– निर्मल रानी –
देश के हिंदूवादी संगठनों द्वारा खासतौर पर वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा जनता पार्टी एवं उसके संरक्षकों द्वारा महात्मा गांधी से लेकर पूरी कांग्रेस पार्टी तथा नेहरू-गांधी परिवार पर निशाना साधने के लिए सबसे बड़ा आरोप यही लगाया जाता रहा है कि यह भारतवर्ष में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला वर्ग है। यही कहकर गत् 70 वर्षों में इन्होंने देश के बहुसंख्य हिंदू समाज को धर्म के आधार पर अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश की है। इसमें इन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। परंतु सत्ता में आने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण का ढोल पीटने वाली यही भाजपा भले ही कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम तुष्टिकरण का दोषी ठहराती रही हो परंतु लगता है कि अब इस तथाकथित हिंदुत्ववादी विचारधारा रखने वाले संगठन को भी हिंदू हितों की रक्षा करने के बजाए मुस्लिम हितों की कुछ ज़्यादा ही चिंता सताने लगी है। अगस्त 2015 में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ‘सशक्तीकरण समागम’ के नाम से दिल्ली में बुलाए गए मुस्लिम समाज के एक सम्मेलन में यह घोषणा की थी कि आगामी 6 से 7 वर्षों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले देश के सभी मुस्लिम परिवारों को बीपीएल श्रेणी से ऊपर उठा दिया जाएगा। इस सम्मेलन में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी शिरकत की थी। भाजपा सरकार ने मुस्लिम समाज के लिए शिक्षण संस्थान खोलने तथा उनके आर्थिक,सामाजिक व शैक्षणिक विकास के लिए और भी कई योजनाएं शुरु करने की घोषणा की थी।
मुस्लिम समाज के प्रति हमदर्दी दिखाने का ही एक जीता-जागता उदाहरण पिछले दिनों संसद में उस समय देखने को मिला जब लोकसभा में तीन तलाक संबंधी विधेयक पारित कर दिया गया। नि:संदेह मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में प्रचलित तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे देने की यह प्रथा अत्यंत अमानवीय तथा भौंडी प्रथा है। हालांकि तलाक की इस प्रथा को दुनिया के अनेक मुस्लिम देशों में भी स्वीकार नहीं किया जाता। भारत में भी मुसलमानों का एक सीमित वर्ग ही इस व्यवस्था को मानता तो ज़रूर है परंतु तीन तलाक देने के उचित तरीकों पर अमल करने के बजाए इसका इस्तेमाल भौंडे,अनुचित तथा गलत तरीकों से करता है। जिससे तीन तलाक देने का यह तरीक़ा आलोचना का शिकार भी रहा है और हास्यास्पद भी बन चुका है। भारत में मुस्लिम समाज के विद्वानों और बुद्धिजीवियों में भी तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहकर तलाक दिए जाने के मुस्लिम मर्दोंं के एकाधिकार को लेकर दशकों से चिंतन होता आ रहा है। अधिकांश मुस्लिम समाज के उलेमा व बुद्धिजीवी भी इस व्यवस्था को पसंद नहीं करते और वे भी समय-समय पर इस विषय पर चिंतन करते रहे हैं तथा मुस्लिम समाज के लोगों को इस प्रथा से दूर रहने की हिदायत देते रहे हैं। परंतु लगता है कि दूसरों पर मुस्लिम तुष्टिकरण का इल्ज़ाम लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी को बहुसंख्य हिंदू समाज की महिलाओं की दुर्दशा से अधिक चिंता उन मु_ीभर मुस्लिम महिलाओं की हो गई जिन्हें मुसलमानों का एक वर्ग तलाक-तलाक-तलाक कहकर छोड़ दिया करता है।
इन दिनों लोकसभा से लेकर मीडिया तक तथा सार्वजनिक मंचों पर तीन तलाक से संबंधित चर्चा होती देखी जा रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस समय देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा केवल यही रह गया है। और मोदी सरकार के इन प्रयासों से ऐसा भी मालूम हो रहा है गोया भारतवर्ष में केवल तीन तलाक की शिकार तलाकशुदा महिलाएं ही सबसे अधिक ज़ुल्म,अत्याचार व बेबसी का शिकार हैं। शेष भारतीय समाज की महिलाएं पूरी तरह से प्रसन्नचित्त व सुखी हैं। हालांकि तीन तलाक विषय को लेकर कानून व शरिया संबंधी तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। भाजपा समर्थक इस विषय को मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की जीत के रूप में प्रचारित कर रहे हैं तथा मोदी सरकार को ऐसी महिलाओं का हमदर्द बता रहे हैं तो दूसरी ओर इस व्यवस्था का विरोध करने वाले व लोकसभा में इस बिल से दूरी बनाकर रखने वाले इसे मुस्लिम शरीया कानून में भाजपा का अनुचित हस्तक्षेप बता रहे हैं। राज्यसभा में इस बिल का क्या हश्र होगा यह तो भविष्य में पता चलेगा परंतु लोकसभा में अपने बहुमत के आधार पर इस विधेयक को पारित कराकर मोदी सरकार ने यह संदेश तो दे ही दिया है कि उसे हिंदू तलाकशुदा,विधवा,असहाय तथा अपने पतियों द्वारा अकारण छोड़ी गई महिलाओं से अधिक चिंता मुस्लिम महिलाओं की है। सवाल यह है कि क्या यह मुस्लिम महिलाओं का तुष्टिकरण नहीं है? तुष्टिकरण की वह परिभाषा जिसे भाजपा हमेशा कांग्रेस के लिए इस्तेमाल किया करती थी क्या भाजपा के लिए वह परिभाषा अब बदल चुकी है?
हैदराबाद के लोकसभा सदस्य असद्दुद्दीन ओवैसी ने संसद में इस विषय पर हो रही बहस के दौरान अपने भाषण में यह बताने की कोशिश की कि देश की कितनी हिंदू महिलाएं किन-किन दयनीय परिस्थितियों का सामना कर रही हैं। आज भारतवर्ष में सबसे अधिक विधवा,तलाकशुदा तथा अपने पतियों द्वारा बिना तलाक के छोड़ी गई महिलाएं हिंदू समाज से ही हैं। उन्होंने ‘गुजरात में मेरी भाभी’ कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धर्मपत्नी की ओर भी इशारा करते हुए याद दिलाया कि ऐसी महिलाओं के अधिकारों की बात भी होनी चाहिए जिन्हें उनके पतियों ने बिना तलाक दिए त्याग दिया है। सोशल मीडिया पर तो लोग स्मृति ईरानी से भी सवाल कर रहे हैं कि उनके पति ज़ुबिन ईरानी की उस पहली पत्नी मोना ईरानी के अधिकारों के बारे में स्मृति ईरानी का क्या विचार है जोकि आजकल तीन तलाक व्यवस्था के विरुद्ध पीडि़त मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में भाषण देती फिर रही हैं। आज वृंदावन में जाकर देखिए तो ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान कृष्ण की यह पावन नगरी हिंदू विधवा,वृद्ध तथा त्यागी गई महिलाओं का ‘महाकुंभ’ बन चुका है। मथुरा की सांसद हेमा मालिनी भी वृंदावन में हिंदू वृद्ध महिलाओं के इस भारी जमघटे पर अपनी चिंता ज़ाहिर कर चुकी हैं। इसी प्रकार वृंदावन,हरिद्वार अथवा बनारस जैसे किसी भी तीर्थस्थल पर जाकर देखें तो वहां आपको बड़ी संख्सा में हिंदू महिलाएं अपने भाग्य पर रोती तथा शारीरिक,मानसिक व आर्थिक यातनाएं सहती हुई दिखाई दे जाएंगी।
यदि वास्तव में मोदी सरकार सबका साथ-सबका विकास की बात करती है और मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करती है तो इन दोनों ही नज़रियों से तीन तलाक जैसे विषय को लोकसभा में लाना तथा इस व्यवस्था से प्रभावित मुस्लिम वर्ग की मु_ीभर महिलाओं के पक्ष में स्वयं को खड़े दिखाना पूरी तरह से गैर मुनासिब था। इससे पहले उन्हें या तो उस बहुसंख्य समाज की महिलाओं के हितों की िफक्र करनी चाहिए जिसकी वजह से उन्हें हिंदू हृदय सम्राट माना गया है। इसी प्रकार पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी अरब सरकार द्वारा चार वर्ष पूर्व 45 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को हज हेतु अकेले आ सकने की घोषणा का श्रेय लेने का प्रयास किया। दूसरी ओर इस विषय पर भी मुस्लिम विद्वानों के अनुसार किसी मेहरम पुरुष के साथ के बिना किसी महिला पर हज पर जाना जायज़ ही नहीं है। इन सब विवादित विषयों के उछालने से तो साफतौर पर यही प्रतीत होता है कि भाजपा सरकार का मकसद मुस्लिम समाज में स्वीकार्य संहिता अर्थात् शरिया में दखलअंदाज़ी करना तथा इससे छेड़छाड़ कर मुस्लिम समाज को उकसाना है। और यदि सरकार महिलाओं के प्रति वास्तव में हमदर्दी दिखा रही है तो उसे सभी महिलाओं को शिक्षित व सुरक्षित करने की चिंता करनी चाहिए। केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए िफक्रमंद होने का दिखावा करना और अपने विरोधियों पर मुस्लिम तुष्टिकरण का स्टिकर चिपकाने का तो यही अर्थ है कि -‘वह करें तो लीला हम करें तो पाप’?
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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