प्रशासनिक कुप्रबंधन के कारण जन-असुविधाएं एवं क्षति

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{ निर्मल रानी ** } हमारा देश में इस समय जहां राष्ट्रीय स्तर पर तमाम राष्ट्रीय राजमार्ग, उपमार्ग, नगरों, क़स्बों व महल्लों की सडक़े ं व गलियां, तमाम बड़े से लेकर छोटे तक $फ्लाईओवर बन रहे हैं वहीं स्थानीय स्तर पर लगभग प्रत्येक नगरीय व उपनगरीय आबादियों के मध्य अनेक प्रकार के सरकारी व $गैर सरकारी संस्थानों द्वारा टेली$फोन के केबल भी बिछाए जा रहे हैं। कहीं दूर संचार से जुड़े केबल तार तो कहीं इंटरनेट ब्राडबेंड जैसी सुविधाओं से युक्त केबल का जाल बिछाया जा रहा है। इसी के साथ-साथ पूरे देश के जिन-जिन क्षेत्रोंं में सीवर योजना नहीं है वहां-वहां भूमिगत सीवर पाईप बिछा कर प्रत्येक घर के शौचालयों को उनसे जोडऩे की योजना पर भी तेज़ी से काम किया जा रहा है।construction1.
जिन शहरों या $कस्बों में नालों से बहने वाले गंदे पानी की सही निकासी नहीं है या बरसात के दिनों में ड्रेनेज व्यवस्था ठप्प हो जाती है ऐसे में आम लोगों के घरों व दुकानों में तथा सडक़ों पर गंदा पानी इक_ा हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए तमाम शहरों में ड्रेनेज व्यवस्था में सुधार किए जा रहे हैं। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत तमाम स्थानों पर भू-तलीय ड्रेनेज व्यवस्था का भी सहारा लिया जा रहा है। जल आपूर्ति विभाग भी समय-समय पर अपनी आवश्यकता के अनुसार तथा जनता की ज़रूरतों के अनुरूप अथवा मुरम्मत आदि की गरज़ से जगह-जगह ज़मीन की खुदाई करता रहता है। हालांकि उपरोक्त सभी कार्य जनता की सुविधाओं के लिए किए जाते हैं तथा इन सभी कार्यों का निरंतर चलते रहना निश्चित रूप से व्यवस्था के सुचारू संचालन एवं देश के विकास एवं प्रगति का प्रतीक है। परंतु इसी के साथ-साथ यह भी देखा जा रहा है कि विकास के नाम पर होने वाले यही कार्य न केवल आम जनता के लिए परेशानियों का कारण बन रहे हैं बल्कि इन पर सरकारी पैसों व सरकारी कर्मचारियों के बहुमूल्य समय का भी का$फी नु$कसान हो रहा है। और इन सब का मुख्य कारण है अलग-अलग सरकारी विभागों में नए निर्माण अथवा मुरम्मत जैसे कार्यों को लेकर परस्पर तालमेल व सामंजस्य का स्थापित न होना।
उदाहरण के तौर पर शहरों,$कस्बों तथा गांवों में बनने वाली सीमेंटेड सडक़ों व गलियों को ही ले लें। गत् वर्षों में लगभग सभी शहरों व $कस्बाई आबादी वाले क्षेत्रों में सीमेंटेड सडक़ें व गलियां बिछाई गईं। आमतौर पर सभी जगहों पर इन सडक़ों व गलियों को पत्थर,बजरी व मिट्टी डालकर पहले तो ऊंचा किया गया। उसके पश्चात उसके ऊपर मामूली सीमेंट का मसाला डालकर सडक़ को चिकना-चुपड़ा बनाकर उसे आकर्षक व ‘दर्शनीय’ बना दिया गया। सरकारी विभाग एवं ठेकेदारों की मिलीभगत का परिणाम यह हुआ कि इन सडक़ों व गलियों के ऊंचा होने से तमाम $गरीबों व आम लोगों के मकानों का स्तर नीचा हो गया। तथा गलियां व सडक़ें ऊंची हो गर्इं। नतीजन बरसात के दिनों में सडक़ों से नीचे के स्तर के मकानों में पानी भरने लगा।
इसी प्रकार की और भी समस्याएं ऐसी सिर उठा रही हैं जो आम लोगों के लिए का$फी परेशानी खड़ी कर रही हैें। उदाहरण के तौर पर आए दिन किसी न किसी के टेली$फोन कनेक्शन $खराब हो जाते हैं। कभी सडक़ों के नीचे से पानी की पाईप लाईन से रिसता हुआ पानी सडक़ों पर इक_ा होता दिखाई देता है। जब संबद्ध विभाग के किसी अधिकारी से इस विषय पर बात करें तो वह इन समस्याओं का ठीकरा दूसरे विभाग के सिर पर फोडऩे की कोशिश करता है। और जब समस्या की वास्तविकता जानने का प्रयास करें तो इन अधिकारियों का दूसरे विभागों पर लगाया जाने वाला आरोप भी का$फी हद तक सही प्रतीत होता है। मिसाल के तौर पर टेली$फोन व इंटरनेट में आई $खराबी के लिए जब बीएसएनएल के अधिकारियों से शिकायत की जाती है तो वे अलग-अलग तरह की समस्या बताते हैं। किसी क्षेत्र की यह शिकायत होती है कि एयरटेल व रिलांयस जैसी प्राईवेट कंपनियां अपने केबल तार को बिछाने के लिए रास्ते में पडऩे वाली किसी बाधा को तोडफ़ोड़ कर पार कर जाते हैं। इसी कारण इनके द्वारा कभी बीएसएनएल के केबल काट दिए जाते हैं तो कभी पानी की पाईप लाईनें इनके मज़दूरों द्वारा तोड़ दी जाती हैं। कहीं से बीएसएनएल के अधिकारी जल विभाग के लोगों को टेली$फोन व ब्राडबैंड की केबल के $खराब होने का जि़म्मेदार ठहराते हैं। इसी प्रकार जब जल आपूर्ति विभाग के लोगों से पाईप से पानी रिसाव के बारे में बात करें तो वह भी इसी प्रकार कभी बीएसएनएल तो कभी तमाम प्राईवेट संचार एजेंसियों पर पाईप के रिसाव की जि़म्मेदारी मढ़ देते हैं। construction 2
जि़म्मेदारी तो बहरहाल किसी न किसी की ज़रूर है। परंतु एक दूसरे पर जि़म्मेदारियां मढऩे की भारतीय प्रशासनिक शैली का परिणाम अंततोगत्वा यही होता है कि इस का $खमियाज़ा पूरी तरह आम जनता ही भुगतती है। चाहे वह टेली$फोन या इंटरनेट में आई $खराबी के रूप में हो या नियमित जलापूर्ति में आने वाली बाधा के रूप में या फिर सड़क़ों पर हो रहे कीचड़,मिटटी,गड्ढे तथा जल रिसाव के कारण होने वाली परेशानियों के रूप में। उपयुक्त योजना के अभाव का एक परिणाम यह भी देखने को मिल रहा है कि कई जगह एक ही काम के लिए एक ही गली अथवा सडक़ को बार-बार खोदा तथा बाद में पाटा जाता है। उदाहरण के तौर पर कारण पूछने पर यह पता लगता है कि सीवर प्रणाली में पहले तो सीमेंट व मिट्टी के पाईप बिछाए गए थे परंतु अब उन्हें बदलकर उनकी जगह लोहे के पाईप बिछाए जा रहे हैं। सुनने में तो यह मामूली फेरबदल लगता है परंतु क्षेत्र के अनुसार इस काम में करोड़ो रुपये का $फालतू $खर्च केवल सरकारी नाकामियों व योजना को सही ढंग से न बनाए जाने के कारण होता है। इसके अतिरिक्त एक दूसरे विभाग के कर्मचारियों व मज़दूरों की ग़लतियों व लापरवाहियों के परिणामस्वरूप जहां सरकारी अमला अकारण हुई तोडफ़ोड़ की मुरम्मत में अपना बहुमूल्य समय गंवाता है। वहीं इन समस्याओं के समाधान हेतु अच्छे-$खासे राजकीय कोष का भी व्यय करना पड़ता है। और इन सभी समस्याओं का अकेला कारण यही है कि भू-तलीय कार्य करने वाले उपरोक्त विभागों के मध्य आपस में परस्पर सहयोग व तालमेल नहीं है। यह विभाग केवल अपने काम को लक्ष्य बनाकर अपनी परियोजना के अनुसार अपने नक़्शे के आधार पर ज़मीन खोदना तथा तार,केबल, पाईप तथा सीवर आदि बिछाना शुरु कर देते हैं। ऐसे में किसी दूसरे विभाग की किसी केबल या पाईप का इनसे टकराना या उन्हें पार करना भी सामान्य सी बात है। हालांकि अपनी योजना के रास्ते में पडऩे वाली इस प्रकार की केबल अथवा पाईप को बिना किसी दूसरे विभाग के केबल अथवा पाईप को क्षति पहुंचाए हुए नियोजित ढंग से तभी पार किया जा सकता है जबकि एक दूसरे विभाग के मध्य पूरा प्रशासनिक व अभियंता स्तर का तालमेल  हो तथा इस प्रकार की क्रासिंग के समय दोनों ही विभाग के कर्मचारी वहां मौजूद हों।
लिहाज़ा यदि सरकार को  आमतौर पर जनता को होने वाली उपरोक्त या इन जैसी परेशानियों से राहत दिलानी है तथा $गैर योजनाबद्ध तरी$के से होने वाले विकास के कारण होने वाली $िफज़ूल$खर्ची से देश के राजस्व को बचाना है तो इस प्रकार के निर्देश जारी किए जाने चाहिए कि किसी नई योजना को शुरु करने से पूर्व भू-तलीय कार्य करने वाले सभी  संबद्ध विभाग परस्पर तालमेल अवश्य बिठाएं। और यदि किसी विभाग द्वारा अपने मनमाने तरी$के से कार्य कराए जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप किसी दूसरे विभाग की कोई केबल अथवा पाईप क्षतिग्रस्त होती है ऐसे में दोषी विभाग अथवा एजेंसी या कंपनी के ऊपर ही उस कार्य की मुरम्मत में आने वाली पूरी लागत जुर्माने सहित वसूल की जानी चाहिए। यदि यथाशीघ्र सरकार इस संबंध में दिशानिर्देश जारी नहीं करती तो संचार क्रांति के वर्तमान दौर में इस प्रकार के भू-तलीय कार्य आम लोगों के लिए परेशानी का सबब भी बनते रहेंगे। इतना ही नहीं बल्कि  हमारे देश के सरकारी कर्मचारी तथा मज़दूर देश को तेज़ी से तरक़्$की की राह पर ले जाने के बजाए इस प्रकार की तोडफ़ोड़ व मुरम्मत के कामों में ही यूं ही उलझे रह जाएंगे।

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Nirmal Rani**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,

पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer:  The views expressed by the author in this feature are entirely her own

and do not necessarily reflect the views of INVC.

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