– वेलेन्टाइनी दोहे –
(1)
प्रेम दिवस के नाम से उठे ह्रदय में ज्वार
अपना भी हो जाय कुछ मन की यही पुकार !
(2)
फूलों की डलिया लिए जा पहुँचे बाजार
सुंदर इक बाला मिले स्वीकारे उपहार !
(3)
ऐसी इक भेजो प्रभु दे दिल का उपहार
हम भी सबके संग में कहलायें दिलदार!
(4)
कल पड़ जाये चित्त में ले बाँहों का हार
खुशियों के मेले लगें दिल का हो उपचार !
(5)
दोस्त ठिठोली कर रहे खींच टांग भरपूर
कैसे समझायें उन्हें दिल से हम मजबूर !
(6)
अपनी-अपनी संग लिए घूमें जोड़ीदार
इकली कोई है नहीं जिसको दें उपहार !
(7)
लगता यों ही जायगा प्रेम दिवस बेकार
हे प्रभु इक ही भेज दो बेडा जाये पार !
(8)
शाम हुई दिन ढल गया मिली न कोई नार
डलिया में बाकी रहे……… पूरे फूल हजार !
(9)
चपत हजारों की लगी प्रीत रीत के नाम
रहे न घर औ घाट के बाला मिली न नाम !
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डॉ० प्रद्युम्न कुमार कुलश्रेष्ठ
लेखक व् कवि
विविध पत्रिकाओं-प्रकाशनों-वेब पोर्टल आदि ने मेरी रचनाओं को स्थान देकर
मुझे अपना स्नेह दिया है !
कविता-दोहे-ग़ज़ल-नवगीत आदि सभी अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हैं !
इनके माध्यम से मैं अपनी बात कहने का प्रयास भर कर लेता हूँ !
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