आई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली
तारीख 5 सितंबर, समय लगभग सुबह के 8 बजकर 5 मिनट। 31 साल के कपिल तनेजा को जब अचानक शरीर के दाएँ हिस्से को हिलाने में परेशानी महसूस होने के साथ साथ बोलने में भी दिक्कत हुई तो घर के लोगों में घबराहट फ़ैल गयी। सब के सब सकते में थे क्योंकि कपिल को न तो उच्च रक्तचाप था, न डायबिटीज़, और न ही ह्रदय की कोई बीमारी। उन्हें तो धूम्रपान की भी आदत नहीं थी और न ही परिवार में भी स्ट्रोक का कोई मरीज़ था।
लेकिन जब अस्पताल में दाख़िला करते ही उनका प्लेन सीटी स्कैन किया गया तो लेफ्ट साइड स्ट्रोक के उभरने की संभावना दिखी जिसे स्ट्रोक प्रोटोकॉल
एमआरआई ने पक्का कर दिया। चूंकि यह स्ट्रोक का संकेत था, उनका इलाज तुरंत शुरू किया गया और थ्रोम्बोलिसिस यानी मेकैनिकल थ्रोम्बेकोटॉमी द्वारा क्लॉट सक्शन तथा क्लॉट डिसॉल्विंग उपचार के साथ-साथ उन्हें अन्य दवाइयाँ दी जाने लगीं।
आज कपिल न सिर्फ बिना किसी सहारे के चल-फिर सकते हैं बल्कि उनके बोलने और समझने की क्षमता भी करीब-करीब पूरी तरह वापस लौट चुकी है। वे अब लिख सकते हैं, गा सकते हैं और अपनी पूरी दिनचर्या बिना किसी मदद के कर सकते हैं। और तो और वे अब वापस अपने काम पर जाने की भी सोच रहे हैं। उनमें यह सुधार सिर्फ इसलिए आ सका क्योंकि उनके ब्रेन स्ट्रोक की सही समय पर पहचान और समय रहते उचित इलाज कर लिया गया था।
भारत में आज ब्रेन स्ट्रोक के 15 से 30 प्रतिशत मरीज 45 वर्ष से कम की आयु के हैं। इससे होने वाली स्थायी या लम्बे समय की विकलांगता और अस्वस्थता को सही समय पर की जाने वाली पहचान और उचित इलाज से ही रोका जा सकता है। नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के न्यूरोलॉजी चिकित्सक, डॉ. साहिल कोहली कहते हैं, अगर कपिल के इलाज में एक और घंटे की देरी हो जाती तो उन्हें स्ट्रोक और उससे होने वाली स्थाई विकलांगता से बचाया नहीं जा पाता। स्ट्रोक के लक्षणों को आसानी से पहचानने के लिए अंग्रेज़ी में एक शब्द का निर्माण किया गया है – फ़ास्ट (एफ़ – फेस ड्रॉपिंग – यानी चहरे के मूवमेंट में अचानक हुई परेशानी, ए – आर्म वीकनेस – यानी हाथों में अचानक कमज़ोरी आना, एस – स्पीच डिफिकल्टी – यानी जुबान में लड़खड़ाहट और टी – टाइम – यानी 4.5 घंटे के भीतर रोगी को एक ऐसे अस्पताल में पहुँचाना जहाँ चौबीस घण्टे सीटी स्कैन की सुविधा हो)।
डॉ. साहिल कोहली नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के अनुसार, सबसे ज़रूरी है 4.5 घंटे के भीतर रोगी को अस्पताल पहुँचाना और स्ट्रोक की शुरुआत के 3 घंटे के भीतर उसका उचित इलाज । अतः 29 अक्टूबर 2018 के विश्व स्ट्रोक दिवस की पूर्व संध्या पर यह सलाह दी जाती है कि इस भयानक बीमारी से बचने के लिए शब्द को याद कर लिया जाए ताकि स्ट्रोक की सही समय पर पहचान की जा सके और पहचान होते ही रोगी को बिना किसी देरी के एक ऐसे अस्पताल पहुंचाया जा सके जहाँ थ्रोम्बोलिसिस – दवाइयों द्वारा क्लॉट डिज़ॉल्यूशन, मेकैनिकल थ्रोम्बेक्टोमी – मेकैनिकल क्लॉट रिट्रीवल और सक्शन जैसे ब्रेन स्ट्रोक का आधुनिक इलाज संभव हो ताकि रोगी को स्थाई विकलांगता से बचाया जा सके।