महल आलीशान, जहां
शोभायमान देश के कुलीन जन
‘मटन कोरमा’ की महक में उल्लसित
नई-नवेली उदारवादी व्यवस्था की सुंडी में
अपना चूमा जड़,
जड़ हुलसित
6. नाकामयाब
वो खूब हंसे मुझ पर
फब्तियाँ भी कसी
और एक ने कह ही दिया आखिरकार –
‘लगता है भईया
किसी गुजरे ज़माने से आये हो’
यह तब की बात है
जब मैं एक शॉपिंग प्लाजा में
अपनी एक पुरानी बुशर्ट के छेद को
बंद कराने की इच्छा में ढूंढ रहा था
एक अदद रफ़ूगर।
_________________
प्रस्तुति
नित्यानन्द गायेन
Assistant Editor
International News and Views Corporation
————————————-
शम्भू यादव की कविताएँ तक्नीकं और किल्लीकारी नहीं; अनुभव की ठोस जमीन की कविताएँ हैं. उनका पक्ष और प्रतिपक्ष एकदम स्पष्ट है; यहं कोई मध्यवर्गी घालमेल नहीं . शहरों पर कविताएँ लिखने वालों की कमी नहीं है पर शम्भू यादव की कविताएँ इनसे अलग हैं. यह सभ्यता जितनी चमक-दमक फैलाती है और जितनी मात्र में करें और शिलाजीत उत्पादित करती है, उससे कहीं ज्यादा ग़रीबी, बेकारी , पागलपन और नशाखोर पैदा करती है. यहाँ शहरी जीवन का यही छाडन है, जो हमारी ठस्स संवेदना और नज़रों की जद से छूट जाता है इन कविताओं को पढ़ते हुए आपको लगेगा, कि यहाँ शहरों का आउटर सर्किल है.
————————————————————————–
शानदार ,3 घंटे कब कटे इस साईट पर पता ही नहीं चला ! कई बार पढ़ने के बाद अब फिर लिखने का मन हुआ ! ये लेखक की सबसे बड़ी उपलब्धि है की पाठक को कुछ कहने पर मजबूर कर दे !
Shaandaar post! Haardik badhai va dhanyavaad!!
वाह ….शानदार कविताए …यह भी खबर हैं ….बहुत ही उम्दा
I would like to thnkx for the efforts you have put in writing
I admire your post , regards for all the useful posts.