हमारे देश में अनेक ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया है जिनके कारनामे, उनकी जीवनशैली तथा उनकी जि़दगी के मकसद ने उनके व्यक्तित्व को महान बना दिया। अकबर, अशोक, महारानी लक्ष्मीबाई, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी आदि ऐसे कई नाम हैं जिन्हें भारतवर्ष में महान अथवा महापुरुषों की श्रेणी में गिना जाता है। हालांकि इन लोगों ने स्वयं ऐसी कोई इच्छा नहीं रखी कि कोई इन्हें महान, महात्मा या महापुरुष कहे। बजाए इसके इनकी अपनी कारगुज़ारिय इनकी तपस्या,त्याग,साहस व बलिदान ही कुछ ऐसे थे कि भारतवासी इन्हें महापुरुष या महान आत्मा कहने से स्वयं को नहीं रोक सके। पिछले दिनों देश ने सुभाषचंद्र बोस की सहयोगी रह चुकी आज़ाद हिंद फौज की एकमात्र महिला कैप्टन लक्ष्मी सहगल जैसी महान शख्सियत को खो दिया। निश्चित रूप से कैप्टन लक्ष्मी सहगल को महानता के इस शिखर तक ले जाने में उनके महान माता-पिता की शिक्षाओं व उनके संस्कारों का भी योगदान था। महान गांधीवादी एवं स्वतंत्रता सेनानी अम्मु स्वामीनाथन के चेन्नई स्थित आवास में 24 अक्तूबर 1914 को लक्ष्मी स्वामीनाथन का जन्म हुआ था। ज़ाहिर है वह एक तमिल परिवार से थीं। परंतु इसे उनके माता-पिता की दूरदर्शिता तथा उनकी व्यापक सोच का ही परिणाम कहा जाएगा कि उन्होंने 1947 में लाहौर में कर्नल प्रेम कुमार सहगल के साथ अपनी बेटी लक्ष्मी स्वामीनाथन का विवाह कर दिया और वह लक्ष्मी स्वामीनाथन से लक्ष्मी सहगल बन गईं।
इसी प्रकार अम्मु स्वामीनाथन की दूसरी बेटी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई हैं। मृणालिनी ने भी देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई से विवाह रचाया। गोया एक तमिल परिवार की दो बेटियां जिनमें एक का विवाह पंजाबी परिवार में हुआ तो दूसरी का गुजराती परिवार में। गोया राष्ट्रीय एकता की इससे बेहतरीन मिसाल और कहां मिल सकती है। लक्ष्मी सहगल के पिता अम्मु स्वामीनाथन महात्मा गांधी के अनुयायी थे तथा उनकी गांधीवादी अहिंसक आंदोलन चलाने की नीतियों से इत्तेफाक रखते थे। परंतु उनकी बेटी लक्ष्मी ने 1938 में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1943 में सिंगापुर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस से संपर्क साधा तथा उन्हीं के कहने पर 2 जुलाई 1943 को रानी झांसी ब्रिगेड की स्थापना कर डाली। वे नेताजी द्वारा गठित की गई आज़ाद हिंद मंत्रिमंडल में भी शामिल रहीं। आज़ाद हिंद मंत्रिमंडल में शामिल वे अकेली महिला सदस्या थीं। रानी झांसी ब्रिगेड की कमान संभालने के बाद अंगे्रज़ों से लड़ते हुए लक्ष्मी सहगल ने आज़ाद हिंद फौज में जहां घायलों की तीमारदारी की, उनका इलाज किया वहीं उन्होंने गुरिल्ला युद्ध तकनीक व अन्य कई युद्ध कौशल का भी ज़बरदस्त प्रदर्शन किया। सुभाष चंद्र बोस की विशिष्ट सहयोगी होने के साथ-साथ उनमें महात्मा गांधी के प्रति भी पूरी श्रद्धा थी।
क्योंकि वे जानती थी कि गांधी जी हों या नेताजी सुभाषचंद्र बोस दोनों ही का लक्ष्य एक ही था। और वह था अंग्रेज़ों के हाथों से भारत को मुक्त कराना। वे गांधीजी व नेताजी के मध्य के उस ‘मतभेदÓ में नहीं पडऩा चाहती थीं जिसमें कि अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष की शैली को लेकर इन दोनों महान नेताओं में मतैक्य नहीं होना बताया जाता है। इसलिए उनकी नज़र में दोनों ही वरिष्ठ थे, समान थे, तथा महान थे। यही वजह है कि स्वतंत्रता के बाद भी लक्ष्मी सहगल कई बार साबरमती स्थित गांधी आश्रम गईं और वहां जाकर उन्होंने महात्मा गांधी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। निश्चित रूप से यह एक महान सेनानी का महान सेनानी को किया गया नमन ही कहा जाएगा।
97 वर्ष की आयु में अपना शरीर त्यागने वाली डा० लक्ष्मी सहगल ने कानपुर के प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ डा० महमूद रहमानी को अपना नेत्रदान किए जाने की वसीयत तो की ही थी। साथ-साथ उन्होंने कानपुर के एस एन मेडिकल कॉलेज में मरणोपरांत अपना देहदान किए जाने की भी घोषणा कर दी थी। जैसे ही डा० रहमानी को डा० लक्ष्मी सहगल के देहांत का समाचार मिला वे उसी दिन अर्थात् 23 जुलाई को ही डा० सहगल की आंखों का कॉर्निया लेने हॉस्पिटल जा पहुंचे। इसके पश्चात 24 जुलाई के दिन डा० सहगल की आंखों का कॉर्निया डा० रहमानी के हाथों दो नेत्रहीनों 55 वर्षीया रामप्यारी व 15 वर्षीया बबली की आंखों में प्रत्यारोपित कर दिया गया। गोया स्वतंत्रता की लड़ाई देखने वाली आंखों से अब बबली व रामप्यारी संसार के दर्शन कर सकेंगी। उनका शरीर भी उनकी वसीयत के अनुसार एस एन मेडिकल कॉलेज,कानपुर में दान कर दिया गया।
गौरतलब है कि लक्ष्मी सहगल जहां स्वतंत्रता पूर्व देश को स्वतंत्र कराने के लिए दिन-रात संघर्षरत रहीं तथा अंग्रेज़ों द्वारा कई बार गिरफ्तार व प्रताडि़त भी की गईं वहीं स्वतंत्रता के बाद भी वे देश के लोगों की निस्वार्थ सेवा का एक महान प्रतीक बनी रहीं। उन्होंने हमेशा ग़रीबों विशेषकर गऱीब महिलाओं का नि:शुल्क इलाज किया। इतना ही नहीं बल्कि वह अपने गऱीब मरीज़ों को कपड़े-लत्ते, दवाईयां तथा उन्हें आर्थिक सहायता भी पहुचाती रहती थीं। गोया उनका पूरा जीवन देश और देशवासियों की सेवा में गुज़र गया। यहां तक कि मरणोपरांत भी वे अपनी आंखें व अपना शरीर आम लोगों की भलाई के लिए दान की गईं।
डा० लक्ष्मी सहगल जैसी महान स्वतंत्रता सेनानी के निधन के बाद ज़ाहिर है देश का दूसरा महान वैज्ञानिक डा० एपीजे अब्दुल कलाम खामोश कैसे बैठ सकता था। लक्ष्मी सहगल के निधन के अगले ही दिन उन्होंने डा० सहगल की पुत्री सुभाषिनी अली को पत्र लिखकर डा० लक्ष्मी सहगल के निधन पर दु:ख व्यक्त किया। डा० कलाम ने अपने पत्र में लिखा कि राष्ट्रनिर्माण में डा० लक्ष्मी सहगल के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। नि:स्वार्थ रूप से दूसरों का दु:ख-दर्द मिटाने हेतु उनकी सेवाओं को भी डा० कलाम ने अत्यंत सराहनीय बताया। ज़रा सोचिए कि 2002 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डा० लक्ष्मी सहगल डा०एपीजे अब्दुल कलाम के मुकाबले में वामपंथी दलों की उम्मीदवार थीं। परंतु उसके बावजूद निश्चित रूप से वे महान थीं तथा उनके अंदर की महानता को डा० कलाम जैसा महान वैज्ञानिक भलीभांति पहचानता था। डा० कलाम की इन्हीं नज़रों ने मरणोपरंत डा० सहगल के प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने हेतु उन्हें विवश किया।
अब आईए स्वयं को इसी श्रेणी में ला खड़ा करने का प्रयास करने वाले कुछ ऐसे ही स्वयंभू महान लोगों के कार्यकलाप भी देख लिए जाएं। पश्चिम बंगाल में 25 वर्षों तक एकछत्र राज करने वाले हरदिल अजीज़ मुख्यमंत्री ज्योति बसु जैसे नेता का देहांत होता है तथा वे भी अपनी वसीयत के अनुसार अपना शरीर दान कर देते हैं। देश और दुनिया के तमाम लोग विशिष्ट, अतिविशिष्ट व जनसाधारण तो उनकी मौत पर आंसू बहाते हैं तथा उनकी अंतिम यात्रा में शरीक होने की कोशिश करते हैं परंतु वहां की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी एक ऐसी स्वयंभू महान नेता हैं जोकि ज्योति बसु के मरणोपरांत भी न तो उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचती हैं न ही उनकी शवयात्रा में शामिल होती हैं।
ज़ाहिर है ममता के ऐसा करने से ज्योति बसु की महानता तो हरगिज़ कम नहीं हुई हां ममता द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली उनकी स्वयंभू महानता पर प्रश्रचिन्ह ज़रूर लग गया। अपने लाख राजनैतिक विरोध होने के बावजूद यदि ममता बैनर्जी ज्योति बसु की अंत्येष्टि या उनकी शव यात्रा में शामिल होती तो निश्चित रूप से आम लोग इसे ममता का बड़प्पन ही समझते। परंतु उन्होंने ऐसा न कर स्वयं को स्वयंभू रूप से महान दर्शाने का ही प्रयास किया। पिछले दिनों हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में भी यही सब देखने को मिला। एक ओर तो प्रणव मुखर्जी संप्रग के द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने से लेकर राष्ट्रपति चुने जाने तक सादगी एवं विनम्रता की प्रतिमूर्ति बने नज़र आते रहे तो दूसरी ओर एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर राष्ट्रपति पद तक पहुंचने की जुगत भिड़ा रहे पी ए संगमा स्वयंभू रूप से महान बनने के चक्कर में न जाने कैसे-कैसे राजनैतिक समीकरण बिठाते रहे।
हद तो यह रही कि सांगमा को जब उनकी अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अपनी ओर से उम्मीदवार नहीं घोषित किया तो वे भाजपा के ‘गोद लिए’ उम्मीदवार बन बैठे। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने उन्होंने स्वयंभू रूप से अपने को देश का सबसे बड़ा आदिवासी नेता तक स्थापित करने का प्रयास किया। अपनी तुलना बराक ओबामा के निर्वाचन से स्वयं करने लगे। कभी सोनिया गांधी से माफी मांगते देखे गए तो कभी बाद में उन्हीं की आलोचना करते नज़र आए। चुनाव के दौरान सांगमा कभी प्रणव मुखर्जी के नामांकन पर उंगली उठाते तो कभी चुनाव परिणाम घोषित हो जाने के बाद भी चुनाव के परिणामों पर सवाल उठाते नज़र आए। देश में समय-समय पर ऐसे और भी तमाम अवसर आते रहते हैं जबकि देश वास्तविक महान तथा स्वयंभू महानों के बीच के अंतर को देखता, सुनता व समझता रहता है। परंतु हकीकत में महान कौन होता है इसका फैसला तो दरअसल जनता ही करती है और जनता का यह फैसला किसी व्यक्ति की त्याग, तपस्या, बलिदान,संघर्ष व उसकी कारगुज़ारियों पर ही आधारित होता है।
**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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