*भारत और अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण विकास संगठन नए क्षितिजों की तलाश में

*देबाजानी बक्षिपात्रा

                           भारत ने अफ्रीका के अनेक देशों की राजनीतिक मुक्ति के संघर्ष में शीर्ष भूमिका निभाई है। महात्‍मा गांधी ने एक बार कहा था कि ”भारत का दिल अफ्रीका के लिए लालायित रहता है।” साझा इतिहास, मुद्दों की समानता एवं चुनौतियां और भौगोलिक-राजनीतिक कारणों से भारत अफ्रीकी देशों के साथ हमदर्दी एवं सहयोग का मजबूत अनुयायी रहा है। बांडुंग से निर्गुट तक के स्‍वर्णकाल और दक्षिण-दक्षिण सहयोग के शिखर तक भारत प्रत्‍येक संभावित क्षेत्र में इस क्षेत्र के देशों के मध्‍य नजदीकी संबंध और सामूहिक पहुंच के लिए सदैव तैयार रहा है।

      अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण विकास संगठन (एएआरडीओ) विशेष सौहार्द का शिखर है और यह एशिया और अफ्रीका के मध्‍य ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सहयोग को मजबूती प्रदान करने व नवीनता का पता लगाता है और प्रभावी अर्थोपाय का समाधान भी करता है। आरडो अफ्रीकी-एशियाई क्षेत्र में ग्रामीण विकास के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग के यथाशीघ्र  उदाहरणों में से एक है। यह एक स्‍वायत्‍तशासी अंतर-सरकारी संगठन है।

      इस क्षेत्र के देशों में तेजी से बढ़ते हुए शहरीकरण के बावजूद अभी भी औसतन 68 प्रतिशत जनसंख्‍या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। विश्‍व की दो तिहाई से अधिक जनसंख्‍या इस क्षेत्र में ही रहती है। यह भी विरोधाभास है कि विश्‍व के तीन चौथाई गरीब लोग भी यहीं रहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि गरीबी एक वैश्विक सच्‍चार्इ है, लेकिन यह विश्‍व के प्रत्‍येक क्षेत्र को समान रूप से प्रभावित नहीं करती है। पूरे विश्‍व में 2.7 बिलियन व्‍यक्ति दो डॉलर प्रतिदिन से कम आय पर गुजारा करते हैं और 1.1 बिलियन व्‍यक्ति एक डॉलर प्रतिदिन से कम आय पर जिंदा रहते हैं।

      उप-सहारा अफ्रीका में लगभग पचास प्रतिशत जनसंख्‍या एक डॉलर प्रतिदिन से कम आय में गुजारा करती है। विश्‍व के 48 सर्वाधिक गरीब देशों में से 32 देश इस क्षेत्र में स्थित हैं। इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व एशिया में विश्‍व के लगभग आधे लोग रहते हैं। 1.3 बिलियन जनसंख्‍या में से 85 प्रतिशत लोग दो डॉलर प्रतिदिन से कम आय में गुजारा करते हैं। पूर्वी एशिया/प्रशांत क्षेत्र में 1.8 से 2 बिलियन लोग निवास करते हैं, जिससे यह क्षेत्र पृथ्‍वी पर सबसे अधिक जनसंख्‍या वाला क्षेत्र बन गया है। लगभग पचास प्रतिशत जनसंख्‍या यहां भी दो डॉलर प्रतिदिन से कम आय पर गुजारा करती है।

      इस प्रकार सामान्‍य रूप से पूरा अफ्रीकी-एशियाई क्षेत्र और विशेष रूप से इस क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग घोर गरीबी से पीडि़त हैं। गरीबी का असर मानवाधिकारों, सम्‍मान और विकास पर होता है। इस क्षेत्र के अनेक देशों में हुए अनेक संघर्ष सीधे तौर पर इसी घोर गरीबी की देन हैं। वैश्विक भागीदारी के माध्‍यम से पृथ्‍वी से घोर गरीबी और संबद्ध कारणों को समयबद्ध रूप से 2015 तक समाप्‍त करने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र ने आठ मि‍लेनियम विकास लक्ष्‍य (एमडीजी) अपनाए हैं। प्राकृतिक अनुमान के रूप में आरडो ने अपनी 2007 की नई दिल्‍ली घोषणा में आरडो सदस्‍य राष्‍ट्रों के मध्‍य और आने वाले वर्षों में अन्‍य देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय रूप से अनुमत मिलेनियम विकास लक्ष्‍यों को अपनाने और ग्रामीण विकास के लिए सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने पर सहमति व्‍यक्‍त की थी।

      आरडो का मुख्‍य उद्देश्‍य सदस्‍य देशों में एक-दूसरे की समस्‍याओं के बेहतर मूल्‍यांकन के लिए सूझबूझ को प्रोत्‍साहन देना रहा है। इन उद्देश्‍यों को अनुभव करने के लिए आरडो तीन वर्षीय आधार पर अनेक संयुक्‍त कार्यक्रमों को लागू कर रहा है। 2006-08 के तीन वर्षों के दौरान आरडो की वर्तमान गतिविधियों को मजबूती प्रदान करने के लिए जो प्रयास किए गए हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं – प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं, सेमीनार, विशेषज्ञों को प्रतिनियुक्ति पर भेजना, पायलट परियोजनाओं का विकास, सूचना प्रसार और इसके साथ-साथ नए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, क्षेत्रीय स्‍तर पर कार्यशालाएं/सेमीनार, अध्‍ययन भ्रमण, कार्य अनुसंधान अध्‍ययन, तकनीकी कार्यक्रमों पर विचार-विमर्श और मूल्‍यांकन करने के लिए प्रशिक्षणों संस्‍थानों के प्रमुखों और क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की बैठकें आदि। आरडो का उद्देश्‍य विश्‍व बैंक, एशियाई विकास बैंक (एडीबी), अफ्रीकी विकास बैंक (एएफडीबी) जैसे वित्‍तीय एवं अन्‍य विशिष्‍ट संस्‍थानों से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिए वित्‍तीय एवं तकनीकी सहायता प्राप्‍त करने के लिए सदस्‍य राष्‍ट्रों की सहायता करना भी है।

                  एएआरडीओ का अन्‍य प्रमुख क्षेत्र उचित अंतर्राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग है। इनमें संयुक्‍त राष्‍ट्र की एजेंसियां तथा विकसित और विकासशील देशों में सरकारी एवं गैर-सरकारी स्‍तर के राष्‍ट्रीय निकाय शामिल है। इसका उद्देश्‍य ऐसे कार्य करना है जिनसे ग्रामीण विकास की गति तेज हो। एएआरडीओ किसानों और अन्‍य ग्रामीण सहकारी संगठनों सहित लोगों के विकास में सहायता करना भी है ताकि सदस्‍य देशों में ग्रामीण विकास को तेज किया जा सके। इस पृष्‍ठभूमि में कि भारत का कृषि और ग्रामीण पुनर्निर्माण के क्षेत्र में अनुभव और असाधारण सफलता एएआरडीओ के सदस्‍य देशों के लिए महत्‍वपूर्ण है। इन सदस्‍य देशों में से कई ऐसे है जो अभी भी इस बारे में संघर्ष कर रहे है कि भूख, प्‍यास, निरक्षरता, बीमारी और गरीबी समाप्‍त करके अपने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की गति को कैसे तेज किया जा सकता है।

      स्‍वतंत्रता प्राप्ति के समय से हमारी उत्‍तरोतर सरकारों का एक सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण कार्य हमारे लाखों गांवों का विकास करना रहा है जहां हमारे 70 प्रतिशत से अधिक लोग रहते है। इस खाई को पाटने की तात्‍कालिकता को देखते हुए पंचवर्षीय योजनाएं तैयार की गई और ग्रामीण पुनर्निर्माण के आदर्श कार्य पूरे किए गये। तौर-तरीके, रणनीति, अनुकूलन और संछेदी को परिवर्तित किया गया है और उनमें तालमेल बैठाया गया, परन्‍तु मुख्‍य जोर ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन-स्‍तर में सुधार लाने पर रहा। 10वीं पंचवर्षीय योजना में भारत के मानव विकास के लक्ष्‍यों की रूपरेखा तैयार की गई और आगामी 5 से 10 वर्ष के लक्ष्‍य तैयार किये गये। इनमें से अधिकांश मिलेनियम विकास लक्ष्‍यों से संबद्ध है और उनसे कहीं अधिक  महत्‍वकांक्षी है। इनमें से सर्वप्रथम भारत निर्माण है जो 2015 तक ग्रामीण मूलभूत विकास के विशिष्‍ट लक्ष्‍यों के कार्यक्रम जैसा एक समयबद्ध कार्यक्रम है।

      ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए नए जोश और नये लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के लिए दृष्टिकोण में परिवर्तन की आवश्‍यकता है। इसलिए ग्रामीण विकास कार्यक्रम में आवश्‍यकता आधारित महत्‍वपूर्ण परिवर्तन किया गया। यह बजट पर आधारित नहीं था। ये कार्यक्रम सार्वभौम लक्ष्‍यों को ध्‍यान में रखकर शुरू किये गये। ग्रामीण विकास का नया मंत्र समावेशी विकास को बढ़ाना है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश आबादी को देश में हो रहे विकास और उन्‍नति का एक अभिन्‍न अंग बनाना है।

      गरीबी उन्‍मूलन और ग्रामीण आबादी को भूख के अभिशाप से मुक्‍त कराने के बारे में भारत की चिंता उसकी राष्‍ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है। क्‍योंकि भारत सदा विश्‍वास करता है कि गरीबी अविभाज्‍य है और यह समुदायों तथा राष्‍ट्रों के बीच संघर्ष का अकेला सबसे बड़ा कारण है और इसलिए इसे जोरदार तरीके से हल करने की आवश्‍यकता है।

      अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण विकास संगठन (एएआरडीओ) के 1962 में गठन से एशिया और अफ्रीका के सामाजिक और राजनीतिक नेताओं की दूरदृष्टि को कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में इन देशों के बीच सहयोग की आवश्‍यकता को पहचानने को रेखांकित करता है। यह संगठन पहले अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण पुनर्निर्माण संगठन के नाम से जाना जाता था। कोपनहेगन घोषणा-पत्र बताता है कि गरीबी, ‘’अनाज, स्‍वच्‍छ पेयजल, साफ-सफाई, स्‍वास्‍थ्‍य, आवास, शिक्षा और सूचना सहित मानवीय मूलभूत आवश्‍यकताओं के गंभीर उन्‍मूलन जैसी स्थिति है’’।

      इसलिए समय आ गया है कि एएआरओडी को सुदृढ़ बनाया जाए ताकि यह कोपनहेगन घोषणा-पत्र द्वारा परिभाषित ग्रामीण गरीबी को दूर करने के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपना सके। इससे इसके मिशन और उद्देश्‍यों को गरीबी शब्‍द के अर्थ के क्षेत्र से बाहर ले जाया जा सकेगा। यह अफ्रीका और एशिया के अनेक देशों को एक जुट करके प्राप्‍त किया जा सकता है जो अभी भी एएआरडीओ के सदस्‍य नहीं है और इसके दायरे का भी विस्‍तार करना होगा।

      नई दिल्‍ली में 5 और 6 मार्च, 2012 को आयोजित किया जा रहा एएआरडीओ का स्‍वर्णजयंती समारोह अपने 29 सदस्‍य राष्‍ट्रों को अपने अनुभव बांटने और सहयोग के नये क्षेत्रों का पता लगाने के लिए एक अनुकूल मंच और नया उत्‍साह प्रदान करेगा।

नोट: इस लेख में लेखक द्वारा व्‍यक्‍त विचार उसके अपने है और यह जरूरी नहीं कि वे आई.एन.वी.सी के विचारों को प्रतिबिम्‍बित करें।

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