चलाओ खंजर या तलवार
कुछ नहीं कहूँगी
धकियाओ या करो प्यार
कुछ नहीं कहूँगी
बुलाओ पास औ’ करो तिरस्कार
कुछ नहीं कहूँगी
नाम कर्तव्य के जताओ अधिकार
कुछ नहीं कहूँगी
कीमत वसूलो औ’ कहो उपहार
कुछ नहीं कहूँगी
तुम आओ, आते रहो…और करते रहो वार
कुछ नहीं कहूँगी
एक तालीमयाफ्ता औरत हूँ मैं |
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वन्दना ग्रोवर
निवास ग़ाज़ियाबाद