– तनवीर जाफरी –
दक्षिणपंथी हिंदूवादी विचारधारा से संबंध रखने वाले संगठनों द्वारा महात्मा गांधी व पंडित जवाहरलाल नेहरू को कोसना तथा उनमें तरह-तरह की कमियां निकालना यहां तक कि झूठे-सच्चे िकस्से कहानियां गढक़र उन्हें बदनाम करने की कोशिश करना गोया इनका पेशा रहा है। कभी इनके चरित्र पर व्यक्तिगत् हमले किए जाते हैं तो कभी इनकी राजनैतिक सूझबूझ पर प्रश्रचिन्ह लगाने की कोशिश की जाती है,कभी इनकी समझ व दूरदर्शिता को ही कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जाता है तो यदि कुछ नहीं बन पड़ता तो कांग्रेस के नेताओं के आपसी संबंधों में झांक कर उसी को बहाना बनाकर अनर्गल प्रचार करने का प्रयास किया जाता है। मिसाल के तौर पर कुछ नहीं तो यही प्रचारित किया जाता रहा है कि नेहरू ने सरदार पटेल की राजनैतिक उपेक्षा की और उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। यहां तक कि यह भी बताया जाता है कि सरदार पटेल के परिवार के सदस्यों की नेहरू परिवार ने अनदेखी की है। बड़ी हैरत की बात है कि यह बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं भी विभिन्न अवसरों पर की जाती रही हैं। ज़रा सोचिए कि लाल कृष्ण अडवाणी,मुरली मनोहर जोशी,यशवंत सिन्हा,शांताकुमार व केशू भाई पटेल जैसे और भी कई वरिष्ठ भाजपाई नेता जो स्वयं नरेंद्र मोदी के ‘राजनैतिक कलाकौशल’ का शिकार हों वह व्यक्ति यदि आज सरदार पटेल की नेहरू द्वारा कथित रूप की गई उपेक्षा की बात करे तो ज़ाहिर है अजीब सा प्रतीत होता है।
वास्तव में गांधी-नेहरू परिवार के पीछे पड़े रहने का इन दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी लोगों का एकमात्र मकसद यही रहा है कि इन नेताओं ने स्वतंत्रता के बाद यहां तक कि 1947 के कथित धर्म आधारित विभाजन के बाद भी भारतवर्ष को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के पक्ष में अपनी ज़ोरदार वकालत की। यहां तक कि स्वतंत्रता के तीन वर्षों बाद ही भारतवर्ष में हुए पहले लोकसभा चुनाव में पंडित नेहरू ने अपने इसी मत पर पूरे देश का जनमत हासिल किया। और देश को एक मज़बूत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ाने की मज़बूत शुरुआत की। सांप्रदायिक शक्तियां स्वतंत्रता के पहले से ही देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की पक्षधर थीं जबकि गांधी व नेहरू ने भारतवर्ष को हमेशा भारतीय नागरिकों के देश के रूप में बरकरार रखने की कोशिश की। आज पूरे विश्व में भारत की जो भी मान-प्रतिष्ठा,पहचान व सम्मान है वह गांधी व नेहरू की उन्हीें नीतियों की बदौलत है और इन्हीं नेताओं की वजह से हमारी पहचान एक मज़बूत विभिन्नता में एकता रखने वाले धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में बनी हुई है। आज जिस देश पर गांधी-नेहरू विरोधी विचारधारा के लोग शासन कर रहे हैं तथा सत्ता सुख भोग रहे हैं उस देश की 1947 में आर्थिक,औद्योगिक, शैिक्षिक, वैज्ञानिक तथा सामरिक स्थिति कितनी खस्ता रही होगी इस बात का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह पंडित नेहरू की दूरदृष्टि व उनकी आधुनिक सोच का ही नतीजा है जो आज हमें भाखड़ा नंगल डैम जैसे देश के सबसे पहले व सबसे बड़े विद्युत संयंत्र से लेकर देश की अनेकानेक भारी औद्योगिक इकाईयों के रूप में देखने को मिल रहा है।
जहां तक पंडित नेहरू व सरदार पटेल के मध्य मतभेदों को उछालने की बात है तो इस बात का गिला-शिकवा स्वयं सरदार पटेल या उनके परिवार के लोगों द्वारा नहीं बल्कि इसकी चिंता उन हिंदूवादी दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले नेताओं द्वारा ज़्यादा की जा रही है जिस विचारधारा के सरदार पटेल स्वयं सख्त विरोधी थे। सरदार पटेल व महात्मा गांधी दोनों ही पंडित जवाहरलाल नेहरू को देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। पंडित नेहरू ने स्वयं सरदार पटेल को देश के पहले गृहमंत्री के साथ-साथ उपप्रधानमंत्री का पद भी देकर उनका मान-सम्मान करने की कोशिश की थी। सरदार पटेल भी महात्मा गांधी व पंडित नेहरू की ही तरह भारत को किसी एक धर्म या जाति की पहचान रखने वाले देश के रूप में नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष भारत के रूप में देखना चाहते थे। सरदार पटेल ही थे जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या के पश्चात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को एक प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था। उनके इस फैसले से ही इस बात का अंदाज़ा हो जाता है कि वे भारतवर्ष को कट्टरपंथ या हिंदुत्ववाद की ओर ले जाने वाली ताकतों के कितने िखलाफ थे। परंतु आज सरदार पटेल की उस वास्तविक धर्मनिरपेक्ष सोच पर चर्चा करने के बजाए देश के लोगों को यही समझाने की कोशिश की जाती है कि नेहरू ने सरदार पटेल को नीचा दिखाया तथा उनके अधिकारों पर डाका डाला। खासतौर पर जब कभी गुजरात चुनाव के दौर से गुज़र रहा होता है उन दिनों यह राग कुछ ज़्यादा तेज़ी से अलापा जाने लगता है।
दरअसल इसकी एक वजह जहां यह है कि नेहरू-गाधी-पटेल धर्मनिरपेक्ष भारत के पक्षधर व पैरोकार थे वहीं यह नेता देश में सांप्रदायिक शक्तियों के विस्तार व इसकी मज़बूती को भी देश के लिए एक बड़ा खतरा मानते थे। महात्मा गांधी की हत्या उसी खतरे की पहली घंटी थी। दूसरी बात यह भी है कि इन दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी नेताओं के पास इनके अपने राजनैतिक परिवार में एक भी कोई ऐसा नेता नहीं है जिसपर यह गर्व कर सकें या जिसकी देश की स्वतंत्रता में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नज़र आती हो। लिहाज़ा इनकी नज़र बड़ी ही चतुराई के साथ ऐसे नेताओं तथा ऐसे विषयों पर रहा करती है जहां से इन्हें कुछ राजनैतिक लाभ हासिल हो सके। इसीलिए कभी यह सरदार पटेल को नेहरू द्वारा उपेक्षित नेता बताकर इसे गुजरात की अस्मिता का अपमान बताकर कांग्रेस के विरुद्ध इस मुद्दे को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की नाकाम कोशिश करते हैं तो कभी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर भी इन्हें कांग्रेस पार्टी व नेहरू परिवार द्वारा तिरस्कृत व उपेक्षित नेता दिखाई देने लगते हैं। आज जो भारतीय जनता पार्टी बहुमत की सरकार चला रही है उस भाजपा की जड़ें भारतीय जनसंघ में छुपी हुई हैं और भारतीय जनसंघ के संस्थापक नानाजी देशमुख थे। क्या सरदार पटेल व डा० अंबेडकर के हमदर्द यह लोग बता सकते हैं कि वे अपने संगठन के आदर्श पुरुष नानाजी देशमुख को कब और कितना याद करते हैं और उनके बताए हुए आदर्शों पर कितना चलते हैं?
1947 में सरदार पटेल 72 वर्ष के हो चुके थे और देश की ज़रूरत के एतबार से वे स्वयं अपने से लगभग 18 वर्ष छोटे पंडित नेहरू को देश के युवा एवं उर्जावान प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। ज़रा सोचिए कि आज अपने वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखाकर उन्हें राजनीति के हाशिए पर धकेलने वाले लोगों को सरदार पटेल में 1947 का प्रधानमंत्री तो दिखाई दे रहा है परंतु अपने गुरु अडवाणी जी उन्हीं लोगों को एक अवकाश प्राप्त राजनीतिज्ञ नज़र आ रहे हैं? वास्तव में इस प्रकार की ओछी व निरर्थक बातें तो सिर्फ देश के सीधे-सादे व भोले-भाले लोगों को गुमराह करने के लिए की जाती हैं। इन शक्तियों का नेहरू-गांधी से विरोध का कारण केवल और केवल यही है कि इन नेताओं ने देश की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में पूरी दुनिया को कराई। भारत के लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। लिहाज़ा चाहे गांधी हों या नेहरू देश के यह नेता एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक ऐसी महान विचारधारा के अलमबरदार हैं जिस पर चलकर भारतवर्ष पूरे विश्व में मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का हकदार बना हुआ है। दरअसल गांधी-नेहरू-पटेल-अंबेडकर ही भारतीयता की असली पहचान हैं और रहती दुनिया तक रहेंगे।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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