{ सोनाली बोस } शादी विवाह सिर्फ सामाजिक गठबंधन या मात्र रीतिरिवाज नहीं हैं बल्कि इंसानी सभ्यता में संतुलन बनाएं रखने का सबसे उत्तम माध्यम है ! आज भारतीय समाज के साथ – साथ दुनिया भर के दूसरे ऐसे समाज जो भारतीय परिपेक्ष्य से एक दम अलग थलग है वह सब भी अब औरतो के अधिकार और बहुशादी या कई शादी प्रथा या व्यवस्था पर चर्चा करने लगे हैं ! ये चर्चा दुनिया की आधी आबादी के पूरे हक़ में है ऐसा भी नहीं है !
जब दुनिया में राजशाही का बोलबाला था तब औरतो का सबसे ज़्यादा शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ ! तब राजाओ और महाराजाओं के बाकायदा बड़े – बड़े हरम और ऐशगाह होती थी और इन हरम और एशगाहो में महिलाओं की स्तिथी कितनी दयनीय थी ये बात पहले से ही जग ज़ाहिर है ! पुरुष प्रधान व्यवस्था ने महिलाओं के शोषण में कभी कोई कोर कसर नहीं छोडी !यह महिलायों के शोषण का सबसे दुखद पहलू रहा होगा जब एक महिला का शोषण भगवान के नाम पर करने की प्रथा का जन्म पुरुष प्रधान व्यवस्था ने कर दिया ! इस पुरुष प्रधान व्यवस्था ने मंदिरों में देवदासी प्रथा का चलन शुरू करके महिलाओं का सामूहिक तौर पर शोषण करने का एक नया रास्ता खोज निकाला था और इन देव दासिओं की समाज में स्तिथि कैसी और कितनी बदतर रहीं होगी इस बात का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है ! देव दासी प्रथा पर भी कई बार चर्चा हो चुकी है जिसका हल आज तक नहीं निकला !
आज हम सब २१ वी सदी में अपना जीवन यापन कर रहें हैं और मंगल ग्रह पर जीवन बसाने की कवायद में मशगूल हैं तब भी आज औरतो के मामले में पुरुष प्रधान व्यवस्था में कोई बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं आया हैं !
लिव इन रिलेशन पर न्यायपालिका के एक फैसले के बाद जहां एक ओर कई बच्चों और औरतो को सहारा मिला है साथ ही उनका भविष्य भी सुरक्षित हुआ है तो वहीँ दूसरी ओर इस बात को भी बल मिलता है कि सामाजिक व्यवस्था शादी ,विवाह को नज़र अंदाज़ करके फिर सदियों पुरानी व्यवस्था को एक नया कानूनी जामा पहना कर एक बार फिर ज़िंदा कर दिया है ! यह फैसला महिलाओं के हक़ में कम और पुरुषो के हक़ में ज़्यादा जाता दिखाई दिया है, मुंबई के अलावा देश कई और राज्यों में ऐसे मामले सामने आएं हैं कि जो पुरुष लिव इन रिलेशन में रह रहा था वह पहले से ही शादी शुदा था और अपनी पत्नी के साथ साथ अपने बच्चे की ज़िम्मेदारी से भाग रहा था !
अब सवाल ये उठता हैं कि क्या लिव इन रिलेशन पर न्यायपालिका ने अपना यह अहम फैसला देते वक़्त इस बात का ख्याल रखा था कि अगर कोई पति किसी दूसरी महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में आ जाता हैं तो उसकी पहली पत्नी और बच्चो के साथ साथ पूरे परिवार क्या फ़र्क़ पडेगा और साथ ही जब इस लिव इन रिलेशन की वजह से पैदा होने वाली संतानो का क्या होगा ? अगर पुरुष लिव इन रिलेशन के बाद अपनी लिव इन रिलेशन पार्टनर को छोड़ कर किसी और के साथ लिव इन रिलेशन में रहने चला जाता हैं तो पहली पार्टनर और बच्चो का क्या भविष्य होगा ? क्या मात्र चंद रूपये और गुजारा भत्ता या फिर जायदाद में हिस्सेदारी किसी महिला और लिव इन रिलेशनशिप की वजह से पैदा हुए बच्चे के लिये काफी हैं क्या ? बहुत सारे ऐसे अनसुलझे सवाल हैं जिन पर आज नहीं तो कल न्यायपालिका को एक बार फिर कोई अहम फैसला देना ही होगा !
पुरुषवादी व्यवस्था ने अपनी सुविधा के अनुसार अपने लिये क़ानून बनाए और मिटाए हैं ! सती प्रथा भी इसी मानसिकता का जीता जागता उदहारण था ! पुरुषवादी व्यवस्था ने अपनी सुविधा के लिये और महिलाओं के शोषण के लिये बहुविवाह प्रथा के चलन को पहले सामाजिक तौर पर बनाए रखा और इस आधी आबादी को कभी भी विरोध करने या अपनी बात रखने का न कभी कोई हक़ ही दिया था न ही अपनी समस्या, परेशानी ,दुःख और तकलीफ रखने के लिए कोई मंच ही दिया था ! पुरुषवादी व्यवस्था ने जैसे चाहा वैसे महिलाओं को अपने हिसाब से इस्तेमाल किया !
बहुविवाह एक सामजिक बीमारी हैं जिसका इलाज आज २१ वी सदी में भी संभव नहीं हो पाया है ! जबकि कानूनी तौर पर यह भी साफ़ है कि दूसरी पत्नी को भारतीय सविधान में कोई जगह नहीं है और न ही कोई कानूनी मान्यता ही है ! फिर भी आज भारतीय समाज में पुरुष अपनी पहली पत्नी में , कोई न कोई कमी निकाल कर ,अँधेरे में रख कर ,या फिर धोखा देकर भी जब किसी पुरुष को दूसरी शादी का मार्ग नहीं मिलता हैं तो सबसे आसन और सुलभ मार्ग ” धर्म परिवर्तन ” करके दूसरी शादी बे रोक टोक तरीके से कर लेता हैं ! धर्म परिवर्तन की आड़ में पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी के बहुत सारे उदाहरण फिल्म इंडस्ट्री के साथ साथ राजनितिक गलियारों मौजूद हैं जिस पर क़ानून और समाज के साथ साथ पहली पत्नी और पुरुष का परिवार भी मूक दर्शक का अपना रोल अदा करते हैं ! धर्म परिवर्तन और पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी पर भी आज नहीं तो कल सरकार के साथ न्यायपालिका और मज़हबी व धार्मिक गुरुओं को कोई न कोई फैसला लेना ही पडेगा ! क्योकि पुरुष अपनी लालसा और अभिलाषा को पूरा करने के लिए धर्म आड़ भी लेने से नहीं चूकता है ! जबकि यह बात भी जग जाहिर है कि दोनों महिला व् पुरुष धर्म परिवर्तन करके शादी तो कर लेते हैं पर जिस धर्म की आड़ में इस कुप्रथा का पालन करते हैं उस धर्म को कभी नहीं अपनाते हैं न ही उसका पालन करते हैं सिर्फ और सिर्फ धर्म का सहारा दुसरी शादी करने के लिए लिया जाता रहा हैं ! कुल मिलाकर पुरुष दूसरी शादी का मार्ग खोज ही लेता है बिना इस बात की परवाह किये बगैर कि पहली पत्नी और बच्चों का क्या होगा !
ऐसा भी नहीं है की जिन धर्मो में एक से ज्यादा विवाह ,शादी ,निकाह का चलन प्रचलन मौजूद है उन धर्मो में पहली ,दूसरी, तीसरी या चौथी पत्नी की स्तिथि कोई संतोष जनक रही होई ऐसा भी नहीं बल्कि यहाँ तो महिलाओं का और भी अधिक शोषण होता है ! क्योकि दूसरी शादी का डर कहीं न कहीं पहली पत्नी के मन में हमेशा घर किये रहता है साथ ही पुरुष एक के बाद एक कई शादियाँ करके या बहू – विवाह करे बगैर भी पत्नि का बहू – विवाह के नाम पर मन मुताबिक़ शोषण करता हैं !
आज भारत में एक बहुत बड़ी संख्या उन महिलाओं की मौजूद है जो इस बहू – विवाह कुप्रथा की वजह से अपना जीवन हाशिये पर जीने को मजबूर हैं ! हैरानी की बात यह है कि इस बहुविवाह की पीडिता कोई अब गाँव व देहात की अनपढ़ महिलाएं ही नहीं बल्कि पढ़ी लिखी खुदमुख्तार बहुत सी महिलायें भी मौजूद हैं जो अपने घर परिवार या फिर इज्ज़त की दुहाई के नाम पर इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने से कतराती रहीं हैं ! इस कुप्रथा का पालन करने वालों में न सिर्फ गाँव व देहात के अनपढ़ रूढ़ीवादी पुरुष शामिल हैं बल्कि पढ़े लिखे ,सत्ता में मौजूद सरकार चलाने और क़ानून बनाने वाले पुरुष भी शामिल हैं !
अब सवाल ये उठता है कि जब इस कुप्रथा का पालन क़ानून और संविधान बनाने और चलाने वाले पुरुष ही कर रहे हैं तो इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज़ फिर कौन उठाने की हिम्मत करेगा? गांधी जी ने कहा था कि ज़ुल्म करने वाला और ज़ुल्म सहने वाला दोनों ही बराबर के दोषी हैं ! इस कुप्रथा की कामयाबी के पीछे एक बहुत बड़ा हाथ उन सभी पढ़ी लिखी ,खुदमुख्तार महिलाओं की चुप्पी का भी है जो इस कुप्रथा से पीड़ित तो हुई पर समाज ,घर परिवार की वजह से अपनी आवाज़ के साथ साथ अपना हक़ भी किसी और के साथ बंट जाने पर भी अपनी आवाज़ को दबाए रखा ! इस कुप्रथा का विनाश तब तक संभव नहीं है जब तक अनपढ़ -दबी कुचली महिलाओं के साथ साथ क़ानून बनाने वाली और सरकार चलाने वाली पीड़ित महिलाओं की आवाज़ उस यदा-कदा उठने वाली आवाज़ से नहीं मिलेगी तब तक हालातो में बहुत ज़्यादा सुधार की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आती है !
दुसरी शादी या बहू – विवाह प्रथा पर फिर से समाज के साथ साथ महिलाओं और न्यायपालिका को पुनर्विचार करने की ज़रुरत है ! लिव इन रिलेशन पर न्यायपालिका को कोई न कोई ऐसा कदम उठाना चाहिये जिससे कम से कम यह सुनिश्चित हो जाए कि लिव इन रिलेशन में रहना वाला पुरुष या महिला पहले से विवाहित न हों और दोनों में से किसी के बच्चे तो कदापि न हों ! दुसरी शादी और धर्म परिवर्तन पर भी न्यायपालिका ,समाज, मजहबी और धर्म गुरुओ को कोई न कोई सख्त कदम उठाना चाहिए जिससे यह भी सुनिश्चित हो जाए कि धर्म मजहब की आड़ में दूसरी शादी का कोई मामला तो नहीं हैं !
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सोनाली बोस
उप – सम्पादक
अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगमSub – Editor
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उप – सम्पादक
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
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संपर्क – : sonali@invc.info & sonalibose09@gmail.com
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सोनाली जी आपको साधुवाद ,आपने सच में कमाल का लेख लिखा हैं ! हरियाणा में चर्चा के साथ साथ अब शायद कोर्ट जाने की भी बात तय हो गई हैं !आपने सच में बहुत सारे संगठनों के झोलों में मुददा डाल दिया हैं
Good post. I am dealing with a few of these issues as well..
आपने महिलों के पक्ष में लेख लिखा हैं विपक्ष में अभी तय नहीं कर पा रहीं पर अब आपके लेख की कारण बहुत सारे संगठनों के को मुददा तो मिल ही गया हैं ! अब यह चर्चा बहुत दूर तक जाएगी इस बात का यकीन मुझे हो चला ! बधाई हो जिस मुददे को आजतक किसी भी बुद्धिजीवी को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं हुई थी आपने उसकी धज्जियाँ उधेड़ दी हैं ! शायद सभी बुद्धिजीवी आपकी तरहा एक चेहरे वाली ज़िंदगी नहीं जीते हैं !
सोनाली बोस जी बधाई हो आपका लेख ने अखिल भारतीय हिन्दू महा सभा को इस मुददे को उठाने मजबूर कर दिया हैं ! हिन्दू महा सभा ने लिव इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठानी शुरू कर दी हैं ! आपका लेख सच में बहुत दूर की बात कर रहा हैं ! अभी एक संगठन ने मांग उठाई हैं शायद अब दुसरे संगठन भी आगे आयेंगे ! आपकी सोच और कलम को दिली बधाई !
महिला आयोग के साथ सरकार और न्यायपालिका को भी इस लेख को पढ़ना चाहये ! आपने जो सवाल उठाए हैं वह आज नहीं तो कल मुददा बनके समाज के सामने जरूर आएँगे ! धन्यवाद सहित !
आपने जो मुददा अभी उठाया हैं उस पर आज तक किसी न ए नहीं सोचा आज नहीं तो कल न्यायपालिका को अपने फैसले में तबदीली करनी ही पड़ेगी !शानदार लेख !!
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अगर पुरुष लिव इन रिलेशन के बाद अपनी लिव इन रिलेशन पार्टनर को छोड़ कर किसी और के साथ लिव इन रिलेशन में रहने चला जाता हैं तो पहली पार्टनर और बच्चो का क्या भविष्य होगा ? –
prasn bahut Vicharneeya hai
Lekhika ko sadhuwad