तनवीर जाफ़री**,,
पूरी दुनिया में भारतवर्ष की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में बनी हुई है। भारतीय संविधान भी धर्मनिरपेक्षता का पूरी तरह पक्षधर है। और स्वतंत्रता से लेकर अब तक वर्तमान यूपीए सरकार के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस पार्टी को ही देश की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का संरक्षण करने वाला सबसे बड़ा राजनैतिक दल माना जाता रहा है। परंतु जिस प्रकार यूपीए 2 के शासनकाल में एक के बाद एक घोटाले तथा कीर्तिमान स्थापित करने वाले भ्रष्टाचारों की घटनाएं सामने रही हैं उससे निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी को निरंतर आघात पर आघात लगता जा रहा है। धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर जो लोग कांग्रेस पार्टी को ही देश में शासन करने के लिए सबसे योग्य राजनैतिक दल समझते थे वही आम लोग भ्रष्टाचार, घोटाले तथा उसपर नियंत्रण पा सकने में कांग्रेस की नाकामी के चलते अब स्वयं कांग्रेस से मुंह फेरते दिखाई दे रहे हैं। ज़ाहिर है ऐसे में देश का मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ‘बिल्ली के भाग से छीका टूटने’ की प्रतीक्षा में घात लगाए बैठा दिखाई दे रहा है।
परंतु भारतीय जनता पार्टी के साथ दिक्क़त इस बात की भी है कि भाजपा देश के समक्ष स्वयं को भ्रष्टाचार मुक्त तथा देश को स्वच्छ,ईमानदार, घोटालामुक्त शासन दे पाने के लिए प्रमाणित नहीं कर पा रही है? इसका भी कारण यही है कि जिस प्रकार कांग्रेस व यूपीए के अन्य कई घटक दलों में भ्रष्टाचार में संलिप्त नेता देखे जा रहे हैं, उन्हें मंत्रीपद अथवा अन्य प्रमुख पद छोडऩे पड़े हैं, उन्हें जेल की हवा तक खानी पड़ी है, ठीक उसी प्रकार भाजपा के भी तमाम नेता मायामोह में उलझकर अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। हालांकि भाजपा स्वयं को बेदाग़ ,साफ़-सुथरा तथा भ्रष्टाचार मुक्त दिखाने के लिए कभी अन्ना आंदोलन के साथ खड़ी दिखाई देने की कोशिश करती है तो कभी बाबा रामदेव के आंदोलन में पिछले दरवाज़े से अपनी अहम भूमिका अदा करती दिखाई देती है। परंतु बीच में जब कभी अरविंद केजरीवाल जैसे सामाजिक कार्यकर्ता कांग्रेस व भाजपा दोनों को ही एक नज़र से देखने की कोशिश करते हैं उस समय भाजपा के किए-धरे पर पानी फिर जाता है। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों मुख्य महालेखाकार की रिपोर्ट के बाद उजागर हुए कोयला ब्लॉक आबंटन के संबंधी कथित घोटाले को लेकर इंडिया अगेंस्ट कॉरप्पशन के कुछ कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस व भाजपा को एक ही छड़ी से हांकने की कोशिश की। उस समय दोनों ही राजनैतिक दल बेनक़ाब होते दिखाई दिए।
राजनैतिक विशेषक भी भाजपा द्वारा संसद की कार्रवाई न चलने देने के लिए भाजपा को ही संदेह की नज़रों से देख रहे हैं। विशेषकों का मानना है कि संसद में बहस के दौरान चूंकि कोल ब्लॉक आबंटन से जुड़े दस्तावेज़ों को संसद के पटल पर रखे जाने के पश्चात दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा और सभी भ्रष्टाचारियों व धनार्जन में लगे राजनीतिज्ञों के चेहरे बेनकाब हो जाएंगे इसलिए भाजपा संसद में इस मुद्दे पर कोई बहस कराना ही नहीं चाह रही है। शायद यही वजह है कि टेलीविज़न के स्टूडियो में बैठकर, पत्रकार वार्ताओं के द्वारा, आलेखों के माध्यम से भाजपा किसी तरह मात्र अपने तर्कों के आधार पर यूपीए सरकार से अधिक कांग्रेस पार्टी पर ही निशाना साध रही है। और इसी मंशा के तहत लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कोल ब्लॉक आबंटन प्रकरण के हवाले से कांग्रेस पर ‘मोटा माल’ खाने तक का आरोप लगा दिया है। भाजपा संसद के बाहर रहकर केवल सार्वजनिक बयानबाज़ी व मीडिया के माध्यम से ही दबाव डालकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफ़े की बात कर रही है। परंतु राजनीति के महारथी दोनों ही दलों के मंझे हुए राजनेता एक-दूसरे की नीयत, उनके मक़सद व उनकी चालों को बखूबी समझ रहे हैं। गौरतलब है कि 2जी घोटाले के दौरान भी विपक्ष द्वारा विशेषकर भाजपा द्वारा पी चिदंबरम से त्यागपत्र देने की मांग इस हद तक की जा रही थी कि आए दिन संसद का बहिष्कार व संसद ठप्प करने जैसे हालात पैदा हो रहे थे। उस समय भी कांग्रेस ने पूरी दृढ़ता के साथ भाजपा के इन हथकंडों का विरोध किया था। और आख़िरकार पिछले दिनों सुब्रमणियम स्वामी द्वारा 2जी मामले में ही पी चिदंबरम के विरुद्ध दायर की गई एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चिदंंबरम को क्लीन चिट दे डाली। अब यदि हम पीछे मुडक़र देखें तो चिदंबरम के इस्तीफ़े की मांग को लेकर संसद में पैदा किया गया गतिरोध महज़ एक ड्रामा, सोची-समझी साजि़श या भाजपा का एक षड्यंत्र मात्र ही प्रतीत होता है।
बहरहाल इन हालात में यह कहा जा सकता है कि यदि देश के आम लोग सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी से इसलिए दु:खी हैं कि वर्तमान सरकार के शासनकाल में जहां मंहगाई बेतहाशा बढ़ी है वहीं भ्रष्टाचार और घोटालों ने भी स्वतंत्रता से लेकर अब तक के सबसे बड़े कीर्तिमान बना डाले हैं। परंतु कांग्रेस की छवि इतनी $खराब होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी स्वयं को कांग्रेस पार्टी के विकल्प के रूप में पेश नहीं कर पा रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को पिछले दरवाज़े से नियंत्रित करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने प्राचीन व चिरपरिचित ढर्रे पर भी सक्रियता से काम कर रहा है। गत् दो दशकों से जिस गुजरात राज्य को संघ की प्रयोगशाला कहा जा रहा था लगता है वह संघ अब अपने गुजरात के परिणामों से संतुष्ट है तथा अब इसी $फार्मूले का विस्तार करना चाह रहा है। यानी अंग्रेज़ों की नीति पर अमल करना,-बांटो और राज करो। भारतीय जनता पार्टी में लाल कृष्ण अडवाणी जैसे वरिष्ठतम नेताओं के राजनीति में सक्रिय रहते हुए नरेंद्र मोदी जैसे तुलनात्मक रूप से कम वरिष्ठ नेता का प्रधानमंत्री पद के लिए नाम उछाला जाना इस बात का सुबूत है। गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी की छवि अल्पसंख्यक समाज में, उदारवादी व धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले बहुसंख्यक समाज में तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैसी बन चुकी है इसे यहां दोहराने की ज़रूरत नहीं है। मोदी के विषय में केवल दो ही बातें का$फी हैं। यह हमारे देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनका अमेरिका में प्रवेश वर्जित है। दूसरी बात यह कि नरेंद्र मोदी के रूप में ऐसा पहला मुख्यमंत्री देखा जा रहा है जिसे उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के ही एक प्रमुख सहयोगी जनता दल युनाईटेड के बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार अछूत समझते हैं तथा उनके कहने पर वे बिहार में चुनाव प्रचार में दाखिल तक नहीं हो पाते।
परंतु मोदी की इस छवि को लेकर मोदी के पक्ष में रणनीति तैयार करने वाले लोग संघ के एजेंडे पर काम करते हुए मोदी के पक्ष में वातावरण तैयार करने हेतु कुछ दूसरे हथकंडों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें एक तो नरेंद्र मोदी को विकास पुरुष के रूप में पेश किया जा रहा है। गुजरात को सडक़,बिजली, पानी के क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य प्रचारित किया जा रहा है। और इस प्रचार में देशी तथा विदेशी प्रोपे्रगंडा कंपनियों की सहायता ली जा रही है जिसपर अरबों रुपये गुजरात के सरकारी ख़ज़ाने से लुटाये जा रहे हैं। मोदी के पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए संघ एक और हथकंडा यह अपना रहा है कि वह अपने बुद्धिजीवियों, बौद्धिक प्रकोष्ठ से जुड़े लेखकों व टिप्पणीकारों से देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को चुनौती देने वाले लेख लिखने तथा इस दिशा में बहस को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। कहा जा सकता है इस प्रकार की दक्षिणपंथी विचारधारा हमारे देश के संविधान को खुली चुनौती देती है। नरेंद्र मोदी द्वारा किसी कार्यक्रम में किसी इमाम के हाथों पहनाई जाने वाली टोपी पहनने से इंकार कर देना या उसका स्कार्फ़ स्वीकार करने से मना कर देना अथवा अपने साक्षात्कार में यह कहना कि यदि मैं गुजरात दंगों का गुनहगार हूं तो मुझे फांसी पर लटका दो या फिर गुजरात दंगों के लिए मा$फी मांगने से उनका बार-बार इंकार करना यह सब महज़ एक इत्तेफ़ाक़ नहीं है बल्कि यह सभी चालें सोची-समझी रणनीति के तहत चली जाने वाली चालें हैं। उसी रणनीति के तहत बोली जाने वाली बातें व साक्षात्कार हैं। गोया सांप्रदायिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण का गुजरात जैसा ही राष्ट्रव्यापी प्रयास।
उपरोक्त राजनैतिक परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा करती हैं कि जिस प्रकार देश की इन दो प्रमुख राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों ने भ्रष्टाचार व सांप्रदायिकता के विषय पर देश के समक्ष अपनी छवि को दागदार बनाया है उसे देख कर लगता है कि कहीं धर्मनिरपेक्षता का परचम संभावित तीसरे मोर्चे के हाथों में न चला जाए। अब सवाल यह है कि तीसरे मोचे का स्वरूप कैसा होगा, इसका गठन 2014 के चुनावों के पहले होगा या चुनाव परिणाम आने के बाद की परिस्थितियां इसे तय करेंगी? यह संभावित धर्मनिरपेक्ष मोर्चा 2014 के चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी को समर्थन देकर पुन: कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार का गठन करने हेतु राज़ी होगा या अपने क्षेत्रीय दलों के भीतर ही किसी एक नेता को मोर्चे का नेता चुनकर कांग्रेस पार्टी से स्वयं सरकार बनाने के लिए समर्थन मांगेगा यह बातें तो चुनाव का समय नज़दीक आते-आते काफ़ी हद तक स्पष्ट होती जाएंगी। परंतु यह तो लगभग तय माना जा सकता है कि नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री क़तई नहीं होने वाले। न ही कांग्रेस पार्टी के सत्ता में वापसी के आसार नज़र आ रहे हैं। ऐसे में 2014 के आम चुनाव में भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता व धर्मनिरपेक्षता के बीच ज़बरदस्त घमासान होने की पूरी संभावना है।
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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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