प्राचीनतम होते हुए भी संस्कृत में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के मूल सूत्र विद्यमान हैं : डा0 विजय कर्ण

sanskritआई एन वी सी,,
लखनऊ,,
संस्कृत भाषा संस्कार, नैतिकता, प्रेम और सदाचार की भाषा है। संस्कृत का अध्ययन करने वाला व्यक्ति भविष्य में जीविका का साधन तो प्राप्त कर ही लेगा साथ ही उसे सुख एवं शान्ति भी प्राप्त होगी।लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो0 ओम प्रकाश पाण्डेय ने ये विचार उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा वसन्त पंचती के अवसर पर आयोजित समारोह में व्यक्ति किये। इस अवसर पर विद्यान्त डिग्री कालेज के डा0 विजय कर्ण ने कहा कि प्राचीनतम होते हुए भी संस्कृत में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के मूल सूत्र विद्यमान हैं। कानपुर से आई डा0 नवलता वर्मा ने कहा कि संस्कृत की लिपि देवनागरी है, इसमें शब्दों को जैसा लिखते हैं वैसा ही बोलते भी हैं। संस्थान के निदेशक श्री डी0 एस0 श्रीवास्तव ने भी संस्कृत भाषा के महत्व के बारे में अपने विचार व्यक्त किये।इस अवसर पर कक्षा 6 से इण्टर अथवा समकक्ष तक के छात्र@छात्राओं की बालकथा कौमुदी पुस्तक से संस्कृत वाचन तथा बी0 ए0 एवं एम0 ए0@समकक्ष छात्र@छात्राओं की शिवराज विजय एंव कादम्बरी के शुकनाशोपदेश से संस्कृत श्रुत लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। शाम्भवी कर्ण को प्रथम, आदर्श विद्यामन्दिर की छात्रा जया सिंह को द्वितीय तथा आदर्श विद्या मन्दिर के ही छात्र अविरल सिंह को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। सैट डोमनिक के उत्कर्ष सिंह को सान्त्वना पुरस्कार दिया गया। पुरस्कार स्वरूप क्रमशः 1000 रूपये, 800 रूपये, 500 रूप्ये तथा 300 रूपये की धनराशि के साथ प्रमाण पत्र एवं संस्थान द्वारा प्रकाशित बाल साहित्य की चार-चार पुस्तकें संस्थान के निदेशक श्री डी0 एस0 श्रीवास्तव द्वारा पुरस्कृत छात्रों को प्रदान की गई।इस अवसर पर संस्थान के अधिकारियों सहित प्रो0 ओम प्रकाश पाण्डेय, डा0 नवलता वर्मा, डा0 ब्रज भूषण ओझा तथा डा0 अशोक शतपथी उपस्थित थे।-

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here