**भाजपा का भ्रष्टाचार विरोध: नाटक या हक़ीक़त

**निर्मल रानी
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों से पूर्व राज्य की राजनीति में तूफान बरपा हो चुका है। राज्य में बड़े पैमाने पर दलबदल हो रहा है। सभी दल अपने-आप को मज़बूत करने में जुटे हैं। सत्तारुढ़ बहुजन समाज पार्टी स्वयं को मज़बूत करने के बजाए राज्य में एक नया प्रयोग यह कर रही है कि वह अपने नेताओं से अधिक मतदाताओं पर आश्रित रहने जैसा प्रयोग कर रही है। इसी सिलसिले में मायावती ने बड़े ही अप्रत्याशित रूप से अपने कई मंत्रियों तथा तमाम विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इनमें अधिकांश लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे। जबकि कुछ नेता अपराधी प्रवृति के भी बताए जा रहे है। चुनाव पूर्व जबकि आमतौर पर पार्टियां व उनके हाईकमान अपने दलों के ‘स्वागत द्वार’ खोल देते हैं ऐसे में बीएसपी का अपने नेताओं के निष्कासन का दांव चलना वास्तव में राजनैतिक विशेषकों को हैरानी में डाले हुआ है। चुनाव परिणाम आने पर यह देखने वाली बात होगी कि बसपा सुप्रीमो एवं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा चुनाव पूर्व उठाए जाने वाले इस प्रकार के हैरतअंगेज़ क़दम  उन्हें फ़ाएदा पहुंचाएंगे या नुक़सान ? बहरहाल मायावती के यह सभी क़दम अपनी पार्टी के ‘छवि सुधार अभियान’ के तहत उठाए जा रहे हैं।

मायावती ने अपने जिन कई मंत्रियों को मंत्रिमंडल से पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है उनमें एक बहुचर्चित नाम बाबू सिंह कुशवाहा का भी है। कुशवाहा उत्तर प्रदेश के परिवार कल्याण मंत्री रहे हैं। इन पर राज्य के एक मुख्य चिकित्सा अधिकारी की हत्या से लेकर अरबों रुपये के घोटाले किए जाने तक के आरोप हैं। जिनमें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थय मिशन(एनआरएचएम) घोटाला प्रमुख है। हालांकि अभी तक मुख्यमंत्री मायावती कुशवाहा को न केवल संरक्षण देती रही हैं बल्कि राज्य सरकार उन पर लगने वाले सभी आरोपों पर उनका बचाव भी करती रही है। परंतु चुनाव घोषित होते ही मायावती ने कुशवाहा की ओर से अपनी आंखें फेर लीं तथा उन्हें भ्रष्ट मंत्री बताते हुए पार्टी से बाहर निकाल फेंका। दरअसल कुशवाहा के इस समय निष्कासन का असली राज़ यह है कि उनपर सीबीआई का शिकंजा कसता ही जा रहा था तथा आए दिन उनके घर व उनसे संबंधित ठिकानों पर सीबीआई के छापे पडऩे की संभावना बढ़ती जा रही थी। यदि मायावती मंत्रिमंडल के सदस्य रहते हुए कुशवाहा के ठिकानों पर छापे पड़ते तो निश्चित रूप से इससे मायावती व उनकी पार्टंी की साख गिरती जिसका लाभ बीएसपी विरोधी उठाने की कोशिश करते। राजनीति की परिपक्व एवं माहिर खिलाड़ी हो चुकी मायावती ने अपनी दूरदर्शिता से उस संभावित राजनैतिक नज़ारे को भांप लिया तथा चुनाव की पूर्व बेला में पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले उस समय की प्रतीक्षा किए बिना कुशवाहा को पार्टी व मंत्रिमंडल से बाहर निकाल फेंका।

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के अनुसार पहले तो कुशवाहा ने कांग्रेस में दाखिल होने का प्रयास किया जिसे पार्टी ने अस्वीकार कर दिया। परंतु अपने घटते जनाधार से परेशान भारतीय जनता पार्टी ने आनन-फानन में बाबू सिंह कुशवाहा जैसे महाभ्रष्ट समझे जाने वाले पूर्व मंत्री को अपने दल में जगह दे दी। हालांकि यह और बात है कि भाजपा में अपने प्रवेश पर उठे बवंडर के चलते कुशवाहा ने स्वयं को $िफलहाल भाजपा से दूर रखने की घोषणा कर दी है। परंतु पार्टी में प्रवेश के समय जब पत्रकारों ने भाजपा के महामंत्री मुख्तार अब्बास न$कवी से यह पूछा कि एक भ्रष्ट नेता को भाजपा में कैसे स्वीकार किया जा रहा है इस सवाल के जवाब में उन्होंने बड़ी शान के साथ यह फरमाया कि ‘गंदा नाला जब गंगा में आ मिलता है तो वह भी पवित्र हो जाता है’। उनके इस वक्तव्य पर समस्त उपस्थित मीडिया कर्मी बड़ी ज़ोर का ठहाका मारकर हंस पड़े। मीडिया से बात करते समय असहज दिखाई देने वाले नकवी भी मीडिया कर्मियों के ठहाके से अपना ठहाका मिलाकर अपनी झेंप मिटाने की कोशिश करने लगे। अब ज़रा न$कवी के इस रक्षात्मक वक्तव्य की समीक्षा की जाए तो यही नज़र आता है बाबू सिंह कुशवाहा को वे स्वयं गंदा नाला ही स्वीकार करते हैं स्वच्छ जल प्रवाह नहीं। दूसरी बात यह कि उनका यह तर्क बिल्कुल गलत है कि नालों के गंगा जी में मिलने से नाले पवित्र हो जाते हैं। बल्कि सच्चाई तो केवल यही है कि गंदे नालों नेे गंगा जैसी पवित्र नदी को भी बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है और गंगा में फैले इस प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु सरकार क्या-क्या उपाय कर रही है यह नकवी साहब को भी भलीभांति पता होना चाहिए। केवल भाजपा की गंगा से तुलना करने का ढोंग करने मात्र से भाजपा पवित्र नहीं हो जाएगी ।

बड़े आश्चर्य की बात है कि कुछ ही दिनों पूर्व लालकृष्ण अडवाणी ने अपनी जनचेतना यात्रा समाप्त की है। इस यात्रा में भी भ्रष्टाचार उनका प्रमुख मुद्दा था। हालांकि उस यात्रा के दौरान भी उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर उस समय प्रश्रचिन्ह लग गए थे जबकि यात्रा प्रबंधकों द्वारा मध्य प्रदेश के सतना जि़ले में पत्रकारों को प्रेस ब्रीफंग करने के साथ-साथ लिफाफे में रखकर रुपये भी बांटे गए। उसी समय देश के लोगों को यह एहसास हो गया था कि अडवाणी की जनचेतना यात्रा व उसके माध्यम से केंद्र की संप्रग सरकार के विरुद्ध उठाए जाने वाली भ्रष्टाचार विरोधी आवाज़ महज़ एक नाटक है जोकि देश के मतदाताओं को दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। और इस नाटक पर पिछले दिनों उस समय और पक्की मोहर लग गई जबकि बाबू राम कुशवाहा व उन जैसे और कई भ्रष्ट व दागी दलबदलू नेताओं को पार्टी में ससम्मान जगह दी जाने लगी। अब जबकि कुशवाहा से संबंधित विभिन्न राज्यों के लगभग 50 ठिकानों पर छापेमारी की कार्रवाई हुई तथा कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं जोकि अपेक्षित व संभावित थीं तो तिलमिलाई हुई भाजपा अब अपनी खीझ मिटाने के लिए यह कहती दिखाई दे रही है कि कुशवाहा के विरुद्ध हो रही छापेमारी की कार्रवाई में केंद्र सरकार व मायावती की मिलीभगत है।

बहरहाल, यह तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे कि मायावती अपनी पार्टी के ‘सफाई अभियान’ के चलते सत्ता की बाज़ी पुन: मार ले जाती हंै या ‘गंदे नालों’ का स्वागत कर भाजपा रूपी तथाकथित गंगा उत्तर प्रदेश का उद्धार करने की हैसियत में आने का सपना पूरा कर पाती है। या फिर राज्य की सत्ता की सबसे मज़बूत दावेदार समझने वाली समाजवादी पार्टी स्वयं को सत्ता प्राप्त करने योग्य मज़बूत कर पाती है। अथवा कोई नया राजनैतिक गठबंधन चुनाव उपरांत नज़र आता है। परंतु एक बात तो तय है कि जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने दागयों, अपराधियों व भ्रष्टाचारियों के लिए चुनाव पूर्व अपने दरवाज़े खोल दिए हैं, उससे भाजपा की छवि एक बार फिर दा$गदार हुई है। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि अपनी काबिलियत तथा अपनी स्वच्छ छवि के चलते संसद सत्र के दौरान सुषमा स्वराज व अरुण जेटली जैसे पार्टी के विपक्ष के नेतागण पार्टी की छवि को सुधारने व दल के राजनैतिक ग्रा$फ को ऊपर ले जाने का काम करते हैं, सत्र खत्म होते ही नितिन गडकरी, मुख़्तार अब्बास नकवी व विनय कटियार जैसे नेतागण अपने गलत फैसलों, बेतुकी बयानबाजि़यों व निराधार तर्कों के चलते उस बनाई गई छवि को चौपट करने में लग जाते हैं।

और जब देश यह देखता है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सदाचार, ईमानदारी, शिष्टाचार तथा अनुशासन जैसी लच्छेदार बातें करने वाली भाजपा बाबू राम कुशवाहा जैसे महाभ्रष्ट नेताओं को अपने साथ शामिल करने में कोई दिक्क़त महसूस नहीं कर रही है, तब देश की जनता एक बार फिर यह सोचने को मजबूर हो जाती है कि यह पार्टी जोकि स्वयं को दीनदयाल उपाध्याय व श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी बताती है, वह वास्तव में उनके आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है या फिर यह पार्टी अभी भी अपने पूर्व पार्टी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण व पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की भ्रष्ट संस्कृति में शराबोर है? और जब ऐसी स्थिति पैदा होती है तो संप्रग सरकार के दौरान फैले भ्रष्टाचार से निपट पाने की भाजपा की क्षमता पर स्वयं ही सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। मतदाता व देश की जनता प्राकृतिक रूप से यह सोचने लगती है कि भाजपा आखिर भ्रष्टाचारियों को गले लगाकर भ्रष्टाचार का मुकाबला किस प्रकार कर सकती है? और यही हालात जनता को यह सोचने के लिए भी मजबूर कर देते हैं कि लाख भ्रष्ट होने के बावजूद संप्रग तथा विशेषकर कांग्रेस पार्टी का कोई ऐसा विकल्प नहीं है जोकि अपने आप में ईमानदार हो, बेदाग हो, अपराधमुक्त हो तथा देश को ईमानदार, प्रभावी व स्वच्छ शासन देने की क्षमता रखता हो।

**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City  134002
Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC


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